बेहतर क्रेडिट रेटिंग की कवायद | 04 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?

  • विदित हो कि वित्त मंत्रालय ने नियमित आधार पर टेली-कॉन्फ्रेन्स और ई-मेल के ज़रिये वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है। दरअसल यह बातचीत भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित विभिन्न अपडेट देने के लिये की जा रही है, ताकि भारत की क्रेडिट रेटिंग बढ़ाई जा सके।
  • दरअसल, भारत में उल्लेखनीय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होने के बावजूद सरकारी खज़ाने की खराब हालत और कम निजी निवेश के मद्देनज़र भारत की क्रेडिट रेटिंग नहीं बढ़ाई गई थी। वाणिज्य पर संसद की स्थायी समिति का कहना है कि सरकार यह बताए कि कम निजी निवेश होने के क्या कारण हैं?
  • गौरतलब है कि किसी देश को कौन सा क्रेडिट रेटिंग मिलता है, यह सार्वजनिक ऋण की गुणवत्ता और मात्रा तथा सार्वजनिक वित्त सुधार से निर्णित होता है। हालाँकि एफडीआई का भी अपना महत्त्व है, लेकिन अकेले बेहतर एफडीआई से बेहतर क्रेडिट रेटिंग नहीं प्राप्त की जा सकती है।

क्या है क्रेडिट रेटिंग ? 

  • क्रेडिट रेटिंग किसी भी देश, संस्था या व्यक्ति की ऋण लेने या उसे चुकाने की क्षमता का मूल्याँकन होती है। गौरतलब है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा एएए, बीबीबी, सीए, सीसीसी, सी, डी के नाम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को रेटिंग दी जाती है।
  • यह बहुत कुछ वैसा ही दिखता है, जैसे ग्रेडिंग पद्धति से किसी विद्यार्थी को अंक प्राप्त होते हैं। वस्तुतः यह भी मूल्याँकन ही है, लेकिन किसी विद्यार्थी का नहीं बल्कि देशों, बड़ी कंपनियों या बड़े पैमाने पर उधार लेने वालों का। 
  • इसी मूल्याँकन पर निर्भर करता है कि उधार लेने वाले की माली हालत कैसी है। मसलन-  उनकी उधार लौटाने की क्षमता कितनी है; अच्छे मूल्याँकन का अर्थ है- कम ब्याज पर आसानी से ऋण और खराब मूल्याँकन का मतलब है- ऊँची दरों पर बमुश्किल ऋण।

रेटिंग की श्रेणियाँ

  • एएए: सबसे मज़बूत सबसे बेहतर।
  • एए: वादों को पूरा करने में सक्षम।
  • ए: वादों को पूरा करने की क्षमता, पर विपरीत परिस्थितियों का पड़ सकता है असर।
  • बीबीबी: वादों को पूरा करने की क्षमता, लेकिन विपरीत परिस्थितियों से आर्थिक स्थितियाँ प्रभावित होने की संभावना अधिक।
  • सीसी: वर्तमान में बहुत कमज़ोर।
  • डी: ऋण लौटाने में असफल।