जैव विविधता और पर्यावरण
प्रस्तावित चतुष्कोणीय गठबंधन के आलोक में भारत-चीन संबंध
- 28 Nov 2017
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संदर्भ
‘भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान’ के चतुष्कोणीय गठबंधन के संबंध में हाल ही में हुई कुछ चर्चाओं ने भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता को वापस सुर्खियों में ला दिया है। चीन के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए आने वाले कुछ साल सामरिक तौर पर अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण साबित होंगे।
‘भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान’ का चतुष्कोणीय गठबंधन
- हाल ही में जापान द्वारा यह प्रस्ताव रखा गया है कि भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान को मिलाकर एक चतुष्कोणीय समूह बनाया जाए।
- जिस प्रकार से दो देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध और तीन देशों के मध्य त्रिपक्षीय संबंध बनते हैं ठीक उसी प्रकार वार्तालाप और सहयोग (conversations and cooperation) बढ़ाने के उद्देश्य से चार देशों का एक मंच पर आना एक बेहतर प्रयास है।
- दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब किसी चतुष्कोण समूह की बात की जा रही है। इससे एक दशक पहले भी इन्हीं देशों द्वारा चतुष्कोण समूह बनाने की बात कही गई थी।
- लेकिन तब यह प्रयास इसलिये सफल नहीं हो पाया था क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने अपने कदम पीछे हटा लिये थे।
चतुष्कोणीय गठबंधन बनने के कारण: - चीन द्वारा 'वन बेल्ट वन रोड' पहल शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य दुनिया का सबसे बड़े आर्थिक मंच का निर्माण करना है।
- साथ ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अगले 20 वर्षों के अंदर चीन को एक वैश्विक महाशक्ति (global superpower) बनाने की योजना बनाई है।
- चीन के बढ़ते प्रभुत्व एवं महत्त्वाकांक्षा पर लगाम कसने के उद्देश्य से अन्य वैश्विक शक्तियाँ चतुष्कोणीय गठबंधन बनाने पर ज़ोर दे रही हैं।
- दरअसल, चिंता केवल यह नहीं है कि चीन अपनी महत्त्वाकांक्षा में अन्य छोटे-बड़े देशों की संप्रभुता का ख्याल नहीं करता।
- चीन को रोकने में सक्षम किसी वैकल्पिक शक्ति का अभाव भी इस तरह के गठबंधन के बनने का एक बड़ा कारण है।
संबंधित पक्षों की चिंताएँ
- भारत की चिंताएँ:
► चीन द्वारा बार-बार अडंगा लगाए जाने के कारण भारत एनएसजी (nuclear supplier group) की सदस्यता हासिल नहीं कर पा रहा है।
► पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने का चीन विरोध करता आ रहा है।
► चीन तथा पाकिस्तान के सैन्य-संबंध लगातार मज़बूत होते जा रहे हैं।
► वह चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर के संबंध में व्यक्त भारत की चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर रहा है।
► चीन सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर लगातार संशोधित बयान जारी कर इन्हें अपना भू-भाग बताता रहा है।
► हिंद महासागर में चीनी नौसेना की उपस्थिति बढ़ती जा रही है। यहाँ तक कि वह अपनी परमाणु पनडुब्बियों को गश्ती पर भेज रहा है।
► श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल आदि पड़ोसी देशों में चीन आक्रामक ढंग से निवेश कर रहा है, जिससे की भारत पर दबाव बनाया जा सके।
- अमेरिका की चिंताएँ:
► चीन एशियाई क्षेत्र में किसी भी अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन को खत्म करने की एक बड़ी रणनीति बना रहा है।
► ‘समग्र राष्ट्रीय शक्ति’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव’ के संदर्भ में चीन एक वैश्विक शक्ति के तौर पर उभर रहा है।
- जापान की चिंताएँ:
उत्तरी कोरिया द्वारा जापान के ऊपर से दागी गई दो मिसाइलों के संबंध में जापान का मानना है कि इसमें चीन का हाथ है।
साथ ही दक्षिण-चीन सागर विवाद में चीन द्वारा बार-बार उसकी संप्रभुता को चुनौती दी जाती रही है।
- ऑस्ट्रेलिया की चिंताएँ:
► ऑस्ट्रेलिया अपने बुनियादी ढाँचे और राजनीतिक गतिविधियों में चीन की बढ़ती रूचि से परेशान है।
क्यों अप्रभावी हैं भारत की नीतियाँ?
- वर्तमान में भारत बीजिंग से निपटने के लिये अमेरिका के साथ अपनी नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है, लेकिन यह भारत के लिये नकारात्मक साबित हो सकता है, क्योंकि:
► डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अतिरिक्त क्षेत्रीय गतिविधियों से स्वयं को अलग रखने का प्रयास कर रहा है।
► एशियाई क्षेत्र के लिये अमेरिका की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता तेज़ी से अनिश्चितता की और बढ़ रही है।
- प्रायः यह सुझाव दिया जाता है कि चीन के साथ 70 अरब डॉलर के मज़बूत व्यापारिक संबंधों को कूटनीति के एक अहम् हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिये। दरअसल, यह संभव इसलिये नहीं है, क्योंकि:
► चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने पर भारतीय उपभोक्ताओं को कहीं और से उन्हें पाने के लिये अधिक भुगतान करना होगा, जिससे कि अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक बोझ बढ़ेगा।
► आर्थिक मोर्चे पर भी चीन को अलग-थलग कर उसके प्रभुत्व को कम नहीं किया जा सकता है, क्योंकि शक्तिशाली युआन के सामने रुपया अभी भी कमज़ोर है।
आगे की राह
- देना होगा सार्क को महत्त्व:
► अपने पड़ोसी देशों के साथ ऐतिहासिक संबंधों में मधुरता बनाए रखने के लिये भारत को सार्क के महत्त्व को पहचानना होगा।
► यदि भारत का पड़ोसियों से संबंध बेहतर होता है तो चीन के आक्रामक क्षेत्रीय निवेश की नीति को संतुलित किया जा सकता है।
- आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने की ज़रूरत:
► द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना चाहिये और इसके लिये दोनों देशों को चाहिये कि 'मैत्री और सहयोग संधि' तथा मुक्त व्यापार समझौता (free trade agreement- FTA) को गंभीरता से लें।
► एफटीए भारत के लिये फायदेमंद तो हो सकता है लेकिन कुछ शर्तों के साथ।
► भारत और चीन के बीच एफटीए भारत को नुकसान पहुँचा सकता है, क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र के साथ-साथ शुल्क दरों के मामले में चीन बेहतर स्थिति में है।
► भारत में शुल्क दर के ज़्यादा होने के कारण एफटीए से दोनों देशों के बीच व्याप्त मौजूदा व्यापार असंतुलन और बढ़ सकता है।
► अतः भारत को चीन के साथ एफटीए बहाल करते हुए इन बातों का ध्यान रखना होगा।
- एक समान उद्देश्य:
► धार्मिक कट्टरपंथ और आतंकवाद को रोकने में दोनों देशों की एक समान रुचि है।
► अतः परस्पर हितों को सामरिक संवादों के माध्यम से स्पष्ट किया जाना चाहिये।
► ऐतिहासिक मुद्दों पर लड़ने के बजाय दोनों देशों को चाहिये कि वे वर्तमान मुद्दों को हल करने पर बल दें।
- बेहतर हो भू-परिवहन
► चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ के अंतर्गत निर्मित हो रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) को लेकर भारत की सम्प्रभुता संबंधी चिंताएँ वाज़िब हैं।
► हालाँकि यह देखना भी महत्त्वपूर्ण है कि क्या ‘वन बेल्ट वन रोड’ किसी भी रूप में भारत के लिये लाभदायक है?
► गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में भू-परिवहन की स्थिति अत्यंत ही दयनीय है। तिब्बत और भारत के बीच कनेक्टिविटी के विकास में ‘वन बेल्ट वन रोड’ की अहम् भूमिका हो सकती है।
► 20वीं सदी तक नाथू ला के माध्यम से ल्हासा और कोलकाता को जोड़ने वाला पुराना मार्ग वस्तु एवं सेवाओं के व्यापार का एक मुख्य ज़रिया हुआ करता था।
भारत के माध्यम से तिब्बत को बाहरी दुनिया से जोड़ने वाले इस मार्ग का ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत पुनरोद्धार भारत के लिये अत्यंत ही सामरिक और व्यापारिक महत्त्व वाला है।
निष्कर्ष
► ‘भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान’ का चतुष्कोणीय गठबंधन, पूर्ववर्ती ‘एशिया-प्रशांत संकल्पना’ के स्थान पर ‘हिंद-प्रशांत संकल्पना को स्वरूप देने के उद्देश्य से बनने जा रहा है।
► यह चतुष्कोणीय गठबंधन इस सामरिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति के बीच ‘मुक्त’ रखने में महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
► चीन का उद्भव एक वास्तविकता है, जिससे भारत को निपटना है। लेकिन कूटनीति एक ऐसी कला है जो सही संतुलन पर निर्भर करती है और भारत को वह संतुलन बनाकर चलना होगा।