विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
पल्सर ग्लिच
- 29 Jan 2024
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:पल्सर ग्लिच, PSR B1919+21, न्यूट्रॉन तारा, सुपरफ्लुइड्स के गुण मेन्स के लिये:पल्सर ग्लिच, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
वर्ष 1967 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के दो खगोलविदों ने पहले पल्सर अर्थात एक प्रकार के घूर्णित न्यूट्रॉन तारे की खोज की जिसे बाद में PSR B1919+21 नाम दिया गया, जिसने न्यूट्रॉन तारों तथा उनके रहस्यमय पल्सर समकक्षों के गहन अध्ययन में सहायता प्रदान की।
पल्सर क्या हैं?
- परिचय:
- पल्सर तेज़ी से घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारे हैं जो सेकंड से लेकर मिलीसेकंड तक के नियमित अंतराल पर विकिरण का स्पंदन होता है।
- पल्सर में प्रबल चुंबकीय क्षेत्र होते हैं जो कणों को उनके चुंबकीय ध्रुवों के साथ जोड़ते हैं तथा यह उन्हें सापेक्ष गति प्रदान करते हैं जिससे प्रकाश की दो शक्तिशाली किरणें,प्रत्येक ध्रुव से एक, उत्पन्न होती हैं।
- पृथ्वी की दृष्टि रेखा को पार करने वाली प्रकाश किरणों के कारण पल्सर आवधिकता प्रदर्शित करते हैं; जब प्रकाश पृथ्वी से दूर होता है तो पल्सर उन बिंदुओं पर 'अप्रभावी' हो जाता है।
- इन स्पंदनों के बीच का समय पल्सर की 'अवधि' को दर्शाता है।
पल्सर की खोज और उनके व्यवहार से संबंधित सिद्धांत क्या हैं?
- न्यूट्रॉन की खोज से संबंध:
- पल्सर की खोज जेम्स चैडविक की वर्ष 1932 में न्यूट्रॉन की खोज से संबंधित है।
- एक समूह के रूप में न्यूट्रॉन समान ऊर्जा साझा करने का विरोध करते हैं और न्यूनतम संभव ऊर्जा स्तर प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। भारी तारों के विनाश होने पर उनके कोर में विस्फोट होता है। यदि वे ब्लैक होल बनने के लिये पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं तो वे न्यूट्रॉन के एक पिंड में परिवर्तित हो जाते हैं जिससे एक न्यूट्रॉन तारा निर्मित होता है।
- पल्सर की खोज जेम्स चैडविक की वर्ष 1932 में न्यूट्रॉन की खोज से संबंधित है।
- घूर्णन करते न्यूट्रॉन तारे के रूप में पल्सर:
- आकाश के एक संकीर्ण हिस्से से उत्पन्न होने तथा पुनः आवृति करने के संकेतों के परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पल्सर घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारें होते हैं।
- संबद्ध तारे के ध्रुवों के समीप से उत्सर्जित रेडियो सिग्नल एक संकीर्ण शंकु का निर्माण करते हैं जो प्रत्येक घूर्णन के दौरान पृथ्वी के समीप से गुज़रता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि समुद्र में एक जहाज़ के ऊपर चमकते लाइटहाउस से उत्सर्जित प्रकाश गुज़रता है।
- आकाश के एक संकीर्ण हिस्से से उत्पन्न होने तथा पुनः आवृति करने के संकेतों के परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पल्सर घूर्णन करने वाले न्यूट्रॉन तारें होते हैं।
- अप्रत्याशित ग्लिच (Unexpected Glitches):
- समय के साथ न्यूट्रॉन तारों के घूर्णन की गति धीमी हो गई। घूर्णन दर में इस कमी के माध्यम से संरक्षित ऊर्जा का प्रयोग तारे के बाह्य क्षेत्र में विद्युत आवेशों को उत्प्रेरित करने के लिये किया गया, जिसके परिणामस्वरूप रेडियो सिग्नल उत्पन्न हुए।
- वर्ष 1969 में शोधकर्त्ताओं ने पल्सर PSR 0833-45 में एक ग्लिच देखा।
- पल्सर की घूर्णन दर में अचानक बदलाव और उसके बाद धीरे-धीरे विराम की विशेषता वाले ग्लिच के कारण पल्सर की गतिकी में जटिलता उत्पन्न हुई।
- बाद के दशकों में 3,000 से अधिक पल्सर का अवलोकन किया गया, जिसमें लगभग 700 ग्लिच दर्ज किये गए।
- इन ग्लिच से वैज्ञानिकों को इन खगोलीय घटनाओं को नियंत्रित करने वाले अंतर्निहित तंत्रों की गहनता से जाँच करने हेतु प्रेरणा मिली।
पल्सर किस प्रकार निर्मित होते हैं?
- सुपरनोवा विस्फोट:
- पल्सर का निर्माण सूर्य से 1.4 से 3.2 गुना द्रव्यमान वाले विशाल तारों के अवशेषों से हुआ है। जब ऐसे तारे का परमाणु ईंधन समाप्त हो जाता है तो उसमें सुपरनोवा विस्फोट होता है।
- न्यूट्रॉन तारे का निर्माण:
- सुपरनोवा के दौरान तारे की बाह्य परतें अंतरिक्ष में निक्षेपित होने के साथ आंतरिक क्रोड गुरुत्वाकर्षण के कारण संकुचित हो जाता है। इसमें गुरुत्वाकर्षण दबाव इतना तीव्र हो जाता है कि यह इलेक्ट्रॉन अपघटन दबाव से भी अधिक हो जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन एक साथ संघट्ट होकर न्यूट्रॉन बनाते हैं।
- न्यूट्रॉन तारों के लक्षण:
- यह काफी अधिक सघन होने के साथ इसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र तीव्र/प्रबल (पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का लगभग 2 x 10^11 गुना) होता है।
- कोणीय संवेग संरक्षण:
- जैसे ही तारे का विघटन होता है/विखंडित होता है, यह अपने कोणीय संवेग को संरक्षित कर लेता है। विखंडन के कारण तारे का आकार बहुत छोटा हो जाता है, जिससे घूर्णन गति में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।
- पल्सर उत्सर्जन:
- तेजी से घूर्णन करने वाला न्यूट्रॉन तारा अपनी चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ विद्युत चुंबकीय विकिरण की किरणें उत्सर्जित करता है। यदि न्यूट्रॉन तारे के घूर्णन पर पृथ्वी इन किरणों को प्रतिच्छेद करती है, तो खगोलविद् विकिरण के आवधिक स्पंदों का अवलोकन करते हैं, और इस प्रकार पिंड की पल्सर के रूप में पहचान की जाती है।
पल्सर को चन्द्रशेखर सीमा से किस प्रकार निर्धारित किया जाता है?
- चन्द्रशेखर सीमा एक स्थिर श्वेत वामन तारे का अधिकतम द्रव्यमान है। यह सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 1.4 गुना है।
- इस सीमा/लिमिट का नाम भारतीय मूल के खगोल भौतिकविद सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने वर्ष 1930 में इसकी गणना की थी।
- यदि कोई तारा चन्द्रशेखर सीमा से अधिक विशाल है, तो उसका विखंडन/विध्वंस होता रहेगा और वह न्यूट्रॉन तारा बन जाएगा। यह विखंडन/विध्वंस गुरुत्वाकर्षण बल के कारण होता है।
- पल्सर से पल्स आवर्ती रूप से दिखाई देते हैं क्योंकि वे न्यूट्रॉन तारों के घूर्णन के समान दर पर उत्सर्जित होते हैं। दूर से, स्पंदन/पल्स घूमते हुए प्रकाश स्तंभ किरण (Lighthouse Beam) के समान दिखते हैं।
पल्सर में ग्लिच की घटना का कारण:
- न्यूट्रॉन तारे की संरचना:
- एक ठोस परत और एक सुपरफ्लुइड्स क्रोड की विशेषता वाला एक न्यूट्रॉन तारा, खगोलीय गतिकी को नियंत्रित करने वाले बलों की परस्पर क्रिया के लिये एक विशिष्ट पृष्ठभूमि प्रदान करता है।
- क्रस्ट/पर्पटी के मंदन और सुपरफ्लुइड्स क्रोड के अंदर निरंतर भँवर गति/चक्राकार गति के बीच का अंतर ग्लिच की उत्पत्ति को समझने में महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- न्यूट्रॉन तारों के अंदर सुपरफ्लुइड्स अवस्था:
- ग्लिच के बाद का व्यवहार इन ब्रह्मांडीय पिंडों के अंदर एक सुपरफ्लुइड्स स्थिति की विद्यमानता का सुझाव देता है।
- न्यूट्रॉन तारा एक ठोस परत और क्रोड वाला 20 किमी चौड़ा पिंड है। इसके कोर में मुख्यतः सुपरफ्लुइड्स होता है, और कोई ठोस भाग नहीं होता है।
- ग्लिच के बाद का व्यवहार इन ब्रह्मांडीय पिंडों के अंदर एक सुपरफ्लुइड्स स्थिति की विद्यमानता का सुझाव देता है।
- सुपरफ्लुइड्स के विशिष्ट गुण:
- सुपरफ्लुइड्स, जब एक कंटेनर के अंदर गतिमान होते हैं, तो एक असाधारण विशेषता प्रदर्शित करते हैं - वे अनिश्चित काल तक गमन करते रहते हैं। घर्षण के बिना सतत गति की यह विशेषता, न्यूट्रॉन तारों के अंदर सुपरफ्लुइड्स क्रोड के व्यवहार को समझने में महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
नोट: वैज्ञानिकों द्वारा इस दिशा में की गई प्रगति के बावजूद ग्लिच तंत्र का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है। इस आलोक में विवादास्पद विवरण, अंतरिक्ष-आधारित ट्रिगर और समय के साथ ग्लिच के विकास पर अधिक शोध किया जा सकता है।
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