भारतीय राजनीति
लोक लेखा समिति
- 04 Dec 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:लोक लेखा समिति, नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक मेन्स के लिये:संसदीय समितियों का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘लोक लेखा समिति’ (PAC) ने अपने 100 वर्ष पूरे कर लिये हैं।
- ‘लोक लेखा समिति’ तीन वित्तीय संसदीय समितियों में से एक है; अन्य दो समितियाँ हैं- प्राक्कलन समिति और सार्वजनिक उपक्रम समिति।
- संसदीय समितियाँ अनुच्छेद-105 (संसद सदस्यों के विशेषाधिकार) और अनुच्छेद-118 (संसद की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन को विनियमित करने हेतु नियम बनाने के अधिकार) से शक्तियाँ प्राप्त करती हैं।
प्रमुख बिंदु
- लोक लेखा समिति:
- स्थापना:
- लोक लेखा समिति को वर्ष 1921 में ‘भारत सरकार अधिनियम, 1919’ के माध्यम से गठित किया गया था, जिसे ‘मोंटफोर्ड सुधार’ भी कहा जाता है।
- लोक लेखा समिति का गठन प्रतिवर्ष ‘लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियम’ के नियम 308 के तहत किया जाता है।
- नियुक्ति:
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
- गौरतलब है कि चूँकि यह समिति कार्यकारी निकाय नहीं है, अतः यह केवल ऐसे निर्णय ले सकती है जो सलाहकार प्रकृति के हों।
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
- सदस्य:
- इसमें वर्तमान में केवल एक वर्ष की अवधि के साथ 22 सदस्य (लोकसभा अध्यक्ष द्वारा चुने गए 15 सदस्य और राज्यसभा के सभापति द्वारा चुने गए 7 सदस्य) शामिल होते हैं।
- उद्देश्य:
- इसे यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था कि संसद द्वारा सरकार को दिया गया धन विशिष्ट और निश्चित मद पर ही खर्च किया जाए। केंद्र सरकार के किसी भी मंत्री को इस समिति में सदस्य के तौर पर शामिल नहीं किया जा सकता है।
- कार्य:
- सरकार के वार्षिक वित्त लेखों और व्यय को पूरा करने के लिये सदन द्वारा दी गई राशि के विनियोग को दर्शाने वाले लेखों की जाँच करना।
- सदन के समक्ष रखे गए ऐसे अन्य लेखे, जिन्हें समिति ठीक समझे, सिवाय ऐसे सार्वजनिक उपक्रमों से संबंधित, जो सार्वजनिक उपक्रम समिति को आवंटित किये गए हैं।
- सरकार के विनियोग लेखों पर भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) के प्रतिवेदनों के अलावा समिति राजस्व प्राप्तियों, सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा व्यय और स्वायत्त निकायों के लेखों पर नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के विभिन्न लेखापरीक्षा प्रतिवेदनों की जाँच करना।
- यह समिति, सरकार द्वारा अत्यधिक खर्च के साथ-साथ गलत आकलन या प्रक्रिया में अन्य दोषों के कारण हुई बचत की भी जाँच करती है।
- सरकार के वार्षिक वित्त लेखों और व्यय को पूरा करने के लिये सदन द्वारा दी गई राशि के विनियोग को दर्शाने वाले लेखों की जाँच करना।
- स्थापना:
- संसदीय समितियों का महत्त्व:
- मंच प्रदान करना:
- चूँकि संसद जटिल मामलों पर विचार करती है, इसलिये ऐसे मामलों को बेहतर ढंग से समझने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
- ये समितियाँ एक ऐसा मंच प्रदान करने में मदद करती हैं जहाँ सदस्य मामलों के अध्ययन के दौरान विविध क्षेत्र/विषय विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों के साथ जुड़ सकते हैं।
- राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाना:
- समितियाँ राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाने के लिये भी एक मंच प्रदान करती हैं।
- सत्र के दौरान सदन की कार्यवाही को टीवी पर प्रसारित किया जाता है और अधिकांश मामलों में सांसदों के अपने पार्टी के पदों पर बने रहने की संभावना होती है।
- ये समितियाँ परोक्ष रूप से भी मीटिंग करती हैं जिससे उन्हें स्वतंत्र रूप से सवाल करने और मुद्दों पर चर्चा करने तथा आम सहमति पर पहुँचने में मदद मिलती है।
- नीतिगत मुद्दों की जाँच करना:
- समितियाँ अपने मंत्रालयों से संबंधित नीतिगत मुद्दों की भी जाँच करती हैं तथा सरकार को सुझाव देती हैं।
- इन सिफारिशों को स्वीकार किया गया है या नहीं, इस पर सरकार को रिपोर्ट देनी होती है।
- इसके आधार पर समितियाँ एक कार्रवाई रिपोर्ट पेश करती हैं, जो प्रत्येक सिफारिश पर सरकार की कार्रवाई की स्थिति दर्शाती है।
- मंच प्रदान करना:
- समितियों को शामिल न करने से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ:
- संसदीय प्रणाली की सरकार का कमज़ोर होना:
- एक संसदीय लोकतंत्र संसद और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के विलय के सिद्धांत (Doctrine of Fusion of Powers) पर कार्य करता है, लेकिन संसद को सरकार की निगरानी एवं अपनी शक्ति को नियंत्रण में रखना चाहिये।
- इस प्रकार किसी महत्त्वपूर्ण कानून को पारित करने में संसदीय समितियों को दरकिनार करने से लोकतंत्र के कमज़ोर होने का खतरा होता है।
- बहुमत को लागू करना:
- भारतीय व्यवस्था में विधेयकों को समितियों के पास भेजना अनिवार्य नहीं है। यह अध्यक्ष (लोकसभा में अध्यक्ष और राज्यसभा में अध्यक्ष) के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
- अध्यक्ष को विवेकाधीन शक्ति देकर लोकसभा में व्यवस्था को विशेष रूप से कमज़ोर कर दिया गया है जहाँ सत्ताधारी दल के पास बहुमत होता है।
- संसदीय प्रणाली की सरकार का कमज़ोर होना:
आगे की राह
- हमारे लोकतंत्र में सरकार के काम की जाँच करने वाले प्रतिनिधि निकाय के रूप में संसद की भूमिका केंद्रीय है। इसके संवैधानिक जनादेश को पूरा करने के लिये यह अनिवार्य है कि संसद प्रभावी ढंग से कार्य करे।
- इसके साथ ही बिलों की उचित जाँच गुणवत्ता विधान की एक अनिवार्य आवश्यकता है। विधान पारित करते समय संसदीय समितियों को अलग रखना लोकतंत्र की भावना को कमज़ोर करता है।