अंतर्राष्ट्रीय संबंध
असम का मजुली द्वीप
- 01 Jan 2018
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरोद्धार तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग एवं नौवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी द्वारा बाढ़ और क्षरण से मजुली द्वीप (Majuli island) के संरक्षण कार्य हेतु ब्रह्मपुत्र बोर्ड (Brahmaputra Board) परिसर के निर्माण की आधारशिला रखी गई।
पृष्ठभूमि
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2004 में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरोद्धार मंत्रालय तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग एवं नौवहन मंत्रालय के तहत ब्रह्मपुत्र बोर्ड को बाढ़ और क्षरण से मजुली द्वीप की सुरक्षा का कार्य सौंपा गया था।
- वर्ष 2004 से 2016 की अवधि के दौरान ब्रह्मपुत्र बोर्ड द्वारा लगभग 22.08 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए उसका संरक्षण किया गया है।
- इस कार्य के तहत चरण - 1 का काम पूरा कर लिया गया है, जबकि चरण - 2 और 3 के कार्य के 2017-18 के दौरान पूरा होने की उम्मीद है।
- कमज़ोर स्थलों पर कटाव के मामलों से निपटने दक्षिणी छोर पर पूर्व-पश्चिम क्षेत्र में लगभग 80 किलोमीटर की लम्बाई तक प्रो-सिल्टेशन और अन्य उपायों द्वारा अधिक भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिये मजुली द्वीप की विशेषज्ञ स्थाई समिति तथा ब्रह्मपुत्र बोर्ड की तकनीकी सलाहकार समिति (Standing Committee of Experts) की सिफारिशों के अनुसार, “ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ तथा कटाव से मजुली द्वीप’’ की सुरक्षा हेतु एक डीपीआर तैयार की गई।
वित्त की व्यवस्था
- इस कार्य के लिये भारत सरकार द्वारा तकरीबन 233.57 करोड़ रुपए एसएफसी के रूप में स्वीकृत किये गए हैं, जबकि 207 करोड़ रुपए की राशि की व्यवस्था पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (Ministry of Development of North Eastern Region - MoDONER) द्वारा की जाएगी।
कार्य निष्पादन हेतु केंद्र की व्यवस्था
- असम सरकार के अनुरोध पर ब्रह्मपुत्र बोर्ड द्वारा कार्यालय एवं आवासीय परिसर की स्थापना हेतु भी स्वीकृति प्रदान की गई है। इस परिसर में एक गोदाम तथा कौशल विकास केन्द्र की स्थापना की जाएगी।
- ब्रह्मपुत्र बोर्ड द्वारा अपनी बैठक में यह विनिश्चय किया गया था कि इस कार्य का निष्पादन मंत्रालय के अंतर्गत एक सार्वजनिक उपक्रम, एनपीसीसी लिमिटेड द्वारा किया जाए।
- यही कारण है कि मजुली द्वीप में ब्रह्मपुत्र बोर्ड कार्यालय एवं आवासीय परिसर के निर्माण का कार्य एनपीसीसी लिमिटेड को सौंपा गया है। इस कार्य को 24 महीनों में पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- 2014 के पश्चात् से ब्रह्मपुत्र बोर्ड द्वारा विभिन्न कार्य किये गए हैं। पत्थरों से बनने वाले चार अवरोधों का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है।
- सलमारा (Salmara) में भी अवरोध निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में है। तटबंधों तथा आरसीसी अवरोधों का निर्माण कार्य भी पूरा हो गया है।
- इसके अतिरिक्त न केवल पाँच ऊँचे प्लेटफार्मों का निर्माण कार्य पूरा हो गया है, बल्कि इसे ज़िला प्रशासन को भी सौंप दिया गया है।
मजुली से क्या तात्पर्य है?
- मजुली शब्द ‘MAJULI’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है पानी से घिरा हुआ क्षेत्र।
- मजुली द्वीप वैष्णवित संस्कृति का मुख्य केन्द्र है, जिसका विकास 15वीं शताब्दी में महान संयासी श्रीमंत शंकरदेव द्वारा प्रतिपादित अद्वितीय वैष्णव सत्र प्रणाली के दौरान हुआ था।
- यह असम की वैष्णवित संस्कृति की सांस्कृतिक विरासत का प्रमुख केंद्र है।
- इस समय मजुली में 22 सत्र हैं। मजुली में इसकी विशिष्टता के कारण प्रतिवर्ष भारी संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु आते है।
- वैष्णवित संस्कृति के इस विशिष्ट स्वरूप के कारण इसे असम के पर्यटन क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थल प्रदान किया गया है।
- इतना ही नहीं मजुली द्वीप को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल करने के लिये भी प्रयास किये जा रहे है। वर्ष 2016 के दौरान मजुली का दर्ज़ा बढ़ाकर इसे नागरिक उपमंडल से उन्नयित करते हुए एक ज़िला बना दिया गया है।
- उपरोक्त कारणों के परिणामस्वरूप ही ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ तथा कटाव के खतरे से मजुली द्वीप को बचाने के लिये इतने प्रयास किये जा रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- औसत समुद्र तल से द्वीप की औसत ऊँचाई 87 मीटर है, जबकि उच्च बाढ़ स्तर 88.32 मीटर है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, 1.68 लाख की आबादी वाले मुख्य द्वीप का वर्तमान क्षेत्र 524 वर्ग किमी है।
- मजुली द्वीप दक्षिण में विशाल ब्रह्मपुत्र नदी तथा उत्तर में खेरकाटिया सूटी (Kherkatia Suti), लुइत सूटी (Luit Suti) और सुबनश्री नदियों (Subansiri Rivers) से घिरा हुआ है। सम्भवतः यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष इस द्वीप पर बाढ़ आने तथा क्षरण होने का खतरा बना रहता है।
- पी.आई.बी. द्वारा प्रदत्त एक जानकारी के अनुसार, वर्ष 1914 में मजुली द्वीप का क्षेत्रफल 733.79 वर्ग किलोमीटर था, जो वर्ष 2004 में घटकर मात्र 502.21 वर्ग किलोमीटर रह गया।
- हालाँकि, 60 के दशक में असम सरकार द्वारा इसके तटबंधों (embankment) का निर्माण कार्य किया गया था, परंतु यह तटबंध द्वीप को आंशिक रूप से ही सुरक्षा दे पाने में सफल हो पाए।
- ऐसे में परिणाम यह हुआ कि प्रति वर्ष होने वाले क्षरण के कारण द्वीप का क्षेत्रफल कम होता गया।