क्यों महत्त्वपूर्ण है कर्नाटक का अंधविश्वास निरोधक विधेयक? | 07 Oct 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक सरकार ने अंधविश्वास विरोधी विधेयक को मंज़ूरी दे दी है। विदित हो कि अमानवीय प्रथाओं और काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन विधेयक 2017 (अंधविश्वास विरोधी विधेयक) पर काफी वक्त से बहस चल रही थी। इस विधेयक में कुछ गंभीर मामलों में मौत की सज़ा का भी प्रावधान है।
अंधविश्वास निरोधक विधेयक में क्या है?
- कर्नाटक में सिद्दुभुक्टी, माता, ओखली जैसे कई रिवाज़ आपराधिक माने गए हैं, जिनसे इंसान की जान को खतरा होता है। विधेयक के मुताबिक, अगर ऐसी किसी दकियानूसी प्रथा से इंसान की जान चली जाती है, तो दोषियों को मौत की सज़ा दी जा सकती है।
- विधेयक में अंधविश्वास को फैलाने वाले तत्त्वों के खिलाफ एक्शन लेने का भी प्रावधान है। यदि गाँव का ओझा ग्रामीणों को झाड़-फूँक के जाल में फँसाएगा, तो उसके अलावा उस व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी जो उसका प्रचार-प्रसार कर रहा है।
- इसके लिये सरकार प्रचार के सभी माध्यमों पर भी नज़र रखेगी। यह विधेयक आम लोगों के हक में होगा और शरारती तत्त्वों को काबू में रखने में मदद करेगा।
- इस विधेयक में नर बलि पर पूर्ण प्रतिबंध का प्रस्ताव किया गया है। कर्नाटक के कुछ गाँवों में अंधविश्वास के चलते नर बलि की प्रथा भी प्रचलित है।
- अंधविश्वास विरोधी विधेयक में नर बलि के साथ-साथ पशु की गर्दन पर वार कर उसकी बलि पर भी प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है।
- इस विधेयक में 'बाईबिगा प्रथा' के नाम पर लोहे की रॉड को मुंह के आर-पार करते हुए करतब करना, 'बनामाथी प्रथा' के नाम पर पथराव करना, तंत्र-मंत्र से प्रेत या आत्मा को बुलाने की मान्यता पर भी प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।
- अंधविश्वास विरोधी विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और बच्चियों को देवदासी बनाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
- इस विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण को रोकने और खत्म करने का प्रावधान किया गया है।
क्यों महत्त्वपूर्ण है यह प्रय
- कर्नाटक के कई गाँवों में लोग आज भी बीमारियाँ ठीक करने के लिये बच्चों को काँटों पर सुला देते हैं या गर्भवती महिला को किसी तरह की शारीरिक या मानसिक यातना देते हैं। यह विधेयक जैसे ही कानून की शक्ल लेगा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ेगी।
- विदित हो कि ऐसा कानून महाराष्ट्र में बहुत पहले से है और अब कर्नाटक में इसे मज़बूती से लागू करने के लिये राज्य सरकार गंभीर है। कुप्रथाओं के उन्मूलन में कानूनी प्रावधानों की उपयोगिता अवश्य है, लेकिन समाज से अंधविश्वासों को जड़ से समाप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- कुछ लोगों का मत यह हो सकता है कि प्रस्तावित कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप में मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। हालाँकि इसे एक उचित प्रतिबंध के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि इससे सार्वजनिक हित सुनिश्चित होता है।