विलफुल डिफॉल्टर हेतु शीघ्र NPA लेबलिंग | 09 Oct 2023

प्रिलिम्स के लिये:

विलफुल डिफॉल्टर, NPA, RBI, ARC

मेन्स के लिये:

सामान्य अध्ययन  पेपर-3, NPA की चुनौतियाँ, NPA समाधान के प्रावधान, बैंकिंग क्षेत्र, संसाधन जुटाना, बैड बैंक

स्रोत :इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक मसौदे में प्रस्ताव दिया है कि ऋणदाताओं को अपने खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) घोषित किये जाने के छह माह के अंदर एक उधारकर्त्ता को विलफुल डिफॉल्टर के रूप में वर्गीकृत करना चाहिये।

RBI ड्राफ्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • नई व्यवस्था के तहत ऋणदाता को निर्दिष्ट छह माह की समय सीमा के अंतर्गत विलफुल डिफॉल्टर उधारकर्ताओं की पहचान करनी होगी, जबकि पूर्व की प्रणाली में ऐसी कोई समय बाधा नहीं थी।
    • ऋणदाताओं को NPA बनने के 6 माह के भीतर 25 लाख रुपए से अधिक के खातों के लिये विलफुल डिफाॅल्ट का आकलन करना होगा।
  • ऋणदाताओं द्वारा गठित एक पहचान समिति विलफुल डिफाॅल्ट के साक्ष्यों की समीक्षा करती है।
  • नीतियों में विलफुल डिफॉल्टर के लिये गैर-भेदभावपूर्ण फोटो प्रकाशन की आवश्यकता होती है और विलफुल डिफॉल्टर की सूची (List of Wilful Defaulters- LWD) से हटाने के बाद 1 वर्ष तक उन्हें कोई ऋण नहीं दिया जाता है; इसके अतिरिक्त LWD हटाने के बाद 5 वर्षों तक नए उद्यमों हेतु किसी क्रेडिट की अनुमति नहीं है।
  • मुख्य देनदारों के खिलाफ कठोर उपाय लागू किये बिना गारंटरों का पता लगाया जा सकता है तथा अन्य या ARC को क्रेडिट हस्तांतरित करने से पहले विलफुल डिफॉल्ट की जाँच आवश्यक है।

विलफुल डिफॉल्टर/इरादतन चूककर्त्ता:

  • परिचय:
    • विलफुल डिफॉल्टर एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जिसमें एक उधारकर्त्ता, उधार चुकाने की क्षमता होने के बावजूद जानबूझकर ऋण नहीं चुकाता है जिसकी बकाया राशि 25 लाख रुपए या उससे अधिक है।
    • बड़े डिफॉल्टर्स से तात्पर्य 1 करोड़ रुपए या उससे अधिक की बकाया धनराशि वाले उधारकर्त्ताओं से है, जिसके खाते को संदिग्ध या हानि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • विलफुल डिफॉल्ट बनाने वाली घटनाएँ:
    • ऐसी स्थिति जब इकाई ने ऋणदाता को अपने भुगतान/पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने में चूक की है, जबकि उसके पास उक्त दायित्वों को पूरा करने की क्षमता है।
    • जब इकाई ने ऋणदाता को अपने भुगतान/पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने में चूक की हो और ऋणदाता से प्राप्त वित्त का उपयोग उन विशिष्ट उद्देश्यों हेतु नहीं किया हो जिनके आधार पर ऋण प्राप्त किया था अर्थात् इस ऋण/धन का उपयोग अन्य उद्देश्यों हेतु किया गया है।
    • इकाई ने ऋणदाता को अपने भुगतान/पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने में धन की हेराफेरी  और चूक की है, जिससे धन का उपयोग उस विशिष्ट उद्देश्य हेतु नहीं किया गया है जिसके लिये ऋण प्राप्त किया था और न ही इकाई के पास अन्य परिसंपत्तियों के रूप में धन उपलब्ध है।
    • इकाई ने ऋणदाता को अपने भुगतान/पुनर्भुगतान दायित्वों को पूरा करने में चूक की है और बैंक/ऋणदाता की जानकारी के बिना सावधि ऋण प्राप्त करने के उद्देश्य से उसके द्वारा बंधक रखी गई चल या अचल संपत्तियों का निपटान या स्थानांतरण कर दिया गया है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्ति: 

  • परिचय:
    • NPA उन ऋणों या अग्रिमों के वर्गीकरण को संदर्भित करता है जो डिफाॅल्ट में हैं अथवा मूलधन या ब्याज के निर्धारित भुगतान पर बकाया हैं।
    •  ज्यादातर मामलों में जब ऋण का भुगतान न्यूनतम 90 दिनों की अवधि तक नहीं किया गया हो तो ऋण को गैर-निष्पादित/नॉन-परफॉर्मिंग (NPA) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • कृषि के लिये यदि दो फसली मौसमों के मूलधन और ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता है, तो ऋण को NPA के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • प्रकार:
    • सकल NPA: सकल NPA उन सभी ऋणों का योग है जो व्यक्तियों द्वारा डिफॉल्ट किये जाते हैं।
    • निवल NPA: निवल NPA वह राशि है जो सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों से प्रावधान राशि की कटौती के बाद प्राप्त होती है।
  • NPA से संबंधित कानून और प्रावधान:
    • बैड बैंक (Bad Bank):
      • भारत में बैड बैंक को नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (NARC) कहा जाता है।
      • यह NARC एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी के रूप में कार्य करती है।
      • यह बैंकों से बैड लोन अर्थात् ‘अशोध्य ऋण’ खरीदेगा, जिससे बैंकों को NPA से राहत मिलेगी। इसके बाद NARC उन निवेशकों को बेचने का प्रयास कर सकता है जो इसे खरीदने में रुचि रखते हैं। 
      • सरकार ने इन तनावग्रस्त परिसंपत्तियों को बाज़ार में बेचने के लिये पहले ही भारत ऋण समाधान कंपनी लिमिटेड (IDRCL) की स्थापना की है। तद्नुसार, IDRCL इन्हें बाज़ार में बेचने का प्रयास करेगी। 
    • वित्तीय संपत्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित का प्रवर्तन (SARFAESI) अधिनियम, 2002:
      • SARFAESI अधिनियम बैंकों और वित्तीय संस्थानों को न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना बकाया राशि की वसूली के लिये संपार्श्विक संपत्तियों पर अधिग्रहण करने तथा उन्हें बेचने की अनुमति देता है।
      • यह सुरक्षा हितों के प्रवर्तन के लिये प्रावधान प्रदान करता है और बैंकों को चूककर्त्ता उधारकर्त्ताओं को मांग नोटिस जारी करने की अनुमति देता है।
    • दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC), 2016:
      • IBC भारत में दिवाला और दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है।
      • इसका उद्देश्य तनावग्रस्त संपत्तियों के समयबद्ध समाधान को सुविधाजनक बनाना और ऋणदाता-अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना है।
      • IBC के तहत एक देनदार या लेनदार डिफॉल्ट करने वाले उधारकर्त्ता के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू कर सकता है।
      • इसने प्रक्रिया की निगरानी के लिये राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLT) तथा भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (IBBI) की स्थापना की।
    • NPA वसूली का महत्त्व:
      • जमाकर्त्ताओं और हितधारकों के हितों की रक्षा के लिये NPA की वसूली महत्त्वपूर्ण है।
      • समझौता निपटान में न्यूनतम व्यय और कम समय सीमा के अंतर्गत बकाया की अधिकतम वसूली को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • जनहित का विचार:
      • समझौता निपटान के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाएँ होने के नाते, बैंकों को उधारकर्त्ताओं के हितों से पहले कर-भुगतान करने वाली जनता के हितों पर विचार करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संचालन के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. पिछले दशक में भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी के अंतर्वेशन में लगातार वृद्धि हुई है।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सुव्यवस्थित करने के लिये मूल भारतीय स्टेट बैंक के साथ उसके सहयोगी बैंकों का विलय किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)