मैथिली भाषा तथा इसकी लिपियों का संवर्द्धन एवं संरक्षण | 14 Feb 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक समिति ने मैथिली भाषा तथा इसकी लिपि के संवर्द्धन और संरक्षण (Promotion and Protection of Maithili Language) विषय पर अपनी रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय को (Ministry of Human Resource Development) सौंपी। समिति द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में मैथिली भाषा के संवर्द्धन और संरक्षण हेतु कई सिफारिशें की गई हैं।

सिफारिशों पर तत्काल कार्रवाई का फैसला

मंत्रालय द्वारा रिपोर्ट की जाँच किये जाने के बाद समिति की सिफारिशों में से कुछ पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया है-

  1. मिथिलाक्षर के संरक्षण, संवर्द्धन और विकास के लिये दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय या कामेश्वर सह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में से किसी एक परिसर में पांडुलिपि केंद्र की स्थापना की जाएगी।
  2. मिथिलाक्षर (Mithilakshar) के उपयोग को आसान बनाने के लिये इस लिपि को भारतीय भाषाओं के लिये प्रौद्योगिकी विकास संस्थान (Technology Development of Indian Languages-TDIL) द्वारा जल्द-से-जल्द कंप्यूटर की भाषा (यूनिकोड) में परिवर्तित करने का काम पूरा किया जाएगा।
  3. मिथिलाक्षर लिपि को सीखने के लिये श्रव्य-दृश्य/ऑडियो-विज़ुअल (Audio-Visual) तकनीक का विकास किया जाएगा।

संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता

  • पिछले 100 वर्षों के दौरान इस लिपि के उपयोग में कमी आई है और इसके साथ ही हमारी संस्कृति का भी क्षय हो रहा है।
  • चूँकि मैथिली भाषा की स्वयं की लिपि का उपयोग नहीं किया जा रहा, इसलिये संवैधानिक दर्जा मिलने के बावजूद भी इसे समग्र रूप से विकसित करने की आवश्यकता है।
  • इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मैथिली भाषा और उसकी लिपियों के संवर्द्धन और संरक्षण पर रिपोर्ट तैयार करने के लिये वर्ष 2018 में इस समिति का गठन किया था।

समिति के सदस्य

  • समिति में चार सदस्य शामिल थे- ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मैथिली विभागाध्यक्ष, प्रो. रमण झा; कामेश्वर सह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभागाध्यक्ष, डॉ. पं. शशिनाथ झा;, ललित नारायण विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रो. रत्नेश्वर मिश्र व पटना स्थित महावीर मंदिर न्यास के प्रकाशन विभाग के पदाधिकारी पं. भवनाथ झा।

पृष्ठभूमि

  • मिथिलाक्षर या तिरहुत (Mithilakshar or Tirhuta) व्यापक संस्कृति वाली ‘मिथिला’ की लिपि है। मिथिलाक्षर, बांग्ला, असमिया, नेबारी, ओडिया और तिब्बती की लिपियाँ इसी परिवार का हिस्सा हैं।
  • यह एक अत्यंत प्राचीन लिपि है और व्यापक उत्तर-पूर्वी भारत की लिपियों में से एक है।
  • मिथिलाक्षार 10वीं शताब्दी तक अपने वर्तमान स्वरूप में आ गई थी।
  • मिथिलाक्षरों के प्राचीनतम रूपों के प्रयोग का साक्ष्य 950 ई. के सहोदरा के शिलालेखों में मिलता है।
  • इसके बाद चंपारण से देवघर तक पूरे मिथिला में इस लिपि का उपयोग किया गया।

जापान की बुलेट ट्रेन को भी मिथिला पेंटिंग्स से सजाने पर किया जा रहा है विचार

जापान में बुलेट ट्रेन को बिहार के विश्व विख्यात मिथिला पेंटिंग्स से सजाने पर विचार किया जा रहा है। जापान की सरकार ने इस काम के लिये भारत के रेल मंत्रालय से कलाकारों की मांग की है। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व भारतीय रेल के समस्तीपुर मंडल ने संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस को मिथिला पेंटिंग्स से सजाया था, जिसकी सराहना संयुक्त राष्ट्र ने भी की थी। वैसे जापानी लोग मिथिला पेंटिंग्स से पहले ही से परिचित हैं क्योंकि वहाँ जापान-भारत सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने वाली संस्था ने मिथिला म्यूज़ियम भी बनाया है।