प्रोजेक्ट साइनिंग: भू-जल संरक्षण परियोजना | 18 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:प्रोजेक्ट साइनिंग, अटल भू-जल परियोजना मेन्स के लिये:भू-जल संरक्षण के उपाय |
चर्चा में क्यों?
भारत के चुनिंदा राज्यों में भू-जल प्रबंधन में सुधार लाने के लिये विश्व बैंक ने एक नवीन ऋण आधारित परियोजना ‘प्रोजेक्ट साइनिंग’ (Project Signing) को प्रारंभ किया है।
मुख्य बिंदु:
- भारत सरकार और विश्व बैंक ने देश के गिरते भू-जल स्तर में सुधार लाने तथा भू-जल संस्थानों को मज़बूत करने वाले राष्ट्रीय कार्यक्रम को समर्थन देने के लिये 450 मिलियन डाॅलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- यह परियोजना विश्व बैंक समर्थित ‘अटल भू -जल योजना’ (Atal Bhujal Yojana-ABHY) को ऋण उपलब्ध कराने के लिये प्रारम्भ की गई है।
- केंद्र सरकार भू-जल प्रबंधन की दिशा में प्रोत्साहन उपायों के रूप में स्थानीय सरकारों (ज़िलों और ग्राम पंचायतों सहित) को धन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 80 प्रतिशत) हस्तांतरित करेगी।
- शेष धनराशि का उपयोग भू-जल के सतत् प्रबंधन की दिशा में तकनीकी सहायता प्रदान करने और चयनित राज्यों में संस्थागत व्यवस्थाओं को मज़बूत करने के लिये किया जाएगा।
परियोजना में शामिल राज्य:
- प्रोजेक्ट साइनिंग के माध्यम से अटल भू-जल योजना में गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 78 ज़िलों को शामिल किया गया है।
- इन राज्यों में प्रायद्वीपीय भारत के कठोर चट्टानी एक्वीफर्स (Aquifers) एवं इंडो-गैंगेटिक (Indo-Gangetic) मैदानों के जलोढ़ एक्वाफर्स दोनों फैले हैं।
- इन राज्यों का चुनाव कई मानदंडों के आधार पर किया गया है, यथा-
- भू-जल निष्कासन और गिरावट की तीव्रता।
- स्थापित विधिक और नियामक उपकरण।
- संस्थागत तैयारी एवं भू-जल प्रबंधन से संबंधित पहलों को लागू करने का अनुभव।
अटल भू-जल परियोजना में शामिल कार्यक्रम:
- एक्वीफर्स के पुनर्भरण में वृद्धि करना और जल संरक्षण प्रथाओं को लागू करना।
- जल संचयन, जल प्रबंधन और फसल संरेखण (ये सभी प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की जल संबंधी क्रियाएँ हैं) से संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देना।
- सतत् भू-जल प्रबंधन की दिशा में संस्थागत संरचना (Institutional Structure) का निर्माण करना।
- भू-जल प्रबंधन संबंधी पहलों को लागू करने में अनुभव बढ़ाना।
अटल भू-जल परियोजना के अन्य उद्देश्य:
- सहभागी भू-जल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये संस्थागत ढाँचे को मज़बूत करना एवं सतत् भू-जल संसाधन प्रबंधन के लिये सामुदायिक स्तर पर व्यावहारिक परिवर्तन उपायों को प्रोत्साहित करना।
- कटिंग-एज तकनीकों (Cutting-edge Technology) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के उपयोग से कार्यक्रम को बेहतर ढंग से लागू करना।
- यह कार्यक्रम ग्रामीण आजीविका में योगदान देगा साथ ही जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लचीलेपन का निर्माण करने में सहायता करेगा।
- फसल प्रबंधन और विविधीकरण की दिशा में व्यापक पहल की जाएगी। अनेक अध्ययनों से पता चला है कि भू-जल सिंचित क्षेत्र में 1% की वृद्धि होने से ग्रीनहाउस गैस (Green House Gas-GHG)) उत्सर्जन में 2.2% की वृद्धि होती है। सिंचाई दक्षता में 1% की वृद्धि से GHG उत्सर्जन में 20% की कमी आती है, अत: कार्यक्रम में सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों यथा- स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई आदि को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे न केवल फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी अपितु साथ ही कम जल सघन फसलों (Water Intensive) की दिशा में इन फसलों का विस्थापन होगा।
जल-बजट और जल सुरक्षा योजनाएँ
(Water Budgets and Water Security Plans-WSPs):
- योजना में समुदाय-संचालित विकास की प्राप्ति की दिशा में बॉटम-अप (Bottom-Up) नियोजन प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। WSPs योजना के अंतर्गत भू-जल स्तर में सुधार लाने और प्रस्तावित कार्यों को लागू करने के लिये राज्यों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- सामुदायिक नेतृत्व आधारित प्रबंधन उपायों को अपनाने से जल उपयोगकर्त्ताओं को जल उपभोग प्रतिरूप को समझने में मदद मिलेगी, साथ ही यह उन आर्थिक उपायों को अपनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा जो भू-जल खपत में कमी लाएं।
भारत में भू-जल का महत्त्व:
- पिछले कुछ दशकों में लाखों निजी कुओं के निर्माण के कारण भू-जल के दोहन में तेजी आई है 1950- 2010 दशकों के मध्य ड्रिल नलकूपों की संख्या 1 मिलियन से बढ़कर लगभग 30 मिलियन हो गई। इसके कारण भू-जल सिंचित क्षेत्र 3 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 35 मिलियन हेक्टेयर से अधिक हो गया। वर्तमान में कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 60% क्षेत्र नलकूपों द्वारा सिंचित है।
- भारत में 80% से अधिक ग्रामीण और शहरी घरेलू जलापूर्ति भू-जल द्वारा होती है, जो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा भू-जल का उपयोगकर्त्ता बनाता है, अत: इसकी कमी चिंता का प्रमुख कारण है।
- यदि यही स्थिति जारी रही तो लगभग 60% ज़िले अगले दो दशकों में गंभीर भू-जल गिरावट के स्तर तक पहुँच सकते हैं। इसके कारण कम-से-कम 25% कृषि उत्पादन क्षेत्र जोखिम में होगा, साथ ही जलवायु परिवर्तन से भू-जल संसाधनों पर लगातार दबाव बढे़गा।