चुनाव आयुक्तों को अधिक शक्तियाँ देने के पक्ष में याचिका दायर | 25 Oct 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका में यह मांग की गई है कि चुनाव आयुक्तों को उनके पद से हटाने के लिये उसी तरह की प्रक्रिया का सहारा लिया जाए जैसी ‘मुख्य चुनाव आयुक्त’ को हटाने के लिये अमल में लाई जाती है।
याचिका से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
- याचिका में कहा गया है कि मौजूदा समय में निर्वाचन आयोग के पास जो शक्तियाँ हैं उनमें वह सरकार पर पूरी तरह से निर्भर है। कई मामलों में वह केवल सलाह दे सकता है, जबकि उसके पास कानून बनाने की शक्तियाँ होनी चाहिये।
- दरअसल, मुख्य निर्वाचन आयुक्त को संसद की पूर्व सहमति से राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है, जबकि अन्य आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त के परामर्श पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
- अर्थात् मुख्य निर्वाचन आयुक्त को संसद महाभियोग के माध्यम से पद से हटा सकती है परंतु इस तरह का संरक्षण अन्य दो आयुक्तों को प्राप्त नहीं है। आयोग के तीनों ही सदस्यों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के जैसी ही सुविधाएँ दी जाती हैं, किन्तु अधिकारों के मामले में उनकी भूमिका केवल सलाहकार की तरह होती हैं। याचिका में चुनाव आयुक्तों के इस तरह से पद से हटाए जाने पर सवाल उठाया गया है।
निर्वाचन आयोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
- भारत का निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। 25 जनवरी 1950 को आयोग की स्थापना की गई और यही कारण है कि 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य आयुक्त होते हैं। सभी का कार्यकाल छह साल का होता है, लेकिन आयु सीमा 65 साल निर्धारित की गई है।
- निर्वाचन आयोग से संबंधित प्रावधान भारतीय संविधान के भाग 15 के अनुच्छेद 324 से लेकर अनुच्छेद 329 तक में उपबंधित हैं।
- भारत में प्रतिनिधि लोकतंत्र है जिसमें जनता द्वारा निर्वाचित जन-प्रतिनिधि शासन में भाग लेते हैं। अतः जन-प्रतिनिधियों का चुनाव निष्पक्ष ढंग से हो सके, इसके लिये संविधान के अनुच्छेद 324 में स्वतंत्र और निष्पक्ष एवं संवैधानिक निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है।