नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय विरासत और संस्कृति

ढोकरा शिल्प कला (Dhokra sculptures)

  • 08 Nov 2018
  • 3 min read

संदर्भ

ढोकरा कला दस्तकारी की एक प्राचीन कला है। बस्तर ज़िले के कोंडागाँव के कारीगर ढोकरा मूर्तियों पर काम करते हैं जिसमें पुरानी मोम-कास्टिंग तकनीक का उपयोग करके मूर्तियाँ बनाईं जाती हैं।

ढोकरा शिल्पकारों की समस्या

  • ढोकरा कारीगरों के अनुसार, वर्तमान में इन कारीगरों की सबसे बड़ी समस्या है- जीएसटी। नई टैक्स प्रणाली का पालन कर पाना मुश्किल है और इसके कारण इनके द्वारा निर्मित मूर्तियों की बिक्री लगभग आधी हो गई है।
  • वर्तमान बाज़ार में इस कला के पारंपरिक स्वरुप बदल गया है। मधुमक्खियों से प्राप्त मोम जो कि इस कला की प्राथमिक आवश्यकता थी, अब उसका अधिक उपयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि यह इतनी महँगी हो चुकी है कि इसे खरीदना आसान नहीं है।
  • पारंपरिक पशु मूर्तियों- घोड़े, हाथी, ऊँट और ऐसी ही अन्य मूर्तियाँ- धीरे-धीरे पेपरवेट्स, पेन होल्डर, मोमबत्ती होल्डर जैसी अधिक कार्यात्मक चीज़ों द्वारा प्रतिस्थापित की जा रही हैं।

पृष्ठभूमि

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न कलाओं व संस्कृतियों का मिश्रण देखने को मिलता है। सभी प्रकार की कलाएँ किसी-न-किसी रूप में इतिहास से जुडक़र अपनी गौरवशाली गाथा का बखान करती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की ढोकरा कला भी इन्हीं कलाओं में से एक है। इस कला का दूसरा नाम घढ़वा कला भी है। यह कला प्राचीन होने के साथ-साथ असाधारण भी है।

  • इस कला में तांबा, जस्ता व रांगा (टीन) आदि धातुओं के मिश्रण की ढलाई करके मूर्तियाँ, बर्तन, व रोज़मर्रा के अन्य सामान बनाए जाते हैं।
  • इस प्रक्रिया में मधुमक्खी के मोम का इस्तेमाल होता है। इसलिये इसे मोम क्षय विधि (Vax Loss Process) भी कहते हैं।
  • इस कला का उपयोग करके बनाई गई मूर्ति का सबसे पुराना नमूना मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त नृत्य करती हुई लड़की की प्रसिद्ध मूर्ति है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow