मणिपुर में होने वाली ‘अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं’ की जाँच | 15 Jul 2017
संदर्भ
उल्लेखनीय है कि विवादित ‘सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम’ के तहत अशांत क्षेत्रों में सुरक्षा और सशस्त्र बलों को प्राप्त विशेषाधिकारों पर प्रहार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को विद्रोह के दौरान उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में पुलिसकर्मियों और सशस्त्र बलों द्वारा की गई 80 नागरिकों की हत्याओं की जाँच करने का आदेश दिया है|
प्रमुख बिंदु
- अपने निर्णय में न्यायाधीश मदन.बी लोकुर और यू.यू ललित की खंडपीठ ने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि सशस्त्र बलों द्वारा किये गए ये अपराध उचित हैं और उनकी जाँच करने की कोई आवश्यकता नहीं है|
- सरकार ने न्यायालय को यह आश्वासन दिया कि पीड़ितों के परिवारों को उनके परिवार के सदस्यों को खोने पर मुआवज़ा दे दिया गया था|
- सरकार ने स्पष्टीकरण दिया कि मणिपुर की पुलिस ने इस प्रकार की हत्याओं की जाँच करने में लापरवाही बरती है तथा इसके लिये सरकार ने इस संवेदनशील राज्य के स्थानीय दबाव और सतही परिस्थितियों को ही ज़िम्मेदार ठहराया| सरकार के अनुसार, ये फर्ज़ी मुठभेड़ों के मामले काफी पुराने हैं|
न्यायालय की प्रतिक्रिया
- यदि कोई ऐसा अपराध किया गया है, जिसमें ऐसे व्यक्ति की मौत हुई हो, जो निर्दोष हो तो इसे अवश्य ही संज्ञान में लिया जाएगा|
- पीड़ितों के माता-पिता और परिवार के सदस्यों ने 1,528 हत्याओं के लिये न्यायालय से जवाब-तलब किया है| इन हत्याओं को ‘अतिरिक्त न्यायिक हत्याएँ’(extra-judicial killings) कहा गया है| अतिरिक्त न्यायिक हत्याएं उन हत्याओं को कहा जाता है जो कथित तौर पर पुलिस और केंद्र के सशस्त्र बलों की पोशाक में सामान्य कर्मचारियों द्वारा की जाती हैं|
- सेना प्रमुखों के आज्ञापत्रों में भी इस सिद्धांत को स्वीकार किया गया है कि वर्दीधारी कर्मियों द्वारा अत्यधिक बल अथवा जवाबी बल के परिणामस्वरूप होने वाली हत्याओं की पूर्ण जाँच होनी आवश्यक है|
- यदि मणिपुर में कानून का उल्लंघन होता है तो केंद्र को आगे कदम उठाना होगा| क्योंकि राज्य इस संबंध में कोई भी कार्यवाही नहीं कर रहा है तथा समय को नष्ट कर रहा है| यह इस समय का उपयोग इन मामलों की जाँच करने में कर सकता है|
- न्यायालय पीड़ितों और जीवन व संपत्ति को खोने वाले व्यथित परिवारों की याचिकाओं को नज़रंदाज़ नहीं कर सकता है| न्यायालय का कहना था कि मुआवज़े की छोटी राशि मारे गए लोगों के परिवारों के कष्टों का निवारण करने के लिये पर्याप्त नहीं है|
- अब तक मणिपुर के पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कोई भी एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई थी? हालिया परिस्थितियों में यह उचित नहीं होगा कि हम भेदभाव रहित जाँच के लिये मणिपुर पुलिस पर निर्भर हो जाएँ| यदि सीबीआई इन फर्जी मुठभेड़ों और अत्यधिक अथवा जवाबी बलों के उपयोग की जाँच करती है तो यह निश्चित ही एक अच्छा कदम होगा|
- पीठ ने सीबीआई के निदेशक को पाँच अधिकारियों के एक समूह की नियुक्ति करने का आदेश दिया है| यह समूह मामलों ,आवश्यक सूचनाओं का रिकॉर्ड रखेगा तथा 31 दिसम्बर 2017 तक अपनी जाँच को पूरा करेगा| इसके अतिरिक्त जहाँ आवश्यक हो वहाँ यह समूह चार्जशीट भी तैयार करेगा|
- न्यायालय ने सीबीआई प्रमुख को दो सप्ताह के अंदर न्यायालय को जाँच की सूचना देने का आदेश दिया है|
अफस्पा क्या है?
- संसद ने अफस्पा को वर्ष 1958 में अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियाँ देने के उद्देश्य से लागू किया था| इस अधिनियम के तहत सेना के अधिकारियों और जवानों को अशांत क्षेत्रों में उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के लिये क़ानूनी संरक्षण प्राप्त है|
- इस अधिनियम के अंतर्गत, भारतीय सशस्त्र बल का किसी भी सदस्य पर अशांत क्षेत्र में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए किसी भी प्रकार की क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती|
- वर्तमान में अफस्पा असम, जम्मू एवं कश्मीर, नागालैंड,मणिपुर(इम्फाल के नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर),अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में लागू है|