अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ज़िला अस्पतालों में कुछ सेवाओं का निजीकरण
- 21 Jul 2017
- 4 min read
संदर्भ
सरकार, सरकारी अस्पतालों का व्यापक निजीकरण करने जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय एवं नीति आयोग ने निजी अस्पतालों को ज़िला सरकारी अस्पतालों में 30 वर्ष के पट्टे पर कुछ चयनित सेवाओं को चलाने के लिये एक ढाँचा तैयार किया है।
प्रमुख बिंदु
- यह परियोजना टीयर 2 एवं टीयर 3 शहरों (छोटे शहरों) के ज़िला अस्पतालों में शुरू की जाएगी।
- इस सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत केवल तीन गैर-संचारी रोगों - हृदय रोग, फुफ्फुसीय रोग और कैंसर, की देखभाल की जाएगी।
- नीति आयोग द्वारा तैयार किया गया एक मॉडल अनुबंध 5 जून को राज्य सरकारों को भेज दिया गया है। राज्यों को जवाब देने के लिये दो सप्ताह का समय दिया गया है।
- इस दस्तावेज़ का प्रारूप उद्योग, स्वास्थ्य मंत्रालय और कुछ राज्यों के प्रतिनिधियों के एक कार्यदल द्वारा तैयार किया गया था।
- सिविल सोसाइटी एवं पीपल्स हेल्थ मूवमेंट ऑफ इंडिया ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है। उनका कहना है कि सरकार इसके बदले में कुछ भी हासिल किये बिना महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक संपत्तियों को निजी क्षेत्र को सौंप रही है।
राज्य का विषय
- आलोचकों का कहना है कि नीति आयोग स्वास्थ्य नीति बनाने के लिये सक्षम नहीं है, क्योंकि स्वास्थ्य भारत में राज्य का विषय है। इस विषय पर नियम-कानून बनाने की शक्तियाँ राज्यों के पास हैं।
- योजना आयोग को समाप्त करने के पीछे यही तर्क था कि नीतियों को केंद्रीकृत नहीं किया जा रहा था। नीति आयोग एक सलाहकारी निकाय है, लेकिन यहाँ वह एक ऐसी नीति बना रहा है, जो निजी क्षेत्र को सार्वजनिक संपत्तियाँ मुहैया कराएगा।
- मसौदा प्रारूप के अनुसार, निजी अस्पताल पूरे देश के छोटे शहरों में 50 या 100 बिस्तर वाले अस्पतालों की स्थापना के लिये ज़िला अस्पताल भवनों के कुछ हिस्सों पर 30 वर्षीय पट्टों के लिये बोली लगाएंगे। राज्य सरकारें राज्य के भीतर पाँच या छह ज़िला अस्पतालों को पट्टे पर दे सकती हैं।
- इसके अलावा, राज्य सरकार ज़िला अस्पतालों के भीतर बुनियादी ढाँचा स्थापित करने के लिये निजी खिलाड़ियों को व्यवहार्यता गैप फंडिंग या एक बार में पैसे देगी।
- इसमें निजी क्षेत्र और राज्य स्वास्थ्य विभाग एम्बुलेंस सेवाओं, रक्त बैंकों, और मुर्दाघर सेवाओं का साझा उपयोग करेंगे।
- इसके बारे में एक प्रमुख चिंता यह है कि इसके वित्तीय संरचना के सिद्धांतों के तहत दस्तावेज़ में कहा गया है कि इन सुविधाओं में कोई निशुल्क बेड नहीं होगा या कोई मुफ्त सेवा के लिये कोटा नहीं होगा।
- इसमें विशेष रूप से परेशान करने वाला सुझाव यह है कि इसके तहत केवल गरीबी रेखा के नीचे के रोगी और बीमा लाभार्थी ही नि:शुल्क देखभाल का उपयोग करने में सक्षम होंगे। यह प्रस्ताव महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं से लाखों भारतीय आबादी को प्रभावी ढंग से बाहर कर देगा।
- यदि इस प्रस्ताव को लागू किया गया है, तो यह सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, जो कि एक महत्त्वपूर्ण धारणीय विकास लक्ष्य भी है, से भारत को कोसो दूर कर देगा।