बैंकों का निजीकरण | 12 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2021 के तहत आगामी वित्तीय 2021-22 में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण की घोषणा की गई है।
- वर्ष 1969 में सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 51 वर्ष बाद उठाया जा रहा कदम, भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका को और अधिक महत्त्वपूर्ण बना देगा।
- वर्तमान में भारत में 22 निजी बैंक और 10 छोटे वित्त बैंक हैं।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि
- केंद्र सरकार ने वर्ष 1969 में देश के 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया था, इस निर्णय का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को तत्कालीन सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण के साथ संरेखित करना था।
- भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का वर्ष 1955 में और देश के बीमा क्षेत्र का वर्ष 1956 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था।
- पिछले 20 वर्षों में विभिन्न सरकारें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के विरुद्ध रही हैं। वर्ष 2015 में सरकार ने निजीकरण का सुझाव प्रस्तुत किया था, हालाँकि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के तत्कालीन गवर्नर इस विचार के पक्ष में नहीं थे।
- बैंकों द्वारा पूर्ण स्वामित्व वाली एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (बैड बैंक) की स्थापना के साथ निजीकरण के वर्तमान प्रयास वित्तीय क्षेत्र में चुनौतियों से निपटने के लिये बाज़ार आधारित समाधान खोजने के दृष्टिकोण का नेतृत्त्व करते हैं।
- केंद्र सरकार ने वर्ष 1969 में देश के 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया था, इस निर्णय का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को तत्कालीन सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण के साथ संरेखित करना था।
- निजीकरण का कारण
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की खराब वित्तीय स्थिति:
- केंद्र सरकार द्वारा वर्षों तक पूंजीगत निवेश और शासन व्यवस्था में सुधार किये जाने के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया है।
- इनमें से कई सार्वजानिक बैंकों की तनावग्रस्त संपत्तियाँ निजी बैंकों की तुलना में काफी अधिक हैं और साथ ही उनकी लाभप्रदता, बाज़ार पूंजीकरण और लाभांश भुगतान रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है।
- दीर्घकालिक परियोजना का हिस्सा
- दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है। यह कार्य या तो मज़बूत बैंकों को समेकित करके या फिर बैंकों का निजीकरण कर किया जाएगा।
- सरकार की प्रारंभिक योजना चार बैंकों के निजीकरण की थी। पहले दो बैंकों के सफल निजीकरण के बाद सरकार आने वाले वित्तीय वर्षों में अन्य दो या तीन बैंकों के विनिवेश पर ज़ोर दे सकती है।
- यह निर्णय सरकार, जो कि बैंकों में सबसे बड़ी हिस्सेदार है, को बैंकों को वर्ष-प्रतिवर्ष वित्तीय सहायता प्रदान करने के दायित्व से मुक्त करेगा।
- बीते कुछ वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप अब सरकार के पास केवल 12 सार्वजनिक बैंक मौजूद हैं, जिनकी संख्या पूर्व में कुल 28 थी।
- दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से एक दीर्घकालिक परियोजना की शुरुआत होगी, जिसके तहत भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में कुछ चुनिंदा सार्वजनिक बैंकों की परिकल्पना की गई है। यह कार्य या तो मज़बूत बैंकों को समेकित करके या फिर बैंकों का निजीकरण कर किया जाएगा।
- बैंकों को मज़बूती प्रदान करना
- सरकार बड़े बैंकों को और अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास कर रही है तथा साथ ही निजीकरण के माध्यम से बैंकों की संख्या में भी कमी की जा रही है।
- अलग-अलग समितियों की सिफारिशें
- कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है:
- नरसिम्हन समिति ने हिस्सेदारी को 33 प्रतिशत तक सीमित करने की बात की थी।
- पी.जे. नायक समिति ने हिस्सेदारी को 50 प्रतिशत से कम करने का सुझाव दिया था।
- RBI के एक कार्यकारी समूह ने हाल ही में बैंकिंग क्षेत्र में बड़े व्यावसायिक घरानों के प्रवेश का सुझाव दिया है।
- कई समितियों ने सार्वजनिक बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा है:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की खराब वित्तीय स्थिति:
- बैंकों का चुनाव
- जिन दो बैंकों का निजीकरण किया जाना है, उनका चयन एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से होगा, जिसमें नीति आयोग द्वारा बैंकों की सिफारिश की जाएगी और विनिवेश पर सचिवों के एक समूह और फिर वैकल्पिक तंत्र (मंत्रियों के समूह) द्वारा विचार जाएगा।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से संबंधित समस्याएँ
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की उच्च मात्रा
- सरकार द्वारा विलय और इक्विटी इंजेक्शन के कई प्रयासों के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रदर्शन में पिछले कुछ वर्षों में सुधार देखा गया है। हालाँकि निजी बैंकों की तुलना में सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के पास गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की मात्रा काफी अधिक है, किंतु बीते कुछ समय से इस मात्रा में गिरावट आनी शुरू हो गई है।
- कोरोना महामारी का प्रभाव
- कोरोना वायरस महामारी से संबंधित विनियामक छूट हटाए जाने के बाद बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) में बढ़ोतरी होने की उम्मीद की जा रही है।
- RBI की हालिया वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, सभी वाणिज्यिक बैंकों का सकल NPA अनुपात सितंबर 2020 में 7.5 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2021 तक 13.5 प्रतिशत हो सकता है।
- इसका अर्थ होगा कि सरकार को फिर से सार्वजनिक क्षेत्र के कमज़ोर बैंकों में इक्विटी को इंजेक्ट करने की आवश्यकता होगी।
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की उच्च मात्रा
- निजी क्षेत्र के बैंकों का प्रदर्शन
- बाज़ार हिस्सेदारी में बढ़ोतरी
- बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण में निजी बैंकों की हिस्सेदारी वर्ष 2015 में 21.26 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020 में 36 प्रतिशत हो गई है, जबकि इसी अवधि में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी 74.28 प्रतिशत से गिरकर 59.8 प्रतिशत पर पहुँच गई है।
- बेहतर उत्पाद और सेवा
- रिज़र्व बैंक ने वर्ष 1990 के दशक में निजी बैंकों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी थी, तब से बैंकिंग प्रणाली में प्रतिस्पर्द्धा काफी तेज़ हो गई है। निजी बैंकों ने नए उत्पादों, प्रौद्योगिकी और बेहतर सेवाओं के माध्यम से बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी का विस्तार किया है तथा शेयर बाज़ार में भी बेहतर स्थान हासिल किया है।
- HDFC बैंक (1994 में स्थापित) का बाज़ार पूंजीकरण तकरीबन 8.80 लाख करोड़ रुपए है, जबकि SBI का 3.50 लाख करोड़ रुपए है।
- बाज़ार हिस्सेदारी में बढ़ोतरी
- निजी क्षेत्रों से संबंधित समस्याएँ
- औद्योगिक ऋण और निवेश निगम (ICICI) बैंक के प्रबंध संचालक (MD) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) को कथित रूप से संदिग्ध ऋण देने के लिये बर्खास्त कर दिया गया।
- ‘यस बैंक’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) को रिज़र्व बैंक द्वारा एक्सटेंशन नहीं दिया गया था और अब उन्हें विभिन्न एजेंसियों की जाँच का सामना करना पड़ रहा है।
- ‘लक्ष्मी विलास बैंक’ को परिचालन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा और हाल ही में उसका DBS बैंक ऑफ सिंगापुर में विलय हो गया।
- NPA रिकॉर्डिंग में कमी
- रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2015 में जब बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा का आदेश दिया था, तो ‘यस बैंक’ सहित निजी क्षेत्र के कई अन्य बैंकों के NPA की रिपोर्टिंग में कमी देखने को मिली थी।
आगे की राह
- सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों के शासन और प्रबंधन में सुधार के लिये पी.जे. नायक समिति की सिफारिशों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
- बिना सही ढंग से विचार किये निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ने से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जीवन बीमा निगम (LIC) जैसा निगम का स्वरूप दिया जा सकता है। सरकारी स्वामित्व को बनाए रखते हुए सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक स्वायत्तता दी जानी चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस