‘कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग’ को अधिक निवेश की आवश्यकता | 04 Nov 2017

संदर्भ

हाल ही में विश्व खाद्य भारत ( World Food India -WFI) 2017, के अवसर पर एकत्रित प्रतिष्ठित व्यक्तियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहा था कि निजी क्षेत्रों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (contract farming), कच्चे माल के स्रोतों और कृषि आधारित उत्पादों में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है क्योंकि भारत एक  बड़ा आउटसोर्सिंग हब (outsourcing hub) है| 

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • ‘वातित पेय’ (aerated drinks) विनिर्माणकर्त्ताओं को अपने उत्पादों में 5% फलों का रस मिलाना चाहिये, यह लाभकारी होगा क्योंकि फलों के रस वाले पेय भारतीयों की खाद्य आदतों का एक प्रमुख भाग है।
  • भारत में मोटे अनाज और बाजरे के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाने के लिये प्रचुर मात्र में पोषण युक्त और जलवायु अनुकूल फसलों पर आधारित उद्यमों की स्थापना पर बल देना होगा। इनमें न केवल पोषक तत्त्व उच्च मात्रा में पाए जाते हैं बल्कि ये विपरीत कृषि जलवायु परिस्थितियों में भी उगाए जा सकते हैं।
  • डब्ल्यू.एफ.आई. एक तीन दिवसीय बड़ा समारोह था जिसमें भारत के 28 राज्यों के प्रतिनिधियों और घरेलू खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के प्रमुखों के साथ-साथ लगभग 2,000 प्रतिस्पर्धी, 30 देशों की 200 से अधिक कंपनियाँ,18 मंत्रिस्तरीय और व्यापार प्रतिनिधिमंडल, विश्व भर के तक़रीबन 50 सीईओ ने प्रतिभाग किया था।
  • यदि विगत वर्षों की बात करें तो भारत के पास फसल होने के बाद उसके प्रबंधन के भी कई तरीके विद्यमान थे जैसे-उसका प्राथमिक प्रसंस्करण और भंडारण, बचाव, कोल्ड चैन और फिर फ्रिज़ में रखना। इसके अतिरिक्त, भारत में खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य वर्धन (मूलतः कार्बनिक और दृढ़ खाद्य पदार्थों में) की भी क्षमता थी।
  • कई राज्यों ने निवेशों को आकर्षित करने के लिये आकर्षक खाद्य प्रसंस्करण नीतियों को अपनाया था।
  • यदि भारतीय खाद्य उद्योग के उन उप-क्षेत्रों की बात की जाए जिनमें किसानों की आय में वृद्धि करने की क्षमता है तो भारत को डेयरी क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना चाहिये, जो ग्रामीण अर्थव्यवथा का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
  • वर्तमान में ‘शहद’ के उत्पादन और निर्यात में भारत का छठा स्थान है। स्पष्ट है कि भारत अब ‘मीठी क्रांति’ (sweet revolution) के लिये भी तैयार हो चुका है।
  • भारत लगभग 95 देशों को मछली और मत्स्य उत्पादों का निर्यात करता है। भारत का उद्देश्य ‘नीली क्रांति’ के माध्यम से महासागरीय अर्थव्यवस्था में बढ़त हासिल करना है। भारत अनछुए क्षेत्रों जैसे -सजावटी मत्स्य पालन और ट्राउट का उत्पादन के विकास पर भी बल दे रहा है।
  • भारत नए क्षेत्रों जैसे-पर्ल फार्मिंग को विकसित करने के लिये भी प्रयासरत् है। सतत् विकास लक्ष्यों के प्रति जताई गई प्रतिबद्धता के कारण ही भारत में ऑर्गनिक कृषि पर बल दिया जा रहा है। 
  • आज स्वच्छ, पौष्टिक और स्वादिष्ट प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को भारत में बनाया जा सकता है। ये स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होंगे। 
  • पाँच वर्षों के भीतर कृषि आय को दोगुना करने के लिये प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना चलाई जाएगी। इसका उद्देश्य 5 बिलियन डॉलर विश्व समतुल्य खाद्य प्रसंस्करण अवसंरचना का सृजन करना है, जिससे दो मिलियन किसानों को लाभ पहुँचेगा और इससे अगले तीन वर्षों में करीब 5 लाख रोज़गारों का सृजन किया जाएगा।
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में मेगा फूड पार्कों का सृजन करना है। देश में ऐसे नौ पार्क निर्माणाधीन हैं, और इसके तहत 30 से अधिक अन्य पार्कों का निर्माण भी शामिल है।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को खरीददार और किसानों के मध्य हुए एक समझौते के अनुसार किये जाने वाले कृषि उत्पादन के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें कृषि उत्पादों के उत्पादन और विपणन के लिये कुछ मानक स्थापित किये गए हैं। आमतौर पर किसान एक विशेष कृषि उत्पाद की उपयुक्त मात्रा खरीददारों को देने के लिये सहमति व्यक्त करते हैं, जबकि खरीददार उस उत्पाद को खरीदने के लिये अपनी स्वीकृती देता है। 

लाभ

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कृषि उत्पाद और खाद्य प्रसंस्करण फर्मों से उत्पादक को होने वाले लाभ को देखा जाता है। 
  • यह छोटे स्तर के किसानों को प्रतिस्पर्धी बना देता है। इसमें आने वाली लागत को कम करने के लिये छोटे किसान तकनीकी, ऋण, विज्ञापन चैनलों और सूचना प्रणालियों की सहायता लेते हैं।
  • इस प्रकार उनके उत्पाद के लिये उन्हें आसानी से बाज़ार मिल जाता है, जिससे बाज़ार में जाकर किये जाने वाले लेन-देनों और अनावश्यक खर्चों में कमी आती है।
  • इससे उनकी उपज की गुणवत्ता बनी रहती है।
  • कृषि प्रसंस्करण स्तरों के मामले में यह कृषि उत्पाद की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करता है जोकि समय-समय पर होती रहती है और इसकी लागत भी कम होती है।
  • कृषि उत्पाद के लिये मूल्य का निर्धारण उत्पादक और फर्मों के मध्य वार्ता करके किया जाता है।
  • किसान नियमों और शर्तों के तहत निर्धारित मूल्यों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में प्रवेश करते हैं।

चुनौतियाँ

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की व्यवस्थाओं की प्रायः आलोचना की जाती है क्योंकि ये दोतरफी हैं, ये फर्मों और बड़े किसानों के पक्ष में हैं और छोटे किसानों की बहस करने की क्षमता को नजरंदाज़ कर देती हैं।
  • इसमें किये गए करार समझौते अक्सर मौखिक या अनौपचारिक होते हैं। यहाँ तक कि लिखित अनुबंध को भी भारत में किसी प्रकार का कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है। 
  • इसमें खरीददार एक होता है जबकि विक्रेता अनेक।
  • प्रतिकूल लिंग प्रभाव –पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भागीदारी अपेक्षाकृत कम है।

नीति समर्थन

  • कृषि विपणन को राज्यों के कृषि उत्पाद विपणन विनियमन (Agricultural Produce Marketing Regulation-APMR) अधिनियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को विकसित अथवा विनियमित करने के लिये सरकार, राज्यों अथवा संघ शासित क्षेत्रों को उनके कृषि विपणन कानूनों में सुधार करने की सलाह दे रही है, ताकि इसमें देश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रायोजकों के पंजीकरण की व्यवस्था, उनके समझौतों की रिकॉर्डिंग और विवाद निवारण तंत्र को शामिल किया जा सके।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में नाबार्ड की पहल

  • नाबार्ड ने कृषि फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और किसानों के लिये  विपणन अवसरों का सृजन करने के उद्देश्य से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग व्यवस्थाओं के लिये एक विशेष पुनर्वित्त पैकेज बनाया है। इस दिशा में नाबार्ड द्वारा विभिन्न पहलों की शुरुआत की गई है-

♦ वित्तीय हस्तक्षेप
♦ कृषि निर्यात क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने वाले किसानों के वित्तपोषण के लिये विशेष पुनर्वित्त पैकेज
♦ पुनर्भुगतान के लिये 3 वर्ष की समयावधि
♦ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत आने वाली फसलों के लिये उच्च वित्त का निर्धारण
♦ स्वचालित पुनर्वित्त सुविधा के तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए पुनर्वित्त योजना का विस्तार।