भारत में जेल सुधार और इससे संबंधित चुनौतियाँ | 14 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (Bureau of Police Research and Development-BPRD) द्वारा 12 एवं 13 सितंबर, 2019 को ‘जेलों में आपराधिक गतिविधियाँ और कट्टरता : कैदियों एवं जेल कर्मचारियों की असुरक्षा और उनका संरक्षण’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- इस अवसर पर जेल सुधार के क्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा की गई और इसके साथ ही जेल प्रणालियों एवं संबंधित मानव संसाधन को बेहतर बनाने के लिये एक नीति बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- उल्लेखनीय है कि जेलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने, कैदियों के रहन-सहन का स्तर बेहतर करने और जेलों को एक सुधार केंद्र में तब्दील करने की ज़रूरत है।
भारत में जेल सुधार की आवश्यकता:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में भारतीय जेलों में क्षमता से 14 गुना अधिक कैदी बंद थे। वर्ष 2015 के बाद भी इन आँकड़ों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है, परंतु चिंतनीय स्थिति यह है कि इस अवधि में जेलों की संख्या में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई है।
- उपरोक्त आँकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जेलों में कैदियों की स्थिति कितनी खराब है। जेल सांख्यिकी 2015 के अनुसार, जेल की खराब स्थिति के कारण वर्ष 2015 में कुल 1,584 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
- जानकारों के अनुसार, जेलों की खराब स्थिति और उसमें आवश्यकता से अधिक कैदी होने का मुख्य कारण न्यायालयों में लंबित मामलों की एक बड़ी संख्या है। वर्ष 2017 में सरकार ने सूचित किया था कि भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 2 करोड़ 60 लाख से अधिक हो गई है।
- इसकी एक अन्य वजह न्यायिक प्रक्रिया का महँगा हो जाना भी है, आज देश में कई कैदी सिर्फ इसलिये जेल में रहते हैं, क्योंकि उनके पास ज़मानत के लिये पैसे नहीं हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, देश की जेलों में लगभग 70 फीसदी कैदी ऐसे हैं जिन पर अभी तक जुर्म साबित भी नहीं हो पाया है।
- साथ ही जेलों में कैदियों की अधिक संख्या होने के कारण उन्हें आवश्यक पौष्टिक आहार तथा स्वच्छ वातावरण भी नहीं मिल पाता है।
- जेल सुधार के संदर्भ में कई समाज सेवकों ने यह प्रश्न उठाया है कि भारतीय राजनेता इस ओर मात्र इसलिये ध्यान नहीं देते क्योंकि जेलों में बंद कैदी उनकी वोट बैंक सीमा में नहीं आते।
जेल सुधार की चुनौतियाँ :
- जेलों में ज़रूरत से ज़्यादा कैदियों को रखा जाना।
- विचाराधीन कैदियों की अधिक संख्या।
- जेलों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ।
- जेलों में आपराधिक गतिविधियाँ एवं कट्टरता।
- महिला कैदियों एवं उनके बच्चों की सुरक्षा।
- समुचित जेल प्रशासन के लिये धन एवं स्टाफ की कमी।
जेल सुधार हेतु प्रयास
- जेल आधुनिकीकरण योजना: जेल आधुनिकीकरण योजना की शुरुआत वर्ष 2002-03 में जेलों, कैदियों और जेलकर्मियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस योजना में नई जेलों का निर्माण, मौजूदा जेलों की मरम्मत और नवीनीकरण, स्वच्छता और जल आपूर्ति में सुधार आदि शामिल थे।
- ई-जेल परियोजना: ई-जेल परियोजना का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन की दक्षता को बढ़ाना है। ई-जेल परियोजना जेल प्रबंधन में कैदी सूचना प्रबंधन प्रणाली (Prisoner Information Management system-PIMS) को जोड़ती है जो कैदियों की जानकारी को रिकॉर्ड करने और प्रबंधित करने तथा विभिन्न प्रकार की रिपोर्ट बनाने के लिये सहायक है।
- मॉडल जेल मैनुअल, 2016: यह मैनुअल जेल कैदियों के लिये उपलब्ध कानूनी सेवाओं (मुफ्त सेवाओं सहित) के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority-NALSA): NALSA ने विचाराधीन कैदियों को मुफ्त कानूनी सेवाओं सहित कई अन्य सेवाएँ देने के लिये एक वेब आधारित एप्लीकेशन की शुरुआत की थी। इस एप्लीकेशन का उद्देश्य कानूनी सेवा प्रणाली को अधिक पारदर्शी और उपयोगी बनाना था।
- जेल सुधारों और सुधारात्मक प्रशासन पर राष्ट्रीय नीति मसौदा: इस मसौदे के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- जेलों को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल करना।
- जेलों से संबंधित मामलों पर एक समान और व्यापक कानून का निर्माण।
- प्रत्येक राज्य में जेल और सुधार सेवाओं संबंधी एक विभाग का निर्माण।
- सभी राज्य प्रत्येक जेल और संबंधित संस्थान में रहने की स्थिति में सुधार करेंगे।
आगे की राह
- जेल संबंधी सुधारों को निम्नलिखित दो समस्याओं से निपटने के लिये तैयार किया जाना चाहिये:
- जेल प्रशासन में संसाधनों की कमी।
- यह मानसिकता कि जो जेल में रहते हैं वे सुविधाओं के लायक नहीं हैं।
- कैदियों की अधिक संख्या, जेल में क्रूरता और कट्टरता, स्वच्छता की कमी तथा जेल में रहन-सहन के अस्वीकार्य मानकों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये।