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कृषि

भू-प्रजातियों का संरक्षण

  • 13 Nov 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग, हाइब्रिड क्रॉप्स, पद्म श्री पुरस्कार

मेन्स के लिये:

भू-प्रजाति फसलों एवं संकर फसलों में अंतर, भू-प्रजातियों की उपयोगिता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र के अहमदनगर के अकोले तालुका की निवासी राहीबाई पोपेरे (Rahibai Popere) को पद्म श्री पुरस्कार दिया गया, जिन्हें सीडमदर (Seedmother) के नाम से जाना जाता है।

  • उन्हें उनके काम की पहचान के लिये सम्मानित किया गया, उन्होंने गाँव स्तर पर सैकड़ों भू-प्रजातियों (आमतौर पर उगाई जाने वाली फसलों की जंगली किस्मों) को संरक्षित करने में मदद की है।
  • वर्तमान में किसान मुख्यत: संकर फसलें (Hybrid Crops) उगाते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • संकर फसलें (Hybrid Crops):
    • परिचय: हाइब्रिड क्रॉप या संकर फसल वह है जो दो या अधिक पौधों के क्रॉस-परागण/संकरण (Cross-Pollinated) द्वारा उत्पन्न होती है जो एक ऑफ-स्प्रिंग या हाइब्रिड बनाने के लिये प्रयोग होती है जिसमें प्रत्येक प्रजाति के सर्वोत्तम लक्षण होते हैं।  
      • उदाहरण: हाइब्रिड चावल और गेहूँ को एक समयावधि में चयनात्मक प्रजनन द्वारा वैज्ञानिकों को उच्च उपज या अन्य वांछनीय लक्षणों वाली किस्मों को विकसित करने की अनुमति दी गई है।
      • कई वर्षों से कृषकों द्वारा इन किस्मों को अपनाया जा रहा है।
    • संबंधित मुद्दे: कई दशकों में चयन और प्रजनन के माध्यम से फसल सुधार ने अधिकांश फसलों के आनुवंशिक आधार को संकुचित कर दिया है।
      • जैव विविधता फसलों के लिये चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने हेतु लक्षण विकसित करने के लिये एक प्राकृतिक तंत्र की अनुमति देती है। 
      • हालाँकि फसल चयन में बड़े पैमाने पर मानवीय हस्तक्षेप के कारण अधिकांश व्यावसायिक फसलों में यह क्षमता अब लुप्त हो गई है।
  • भू-प्रजातियाँ: 
    • परिचय: भू-प्रजातियाँ (Landraces) आमतौर पर खेती की जाने वाली फसलों के प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले प्रकारों को संदर्भित करती हैं। 
      • ये व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली फसलों के विपरीत हैं, जिन्हें चयनात्मक प्रजनन (संकर) या जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से दूसरी प्रजातियों पर एक निश्चित विशेषता व्यक्त करने के लिये विकसित किया जाता है।
    • भू-प्रजातियों की उपयोगिता: जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के सामने ऐसी किस्मों को विकसित करना एक चुनौती है जो अजैविक और जैविक दोनों प्रकार के खतरों का सामना कर सकें। 
      • समृद्ध जीन पूल: प्राकृतिक रूप उगने वाली भू-प्रजातियों में अभी भी अप्रयुक्त आनुवांशिक गुणों का एक बड़ा पूल या संयोजक है, जो इनसे जुड़ी समस्याओं का  समाधान प्रदान कर सकता है। 
        • जीन पूल जितना व्यापक होगा, प्रजातियों में एक लक्षण को विकसित करने की संभावना उतनी ही अधिक होगी जो चरम जलवायु घटनाओं से संरक्षण प्रदान करने में मदद कर सकता है।
      • उचित प्रक्रिया के माध्यम से उच्च उपज: यह सामान्य रूप से एक अनुचित धारणा है कि हाइब्रिड की तुलना में भू-प्रजातियों की पैदावार कम होती है। हालाँकि उचित कृषि पद्धतियों के ज़रिये भू-प्रजातियों की फसलें कम लागत के साथ बेहतर उपज प्रदान कर सकती हैं।
      • उच्च पोषक गुण: व्यावसायिक रूप से विकसित किस्मों की तुलना में कई भू-प्रजातियाँ पोषक तत्त्वों से भरपूर होती हैं।
    • भू-प्रजातियों के उदाहरण: कालभात (Kalbhat), सुगंधित चावल की एक अनूठी भू-प्रजातियों में से एक है। 
      • पिछले कुछ वर्षों में यह किस्म काश्तकारों के खेतों से लगभग लुप्त हो गई थी क्योंकि हाइब्रिड किस्मों का उपयोग अधिक होने लगा था। 
      • यह लोकप्रिय रूप से उगाए गए चावल की तुलना में उत्तम जलवायु अनुकूलन प्रजाति है और बाढ़ या सूखे की स्थिति को बेहतर ढंग से झेल सकती है।

आगे की राह 

  • भू-प्रजातियों के संरक्षण की आवश्यकता: वर्तमान में भू-प्रजातियांँ कुछ ही ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जीवित हैं, लेकिन वे भी उचित संरक्षण के अभाव में समाप्त हो रही हैं।
    • इन्हें किस तरह से उगाया जाना चाहिये या बीजों को कैसे बचाया जाए, इस बारे में पारंपरिक ज्ञान भी लुप्त होता जा रहा है।
  • सामुदायिक नेतृत्व कार्यक्रम: BAIF समुदाय के नेतृत्व वाला कार्यक्रम अन्य राज्यों में अनुकरण करने योग्य है।
    • BAIF डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन महाराष्ट्र में पुणे के पास उरली कंचन में स्थित एक धर्मार्थ संगठन है, जो कृषि के विकास में कार्यरत है। इसका उद्देश्य उपलब्ध जर्मप्लाज़्म की पहचान करना और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से बीज बैंक निर्मित करना है।
  • भू-प्रजातियों के क्षेत्र में अनुसंधान: भू-प्रजातियों के जर्मप्लाज़्म (Germplasms) के बारे में अभी बहुत कुछ समझा जाना बाकी है। 
    • यह समझना आवश्यक है कि ये भू-प्रजातियांँ जलवायु लचीली कृषि (Climate-Resilient Agriculture) में किस प्रकार अपना योगदान दे सकती हैं, पोषण संबंधी रूपरेखा भी कमियों से लड़ने में कारगर साबित हो सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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