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प्रीलिम्स फैक्ट्स : 29 अक्तूबर, 2018

  • 29 Oct 2018
  • 9 min read

केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (KWS) में पतंगा

  • केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (KWS) 975 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। यह सबसे आकर्षक जैव विविधता के साथ-साथ मध्यकालीन मंदिरों का भी स्थान है।
  • उत्तराखंड के राजकीय फूल रोडोडेंड्रॉन (Rhododendrons) की 200 से भी अधिक प्रजातियाँ (जिसे उतराखंड के स्थानीय इलाकों में बुरांस के रूप में जाना जाता है) KWS में पाई जाती हैं।
  • उतराखंड के चमोली और रुद्रप्रयाग ज़िलों में फैला केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (KWS) पश्चिमी हिमालय के सबसे प्रमुख संरक्षित क्षेत्रों में से एक तथा लुप्तप्राय कस्तूरी हिरण का आवास है।
  • KWS पतंगा प्रजातियों (Moths) का एक अनमोल आवास है जो जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
  • पतंगा अलग-अलग विभिन्न स्थलों पर व्यापक रूप से पाए जाते हैं। इन स्थलों में समशीतोष्ण, शंकुधारी और अल्पाइन जंगलों से लेकर अल्पाइन घास के मैदान (बुग्याल) तक शामिल हैं।
  • पतंगा प्रजातियाँ वन के स्वास्थ्य संकेतक के रूप में साबित हुए हैं और प्राकृतिक आवास के नष्ट होने तथा जलवायु परिवर्तन की वर्तमान स्थिति में ये बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी पारिस्थितिकी का अध्ययन करना, पारिस्थितिकीय पदानुक्रम में परिवर्तनों को समझने में सहायक होगा।

मिगिनगो द्वीप विवाद

विक्टोरिया झील स्थित मिगिनगो द्वीप पर पड़ोसी केन्या और युगांडा अपनी संप्रभुता का दावा करते रहे हैं। घनी आबादी वाले इस द्वीप का क्षेत्रफल एक हेक्टेयर से भी कम है।

  • एक दशक से भी अधिक समय से मिगिनगो द्वीप केन्या और युगांडा के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। दोनों देश यह निश्चय करने में असमर्थ हैं कि वास्तव में इस द्वीप पर किसकी संप्रभुता है।
  • वर्ष 2000 की शुरुआत में जब द्वीप पर लोगों ने निवास करना शुरू किया था तब सभी मानचित्रों पर इस द्वीप को केन्या के अंतर्गत दिखाया गया था। इसने युगांडा के अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना शुरू किया और उन्होंने मछुआरों पर कर लगाने के लिये मिगिनगो में अधिकारी भेजे, साथ ही समुद्री डाकुओं से सुरक्षा का प्रस्ताव भी उनके सामने रखा।
  • युगांडा के इस कदम के बाद मछुआरों ने केन्या सरकार से मुलाकात की और केन्या सरकार ने इस पर कदम उठाते हुए मिगिनगो में सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिये जिसके चलते दोनों देशों के बीच वर्ष 2009 में तनाव और बढ़ गया।
  • इसके बाद केन्या और युगांडा ने यह निर्धारित करने के लिये कि पानी की सीमा कहाँ तक है, एक संयुक्त कमीशन बनाने का फैसला किया लेकिन संयुक्त कमीशन द्वारा अभी तक कोई निर्णायक फैसला नहीं लिया गया है।

चुनावी बॉण्‍ड योजना-2018

हाल ही में भारत सरकार ने चुनावी बॉण्ड योजना-2018 को अधिसूचित किया है।

  • योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉण्‍ड की खरीद ऐसे व्‍यक्ति द्वारा की जा सकती है, जो भारत का नागरिक हो या भारत में निगमित या स्‍थापित हो।
  • व्‍यक्ति विशेष के रूप में कोई भी व्‍यक्ति एकल रूप से या अन्‍य व्‍यक्तियों के साथ संयुक्‍त रूप से चुनावी बॉण्‍डों की खरीद कर सकता है।
  • केवल से राजनीतिक पार्टियाँ, जो जन प्रतिनिधित्‍व अधिनियम, 1951 (1951 का 43) के अनुच्‍छेद 29ए के तहत पंजीकृत हों और जिन्होंने आम लोकसभा चुनावों या राज्‍य विधानसभा चुनावों में डाले गए मतों के एक प्रतिशत से कम मत प्राप्‍त नहीं किये हों, चुनावी बॉण्‍ड प्राप्‍त करने की पात्र होंगी।
  • चुनावी बॉण्‍डों को किसी योग्‍य राजनीतिक पार्टी द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्‍यम से ही भुनाया जा सकेगा।
  • भारतीय स्‍टेट बैंक को बिक्री के छठे चरण में अपनी 29 अधिकृत शाखाओं (सूची संलग्‍न) के माध्‍यम से 01-10 नवंबर 2018 तक चुनावी बॉण्‍डों को जारी करने तथा भुनाने के लिये अधिकृत किया गया है।
  • यह ध्यान दिया जा सकता है कि चुनावी बॉण्‍ड जारी होने की तारीख से पंद्रह कैलेंडर दिनों के लिये मान्य होंगे और यदि वैधता अवधि समाप्त होने के बाद चुनावी बॉण्‍ड जमा किया जाता है तो किसी भी भुगतानकर्त्ता राजनीतिक पार्टी को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।
  • एक योग्य राजनीतिक दल द्वारा जमा किये गए चुनावी बॉण्‍ड को उसी दिन खाते में जमा किया जाएगा।

क्या है चुनावी बॉण्ड?

  • यदि हम बॉण्ड की बात करें तो यह एक ऋण सुरक्षा है। चुनावी बॉण्ड का जिक्र सर्वप्रथम वर्ष 2017 के आम बजट में किया गया था।
  • दरअसल, यह कहा गया था कि RBI एक प्रकार का बॉण्ड जारी करेगा और जो भी व्यक्ति राजनीतिक पार्टियों को दान देना चाहता है, वह पहले बैंक से बॉण्ड खरीदेगा फिर वह जिस भी राजनैतिक दल को दान देना चाहता है, उसे दान के रूप में बॉण्ड दे सकता है।
  • राजनैतिक दल इन चुनावी बॉण्ड की बिक्री अधिकृत बैंक को करेंगे और वैधता अवधि के दौरान राजनैतिक दलों के बैंक खातों में बॉण्ड के खरीद के अनुपात में राशि जमा करा दी जाएगी।

हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र में शलभ (Moth) का महत्त्व

वैसे तो Moth (शलभ/कीट/पतंगा) को व्यापक रूप से केवल एक कीट ही माना जाता है लेकिन जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि ये कीट समूह हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र में कई पौधों के परागण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • यह अध्ययन “असेसमेंट ऑफ मोथ्स (लेपिडोप्टेरा) एज़ सिग्निफिकेंट पोलिनेटर्स इन द हिमालयन इकोसिस्टम ऑफ नार्थ ईस्टर्न इंडिया” शीर्षक वाले प्रोजेक्ट के अंतर्गत किया गया तथा इस प्रोजेक्ट के तहत अध्ययन के लिये वैज्ञानिकों ने विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र से Moths के नमूने एकत्र किये।
  • Moths की लगभग एक दर्ज़न प्रजातियों में सूँड़ (Proboscis), फूलों का रस चूसने के लिये कीटों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक लंबा और धागे जैसे अंग का विश्लेषण इन कीटों में परागकणों की उपस्थिति का खुलासा करता है।  
  • यह विशेष अध्ययन पौधे-पतंग परस्पर क्रियाओं पर आधारित है।
  • यह अध्ययन अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में किया गया था।
  • इस अध्ययन के अंतर्गत सबसे बड़ा खुलासा विभिन्न Moth प्रजातियों में सूँड़ की संरचना थी।
  • इस अध्ययन को इसलिये भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इसमें वैज्ञानिकों ने परागण स्रोतों के रूप में कीटों के नए समूह Moth का अध्ययन किया है। आमतौर पर मधुमक्खी, ततैया (Wasp) और तितलियों को परागण का प्रमुख स्रोत माना जाता है।
  • भारत में पाई जाने वाली कीट प्रजातियों की संख्या अनुमानतः 12,000 है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार दुनिया के कुछ हिस्सों में पिछले 40 वर्षों में लगभग दो तिहाई आम तौर पर पाई जाने वाली बड़ी Moth प्रजातियों में गिरावट आई है। गिरावट के मुख्य कारणों में से एक प्रकाश प्रदूषण (Moth आवास में कृत्रिम प्रकाश में वृद्धि) है।
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