प्रीमिल्स फैक्ट्स : 29 नवंबर, 2017 | 29 Nov 2017
सांसद आदर्श ग्राम योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर, 2014 को सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य संबंधित सांसद की देख-रेख में चुनी हुई ग्राम पंचायतों के जीवन स्तर में सुधार लाना था।
- इस योजना का उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच में सुधार और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना है, ताकि ये गाँव पड़ोस की अन्य ग्राम पंचायतों के लिये एक आदर्श उदाहरण पेश कर सकें।
- सांसद आदर्श ग्राम योजना में ग्राम विकास योजना के तहत 19,732 नई परियोजनाओं को पूरा कर लिया गया है। इसके साथ – साथ अन्य 7,204 परियोजनाएँ लागू की जा रही हैं।
- योजना के तहत तकरीबन 703 सांसदों द्वारा ग्राम पंचायतों का चयन किया गया। कई राज्यों में राज्य सरकारें कार्यक्रमों को लागू करने में मदद कर रही हैं जिससे सामाजिक विकास के सूचकांकों में सुधार देखने को मिल रहा है।
- आई.सी.डी.एस. केंद्रों में पंजीयन, खुले में शौच से मुक्ति एवं संक्रमण से बचाव के शत्-प्रतिशत प्रयास शामिल हैं। सांसद आदर्श ग्राम योजना में शामिल गाँवों में संक्रमण से बचाव, किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड देने, महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने और नए जन-धन खाते खुलवाने में भी 13 से 19 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज़ की गई है।
स्वच्छ गंगा परियोजना
- केंद्रीय जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा ब्रिटेन में रह रहे भारतीय उद्यमियों से गंगा नदी को स्वच्छ करने हेतु चलाई जा रही सरकार की “नमामि गंगे परियोजना” में सहयोग के लिये आगे आने की अपील की है।
- निर्मल गंगा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। गंगा के प्राचीन गौरव को बनाए रखने के लिये लोगों की सहभागिता भी बेहद ज़रूरी है।
- पी.आई.पी. द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, घाटों, शमशानों, जल स्रोतों, उद्यानों, स्वच्छता सेवाओं, सार्वजनिक सुविधाओं एवं नदी के किनारों के विकास की 10,000 करोड़ रुपए से अधिक लागत की तीन परियोजनाएँ चल रही हैं, लेकिन इसके लिये और अधिक धन की आवश्यकता है।
- 650 करोड़ रुपए की लागत से पाँच राज्यों में घाटों की 119 परियोजनाओं पर कार्य शुरू हो चुका है।
- निर्मल गंगा सुनिश्चित करने के लिये सरकार सीवेज़ निपटान पर 20,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर रही है।
कार्बन उत्सर्जन को ईंधन में परिवर्तित करने वाली झिल्ली
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology - MIT) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई प्रणाली विकसित की है जो कारों और विमानों से उत्सर्जित होने वाली कार्बन-डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को उपयोगी ईंधन में परिवर्तित कर सकती है।
- इस नई प्रणाली के अंतर्गत शोधकर्त्ताओं द्वारा लैंथनम (lanthanum), कैल्शियम और लौह ऑक्साइड से बनी एक झिल्ली का इस्तेमाल किया गया। यह कार्बन-डाइऑक्साइड से ऑक्सीजन को झिल्ली के माध्यम से एक ओर से दूसरी ओर गमन करने में सहायक होती है, इस प्रक्रिया में कार्बन मोनोऑक्साइड पृथक हो जाती है।
- इस प्रक्रिया के दौरान उत्पादित कार्बन मोनोऑक्साइड का इस्तेमाल या तो ईंधन के रूप में या अन्य तरल हाइड्रोकार्बन ईंधन बनाने के लिये हाइड्रोजन अथवा/और पानी के साथ किया जा सकता है।
- इसका उपयोग मेथनॉल (इसे मोटर वाहन ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है), सिनगैस आदि के निर्माण में किया जा सकता है।
- भविष्य में यह नई प्रक्रिया कार्बन के एकत्रीकरण, उपयोग और भण्डारण संबंधी प्रौद्योगिकियों का भी हिस्सा बन सकती है।
- यदि इसे बिजली उत्पादन के संदर्भ में लागू किया जाता है, तो यह जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण ग्लोबल वार्मिंग पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने में भी सहायक सिद्ध होगी।