प्रीलिम्स फैक्ट्स : 27 अप्रैल, 2018
पश्चिमी आंचलिक परिषद की 23वीं बैठक
केंद्रीय गृहमंत्री की अध्यक्षता में पश्चिमी आंचलिक परिषद की 23वीं बैठक का आयोजन गांधीनगर, गुजरात में किया गया। इस बैठक में महाराष्ट्र व गुजरात के मुख्यमंत्री के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, संघ शासित दमन एवं दीव, दादरा और नगर हवेली के मंत्री तथा केंद्र/राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
- परिषद के अंतर्गत पिछली बैठक में की गई सिफारिशों के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा की गई।
- इस बैठक में “सभी के लिये आवास : 2022” के लक्ष्य को हासिल करने के लिये केंद्र सरकार के विभिन्न संगठनों को उपलब्ध कराई जाने वाली अतिरिक्त भूमि और आधार से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई।
आंचलिक परिषद
- राज्यों के बीच और केंद्र एवं राज्यों के बीच मिलकर काम करने की आदत विकसित करने के उद्देश्य से राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के अंतर्गत आंचलिक परिषदों का गठन किया गया था।
- आंचलिक परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वे आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में आपसी हित से जुड़े किसी भी मसले पर विचार-विमर्श करें और सिफारिशें दें।
- देश में पाँच आंचलिक परिषदें हैं : पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी, दक्षिण और मध्यवर्ती आंचलिक परिषद।
- ये परिषदें आर्थिक और सामाजिक आयोजना, भाषायी अल्पसंख्यकों, अंतर्राज्य परिवहन जैसे साझा हित के मुद्दों के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह दे सकती है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) एक वैधानिक आयोग है जिसकी स्थापना दिसंबर 2005 में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम, बाल अधिकार संरक्षण के लिये आयोग, द्वारा की गई थी।
- आयोग महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तत्त्वाधान में कार्य करता है।
- आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र बाल अधिकारों के अनुरूप हों जो भारतीय संविधान और संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में उपलब्ध हैं।
- आयोग द्वारा 18 साल से कम आयु वालों को बालक माना गया है।
- आयोग अधिकारों पर आधारित संदर्श की परिकल्पना करता है, जो राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों में परिलक्षित होता है, जिसके साथ राज्य, ज़िला और खण्ड स्तरों पर पारिभाषित प्रतिक्रियाएँ भी शामिल हैं, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्टत और मज़बूती को भी ध्यान में रखा जाता है।
- प्रत्येक बालक तक पहुँच बनाने के उद्देश्य से इसमें समुदायों तथा कुटुंबों तक गहरी पैठ बनाने का आशय रखा गया है तथा अपेक्षा की गई है कि इस क्षेत्र में हासिल किये गए सामूहिक अनुभव पर उच्चतर स्तर पर सभी प्राधिकारियों द्वारा विचार किया जाएगा।
- इस प्रकार, आयोग बालकों तथा उनकी कुशलता को सुनिश्चित करने के लिये राज्य के लिये एक अपरिहार्य भूमिका, सुदृढ़ संस्था-निर्माण प्रक्रियाओं, स्थानीय निकायों और समुदाय स्तर पर विकेंद्रीकरण के लिये सम्मान तथा इस दिशा में वृहद् सामाजिक चिंता की परिकल्पना करता है।
संरचना
- केंद्र सरकार द्वारा आयोग में निम्न सदस्यों को तीन वर्ष की अवधि के लिये नियुक्त किया जाएगा :
- अध्यक्ष, जिसने बाल कल्याण को बढ़ावा देने के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया हो।
- छह अन्य सदस्य जिन्हें शिक्षा, बाल स्वास्थ्य, देखभाल, कल्याण, विकास, बाल न्याय, हाशिये पर पड़े उपेक्षित, अपंग व परित्यक्त बच्चों की देखभाल या बाल श्रम उन्मूलन, बाल मनोविज्ञान और कानून के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल हो।
- सदस्य सचिव, जो संयुक्त सचिव स्तर के समकक्ष होगा या उसके नीचे स्तर का नहीं होगा।
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इंदु मल्होत्रा
इंदु मल्होत्रा सीधे सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली देश की पहली महिला वकील है। इन्होंने 27 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। मुख्य न्यायाधीश ने इन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
- वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा का जन्म 14 मार्च, 1956 को बंगलूरू में हुआ था। वह सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली छठी महिला हैं। इनके पिता सर्वोच्च न्यायालय में वकील थे।
- वर्ष 1989 में फातिमा बीबी को सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
- इसके बाद न्यायाधीश सुजाता मनोहर, न्यायाधीश रुमा पाल, न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा और न्यायाधीश रंजना देसाई भी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रह चुकी है।
- इंदु मल्होत्रा की शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के कॉर्मल कॉन्वेंट स्कूल से हुई।
- इसके बाद इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के लेडी श्रीराम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन की डिग्री ली और फिर फैकल्टी ऑफ लॉ पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्स किया।
- इसके बाद इन्होंने डीयू के मिरांडा हाउस और विवेकानंद कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाया। वर्ष 1979 से 1982 के दौरान इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की।
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अखिल भारतीय आघार पर तरल क्लोरीन के लिये पहला लाइसेंस
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने अखिल भारतीय आधार पर तरल क्लोरीन के लिये मैसर्स गुजरात अल्कलीज़ एंड कैमिकल्स लिमिटेड को पहला लाइसेंस प्रदान किया है। अखिल भारतीय आधार पर यह पहला लाइसेंस दिया गया है।
- लाइसेंस 12 अप्रैल, 2018 से एक वर्ष की अवधि के लिये प्रभावी होगा।
- यह उत्पाद तरल अवस्था में है और इसे धातु के कंटेनर में रखा जाता है। आमतौर पर धातु के कंटेनर से तरल पदार्थ को वाष्पित करके गैस के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से कागज़, लुगदी, वस्त्र ब्लीचिंग, पानी के कीटाणुशोधन और रसायनों के निर्माण में किया जाता है।
- इस कदम से बीआईएस प्रमाणीकरण मुहर योजना के अंतर्गत उद्योग को आसानी से गुणवत्तापूर्ण तरल क्लोरीन मिल सकेगा।
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