प्रीलिम्स फैक्ट्स : 27 मार्च, 2018
माधवपुर मेला
एक अनोखी पहल के अंतर्गत, गुजरात के प्रसिद्ध माधवपुर मेले का उत्तर-पूर्व के राज्यों के साथ पहला सांस्कृतिक एकीकरण दिखाई देगा। इस एकीकरण का उद्देश्य देश के विभिन्न हिस्सों, प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों को एक भारत-श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के तहत एक-दूसरे के निकट लाना है।
- यह मेला अरुणाचल प्रदेश की मिश्मी जनजाति से संबद्ध है। मिश्मी जनजाति, प्राचीन राजा भीष्मक और उनकी पुत्री रुक्मिणी के ज़रिये भगवान कृष्ण को अपना पूर्वज मानती है।
- पहली बार, इस मेले में भगवान कृष्ण के साथ रुक्मिणी देवी की अरुणाचल प्रदेश से गुजरात तक की अमर यात्रा का उल्लास मनाया जाएगा।
- रुक्मिणी के परिवार के प्रतिनिधि के तौर पर उत्तर-पूर्व से 150 लोगों के एक जत्थे का माधवपुर मेले में पारंपरिक स्वागत किया जाएगा।
- निचले दिबांग घाटी शहर में रोइंग के निकट स्थित भीष्मकनगर का जिक्र कल्कि पुराण में भी मिलता है।
- राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA), संस्कृति मंत्रालय के तहत, मानव संग्रहालय और गुजरात, असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर राज्य एवं अन्य संस्थाएँ, इस मेले को एक नया आयाम देने के लिये एक साथ काम कर रही हैं।
- इस अभियान में पश्चिम बंगाल को छोड़कर शेष सभी राज्य एवं संघीय क्षेत्र भाग ले रहे हैं।
- इस वर्ष के उत्सव का मूल उद्देश्य एक भारत-श्रेष्ठ भारत अभियान के अनुरूप है और विविधता में एकता की देश की विशिष्टता को दर्शाने के साथ-साथ पश्चिम एवं पूर्व के बीच संबंध स्थापित करना है।
- दोनों क्षेत्रों के सांस्कृतिक एकीकरण के उद्देश्य से आयोजित किये गए चार दिन के इस पर्व में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर एवं उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों की कला, नृत्य, संगीत, कविता, कथा वाचन और लोक-नाटकों का जीवंत प्रदर्शन किया जाएगा।
पृष्ठभूमि
माधवपुर घेड, एक छोटा लेकिन सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण गाँव है, जहाँ लोककथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राजा भीष्मक की बेटी रुक्मिणी से विवाह किया था। माधवपुर पोरबंदर के निकट, समुद्र तट पर स्थित है। 15वीं शताब्दी में निर्मित माधवराय मंदिर स्थल को प्रतिबिंबित करता है। इस समारोह का आगाज़ एक सांस्कृतिक मेले द्वारा किया जाता है, जो रामनवमी से शुरू होता है। कृष्ण की मूर्ति को लेकर एक रंगीन रथ गाँव की परिक्रमा करता है और आमतौर पर यह उत्सव पाँच दिनों तक चलता है।
लक्षित कैंसर चिकित्सा के लिये नैनोमोटर्स
शोधकर्त्ताओं द्वारा एक नए प्रकार के जिंक-फेराइट-लेपित चुंबकीय नैनोमोटर्स को विकसित किया गया है, जो बेहद स्थिर होते हैं और कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिये स्थानीय ऊष्मा (heating) उत्पन्न कर सकते हैं। इस शोध को ‘नैनोस्केल’ में प्रकाशित किया गया है।
मात्र 3 माइक्रोन
- आकार में मात्र करीब 3 माइक्रोन को मापने के लिये, चुंबकीय नैनोमोटर्स को रक्त, ऊतक आदि जैसे विभिन्न जैविक वातावरणों में कम-से-कम 100 गौस (मनुष्यों के लिये सुरक्षित स्तर) के घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है और शरीर में रुचि के क्षेत्र को लक्षित किया जा सकता है।
- वे अपने गैर-आक्रामक (non-invasive) प्रकृति के कारण लोकप्रिय हैं और रासायनिक ईंधन की आवश्यकता के अभाव में उन्हें आगे बढ़ाते हैं।
- प्रयोगशाला में मानव ग्रीवा कैंसर कोशिकाओं पर इन नैनोमोटर्स का उपयोग करने के लिये हाइपरथर्मिया परीक्षण किया गया था।
- उचित चुंबकीय क्षेत्र और लगभग 20 मिनट के लिये आवृत्ति का प्रयोग करने से तापमान 7-8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है।
- इस नए विकास ने नैनोमोटर्स के अनेकों तकनीकी मुद्दों को सुलझाया है, जैसे - नैनोमोटर का संकुलन (agglomeration)।
- इस क्षेत्र में भविष्य के अनुसंधानों को संपूर्ण (in-vivo) प्रयोगों की ओर निर्देशित किया जाएगा।
- यह कैंसर चिकित्सा विज्ञान के लिये लक्षित चिकित्सा का महान निहितार्थ हो सकता है।
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ग्रेट प्रशांत कचरा पैच (Great Pacific Garbage Patch)
यह विश्व का सबसे बड़ा और शायद सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तैरते हुए कचरे का संग्रह है। एक अनुमान के अनुसार, हवाई और कैलिफोर्निया के मध्य स्थित इस क्षेत्र में वर्तमान में 80,000 मीट्रिक टन वज़नी 1.8 ट्रिलियन प्लास्टिक के टुकड़े तैर रहे हैं।
- यह पृथ्वी पर समुद्री प्लास्टिक के संचय का सबसे बड़ा क्षेत्र है।
- ऐसा माना जाता है कि वर्तमान में इसका आकार महाद्वीपीय फ्राँस का तीन गुना है।
- इस पैच की खोज 1997 में एक नाविक चार्ल्स मूरे द्वारा की गई।
- इस संपूर्ण कचरे का 94% भाग माइक्रो प्लास्टिक से बना हुआ है। इसका एक बड़ा भाग मछली पकड़ने के परित्यक्त सामानों, जैसे- मछली पकड़ने का जाल, रस्सियों, घोंघे के खोल, सर्पमीन को पकड़ने का जाल, पेटियों और टोकरियों आदि से बना हुआ है।
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन मलवों का 20% भाग 2011 में आई जापान की सुनामी से आया है।
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कटहल (jackfruit) केरल का आधिकारिक फल
हाल ही में केरल राज्य सरकार द्वारा कटहल को अपना आधिकारिक फल घोषित किया गया है।
- सरकार का उद्देश्य 'केरल कटहल' के माध्यम से (इसके जैविक और पौष्टिक गुणों को प्रदर्शित करते हुए) देश और विदेश के बाज़ारों में एक ब्रॉण्ड के रूप में प्रवेश करना है।
- इससे मूल्यवर्द्धित उत्पादों को बढ़ाने के अलावा, फलों के उत्पादन और बिक्री में भी मदद मिलेगी।
- इस फल की ब्रॉण्डिंग के माध्यम से कटहल और इससे संबद्ध उत्पादों की बिक्री के ज़रिये 15,000 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होने की संभावना है।
- ‘केरल कटहल' अधिक कार्बनिक और स्वादिष्ट होता है क्योंकि यह किसी भी रासायनिक उर्वरक या कीटनाशकों का उपयोग किये बिना पूर्णतः प्राकृतिक तरीके से उत्पादित किया जाता है।
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