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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 25 अप्रैल, 2018

  • 25 Apr 2018
  • 8 min read

ग्रेफाइन कार्बन का एक प्रकार है जिसमें कार्बन अणुओं की एक परत होती है। परत में कार्बन के अणु षटकोणीय जाली के रूप में व्यवस्थित होते हैं। अनुसंधानकर्त्ताओं में भारतीय मूल का एक शोधकर्त्ता भी शामिल है।

  • स्वीडन में क्लैमर्स प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कूल्हे और घुटने के प्रतिरोपण या दंत प्रतिरोपण जैसे सर्जिकल प्रतिरोपण में हाल के वर्षों में वृ्द्धि हुई है। इस तरह की प्रक्रियाओं में बैक्टीरिया संक्रमण का जोखिम हमेशा रहता है।
  • ग्रेफाइन फ्लेक्स की परत एक सुरक्षात्मक सतह का निर्माण करती है जो बैक्टीरिया को जुड़ने नहीं देती है। ग्रेफाइन शल्य प्रतिरोपण जैसी प्रक्रियाओं के दौरान संक्रमण को रोकने में सहायक होती है।
  • क्लैमर्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, वैज्ञानिक संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया को रोकना चाहते हैं।
  • अगर ऐसा न किया जाए तो एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता हो सकती है, जो सामान्य जीवाणुओं के संतुलन को बाधित कर सकती है और रोगाणुओं में एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधी क्षमता पैदा का खतरा भी बढ़ा सकती है।
  • यह अध्ययन पत्र ‘एडवांसड मैटेरियल्स इंटरफेस' नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ।

शंघाई सहयोग संगठन

भारत, पहली बार शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मं‍त्रियों की बैठक में भाग ले रहा है। एससीओ के रक्षा मंत्रियों की यह बैठक चीन के पेइचिंग शहर में आयोजित की गई।

शंघाई सहयोग संगठन

  • शंघाई सहयोग संगठन (SCO-Shanghai Cooperation Organisation) एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है। यूरेशिया का अर्थ है यूरोप और एशिया का संयुक्त महाद्वीपीय भूभाग।
  • इस संगठन की शुरुआत शंघाई-5 के रूप में 26 अप्रैल, 1996 को हुई थी। शंघाई-5 चीन, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान देशों का संगठन था।
  • 15 जून, 2001 को जब उज़्बेकिस्तान को इसमें शामिल किया गया तो इसका नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन कर दिया गया।
  • हेड ऑफ स्टेट काउंसिल इसका शीर्षस्थ नीति-निर्धारक निकाय है।
  • चीनी और रूसी शंघाई सहयोग संगठन की आधिकारिक भाषाएँ हैं।

वायु गुणवत्ता को मापने के लिये नई प्रणाली

भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और फिनलैंड के साथ मिलकर एक प्रदूषण-पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने का प्रयास कर रहा है जो पीएम (particulate matter) स्तर के विषय में कम-से-कम दो दिन पहले और जितना संभव हो उससे अधिक रिज़ॉल्यूशन पर अनुमान लगाने में मदद करेगा।

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) द्वारा इस कार्य में समन्वय किया जाएगा। इस कार्य योजना के एक सिस्टम के आगामी सर्दी तक कार्यान्वित होने की संभावना है।
  • वर्तमान में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान, पुणे द्वारा संचालित वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान प्रणाली (System of Air Quality and Weather Forecasting and Research - SAFAR) दिल्ली, मुंबई, पुणे और अहमदाबाद में प्रदूषण के रुझानों के शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करता है।

सफर क्या है?

  • यह इन शहरों के लिये एक दिन पहले से ही संभावित वायु गुणवत्ता प्रोफ़ाइल उत्पन्न करता है।
  • इस प्रणाली से वायु प्रदूषण का अग्रिम तीन दिनों के लिये स्थान विशेष का अनुमान लगाने के साथ ही लोगों को सावधानी के उपाय करने में मदद करने हेतु परामर्श देना संभव हो पाया है। 
  • यह प्रणाली लोगों को उनके पास के निगरानी स्टेशन पर हवा की गुणवत्ता को देखने और उसके अनुसार उपाय अपनाने का फैसला लेने में मदद करती है।
  • 'सफर' के माध्यम से लोगों को वर्तमान हवा की गुणवत्ता, भविष्य में मौसम की स्थिति, खराब मौसम की सूचना देना और संबद्ध स्वास्थ्य परामर्श के लिये जानकारी तो मिलती ही है, साथ-साथ अल्ट्रा वायलेट सूचकांक के संबंध में हानिकारक सौर विकिरण की तीव्रता की जानकारी भी मिलती है।

नई व्यवस्था

  • फिनिश मौसम विज्ञान संस्थान (Finnish Meteorological Institute) और अमेरिका के राष्ट्रीय महासागर तथा वायुमंडलीय प्रशासन (U.S.’ National Oceanic and Atmospheric Administration) की विशेषज्ञता के साथ संयुक्त रूप से विकसित होने वाली नई प्रणाली, एक अलग मॉडलिंग दृष्टिकोण के साथ-साथ सफर मॉडल में नियोजित कंप्यूटेशनल तकनीकों का उपयोग करेगी।
  • ‘सफर’ इस नई व्यवस्था के आधार के रूप में कार्य करेगा लेकिन यह नई प्रणाली के अंतर्गत (इसके लिये भारतीय वैज्ञानिकों को अलग से विशेष परीक्षण देने की आवश्यकता होगी) आँकड़ों का विश्लेषण करने के लिये एक पृथक विधि का प्रयोग किया जाएगा। 

पश्चिमी घाट में दुनिया का सबसे छोटा भूमि फर्न

भारतीय शोधकर्त्ताओं ने गुजरात के डांग ज़िले के पश्चिमी घाटों के अहवा जंगलों (Ahwa forests) में दुनिया के सबसे छोटे भूमि फर्न की खोज की है। हाल ही में ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, नाखून के आकार का मालवी नामक यह फर्न एक विशेष समूह से संबंधित होता है, साँप की जीभ के आकार (Adder’s-tongue ferns) के समान रचना के कारण इसका यह नाम रखा गया है।

  • इसका वैज्ञानिक नाम Ophioglossum malviae  है। इसका आकार मात्र एक सेंटीमीटर है।
  • यह न केवल आकार में अन्य फर्न से भिन्न होता है बल्कि इसमें अन्य जटिल फर्न विशेषताएँ भी निहित हैं।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा इस पौधे के डीएनए का विश्लेषण करने पर पाया कि यह अपने वर्ग की अन्य प्रजातियों से भिन्न है। इसका एक कारण यह है कि इस क्षेत्र में फर्न का पाया जाना बहुत समान्य बात नहीं है।
  • शोधकर्त्ताओं ने अहवा वन क्षेत्र में केवल 12 पौधों को उजागर किया, जो जाखाना गाँव के पास घास के मैदानों में चूहों के साथ बढ़ रहे थे। चूँकि स्थानीय लोगों द्वारा घास के मैदानों का प्रयोग किया जाता है, इसलिये इन प्रजातियों का संरक्षण करना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
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