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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स:24 Nov, 2017

  • 24 Nov 2017
  • 9 min read

नेशनल बायोमैटीरियल केन्‍द्र

हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ऑर्गनाइज़ेशन का उद्घाटन किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य नेशनल टिशु बैंक में नेशनल बायोमैटीरियल केंद्र के साथ गुणवत्तापूर्ण टिशुओं की उपलब्धता, मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटना और विभिन्न क्रियाकलापों को सुनिश्चित करना है। 

  • पी.आई.बी. द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, भारत में तकरीबन 23% प्रत्यारोपण मृत व्यक्तियों से प्राप्त अंगों द्वारा किया जाता है। यदि इस प्रतिशत में वृद्धि की जाती है तो अंगों के व्यावसायिक व्यापार के खतरे और जीवित व्यक्ति द्वारा अंग दान किये जाने से उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरे से भी बचा जा सकता है। 
  • इसके लिये आवश्यक यह है कि अंग प्रत्यारोपण के लिये बुनियादी ढाँचे एवं सरकारी अस्पतालों की क्षमता में सुधार किया जाए, ताकि गरीबों और ज़रूरतों को लाभ मिल सकें।

केंद्र से संबंधित मुख्य बिंदु

  • राष्‍ट्रीय स्‍तर का टिशू बैंक टिशू प्रत्‍यारोपण की मांग को पूरा करेगा। इसमें इसकी खरीद, भंडारण तथा बायोमैटीरियल के वितरण को पूरा करने संबंधी सभी पक्षों को शामिल किया जाएगा। 
  • केंद्र के अंतर्गत एक दानदाता से दूसरे व्‍यक्ति के शरीर में टिशू प्रत्‍यारोपित करने के संदर्भ में बहुत सी बातों पर विशेष रूप से ध्‍यान देने की आवश्यकता है। 

केंद्र के क्रियाकलाप क्या-क्या हैं?

  • टिशु की खरीद और वितरण हेतु समन्‍वय।
  • दान में मिले टिशु की स्‍क्रीनिंग।
  • टिशु को हटाना एवं उसका भंडारण करना।
  • टिशु का संरक्षण एवं टिशु की प्रयोगशाला जाँच।
  • कीटाणुशोधन।
  • आँकड़ों को सुरक्षित रखना तथा गोपनीयता का पालन करना।
  • टिशु का गुणवत्ता प्रबंधन।
  • टिशु के बारे में मरीज़ की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी एकत्रित करना।
  • टिशु प्रत्यारोपण संबंधी दिशा-निर्देशों को आगे बढ़ाना।
  • अन्‍य टिशु बैंकों के पंजीकरण की ज़रूरत के अनुसार आवश्यक प्रशिक्षण एवं सहायता उपलब्ध कराना।


2018 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष घोषित

हाल ही में भारत सरकार द्वारा संयुक्‍त राष्‍ट्र को वर्ष 2018 को “अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष” (International Year of Millets) के रूप में घोषित करने का प्रस्‍ताव भेजा गया है। यदि यू.एन. द्वारा इस प्रस्ताव के संबंध में सहमति व्यक्त की जाती है, तो इससे उपभोक्ताओं, नीति निर्माताओं, उद्योग और अनुसंधान एवं विकास क्षेत्रों में कदन्न के विषय में जागरूकता आएगी। 

प्रमुख बिंदु

  • इसका लाभ यह होगा कि वैश्विक स्तर पर कदन्न के उत्पादन और खपत को बढ़ावा दिये जाने से जहाँ एक ओर भूख जैसे गंभीर मुद्दे से सही रूप में निपटने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर इससे जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में भी उल्लेखनीय रूप से सहायता प्राप्त होगी।
  • आम तौर पर कदन्न को छोटे बीज वाली घास के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसे प्राय: शुष्क भूमि अनाज के रूप में जाना जाता है।
  • इसके अंतर्गत ज्वार, बाजरा, रागी, छोटे कदन्न, पोसो, फॉक्सटेल, बार्नियार्ड, कोदो इत्यादि को शामिल किया जाता है।
  • कदन्न सभी प्रकार से एक अनुकूलित भोजन है, जो न केवल स्वास्थ्य के लिये बेहतर है बल्कि किसानों के लिये उत्पादकता, जैव-ईंधन इत्यादि की दृष्टि से व्यापार के संदर्भ में भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति अति असंवेदित एवं अनुकूलित होने के कारण कदन्न ऐसी मौसम सहिष्णु फसल है जिसमें निम्न दर्जे़ं का कार्बन एवं वाटर फुटप्रिंट निहित होते है। यही कारण है कि सामान्य भौगोलिक स्थिति वाले सथानों के साथ-साथ अत्यधिक ऊँचाई वाले स्थानों में भी कदन्न की खेती की जा सकती है।


हृदय की विफलता को रोकने हेतु रोबोटिक प्रणाली

वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम मांसपेशियों के साथ एक नरम रोबोट प्रणाली विकसित करने में सफलता हासिल की गई है, इसकी सहायता से ऐसे बच्चों की हृदय संबंधी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, जिनकी एक तरफा हृदय संबंधी समस्याएँ होती हैं।

  • हृदय की भाँति ज्यों का त्यों गति करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह सॉफ्ट रोबोटिक एक्टुएटर (soft robotic actuator) बायोमेडिकल उपकरणों में पारंपरिक रूप से उपयोग किये जाने वाले अधिक कठोर घटकों के लिये एक आकर्षक विकल्प है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा यह भी स्वीकार किया गया है कि कई बाल हृदय रोगियों में एकतरफा दिल की स्थिति होती है। अर्थात् ऐसे हृदय रोगी पूरी तरह से विफल हृदय जैसी स्थिति में नहीं होते हैं। इसका कारण जन्मजात स्थितियाँ भी होती हैं। कई बार ऐसा होता है कि हृदय के दाएँ या बाएँ निलय के कारण भी हृदय रोग की समस्या बन जाती है।
  • बाहरी एक्टुएटर की सहायता से हृदय के स्वयं के कक्ष के माध्यम से रक्त पर दबाव बनाने में मदद मिलती है। शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित प्रणाली के अंतर्गत एंटीकॉयगुलेंट्स (Anticoagulants) के न्यूनतम उपयोग के साथ इस कार्य को सैधांतिक रूप से पूर्ण किया जा सकता है।


यूरोपियन पुनर्निर्माण और विकास बैंक में भारत की सदस्‍यता को मंज़ूरी

हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने यूरोपियन पुनर्निर्माण और विकास बैंक (European Bank for Reconstruction and Development - EBRD) में भारत की सदस्‍यता के संबंध में मंज़ूरी दी है। अब ई.बी.आर.डी. की सदस्यता प्राप्त करने के लिये आर्थिक कार्य विभाग, वित्त मंत्रालय द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

  • ई.बी.आर.डी. की सदस्‍यता से भारत की अंतर्राष्‍ट्रीय छवि में और अधिक निखार आएगा तथा इसके आर्थिक हितों को भी प्रोत्‍साहन मिलेगा। ई.बी.आर.डी. के संचालन वाले देशों तथा उसके क्षेत्र ज्ञान तक भारत की पहुँच निवेश तथा अवसरों को बढ़ाएगी।
  • इस सदस्‍यता से विनिर्माण, सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी और ऊर्जा में सह-वित्‍तपोषण के अवसरों के ज़रिये भारत और ई.बी.आर.डी. के बीच सहयोग के अवसर बढ़ेंगे।
  • इस सदस्‍यता से भारत को निजी क्षेत्र के विकास को लाभान्वित करने के लिये बैंक की तकनीकी सहायता तथा क्षेत्रीय ज्ञान से मदद मिलेगी।
  • ई.बी.आर.डी. की सदस्यता से भारतीय फर्मों की प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ेगी और व्यापार के अवसरों, खरीद कार्यकलापों, परामर्श कार्यों आदि में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक उनकी पहुँच बढ़ेगी।
  • यूरोपियन पुनर्निर्माण और विकास बैंक एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 1991 में हुई थी। यह बैंक निवेश के रूप में अर्थव्यवस्थाओं को सहायता प्रदान करता है। ई.बी.आर.डी. के महत्त्वपूर्ण कार्यों में अपने संचालन में सदस्य देशों में निजी क्षेत्र का विकास करना भी शामिल है।
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