प्रीलिम्स फैक्ट्स : 23 मार्च, 2018 | 23 Mar 2018

नगालैंड में वाटर स्ट्राइडर की नई प्रजाति की खोज

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों ने नगालैंड से वाटर स्ट्राइडर (Water strider) की एक नई प्रजाति की खोज की है। प्टिलोमेरा नगालैंडा जेहामलर (Ptilomera nagalanda Jehamalar) और चंद्रा (Chandra) नामक इन प्रजातियों को पेरेन (Peren) ज़िले की इन्तंकी (Intanki) नदी में पाया गया।

विशेषताएँ

  • यह पानी की सतह पर पाए जाने वाले अनुकूलित कीड़ों का एक समूह है।
  • पृष्ठ तनाव की अवधारणा जल की सतह पर इनकी गतिशीलता सुनिश्चित करती है। इनकी उपस्थिति पानी की गुणवत्ता के एक संकेतक के रूप में कार्य करती है।
  • नारंगी रंग की इस प्रजाति के पृष्ठ भाग पर काले रंग की धारियाँ होती हैं और इनका उदर पीले भूरे रंग का होता है। इसके पैर लंबे और पतले होते हैं। इसका आकार लगभग 11.79 मिमी है।
  • पृष्ठ भाग पर मौजूद काले रंग की धारियाँ इस प्रजाति को वाटर स्ट्राइडर की अन्य ज्ञात प्रजातियों से  अलग करती हैं।
  • वर्तमान में भारत में विभिन्न जल निकायों में वाटर स्ट्राइडर की तकरीबन 100 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। तथापि वाटर स्ट्राइडर की उप-प्रजाति प्टिलोमेरा की यहाँ केवल पाँच प्रजातियां ही पाई जाती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
    ♦ प्रायद्वीपीय भारत में प्टिलोमेरा एग्रीयोड्स (Ptilomera agriodes)
    ♦ पूर्वोत्तर भारत में प्टिलोमेरा असामेनसिस (Ptilomera assamensis)
    ♦ उत्तरी एवं पूर्वोत्तर भारत में प्टिलोमेरा लेटीक्यूडाटा (Ptilomera laticaudata)
    ♦ उत्तराखंड में प्टिलोमेरा ओक्सिडेंटालिस (Pltilomera occidentalis)
    ♦ अंडमान द्वीप में प्टिलोमेरा टिग्रीना (Ptilomera tigrina)

ओखला पक्षी अभयारण्य (Okhla Bird Sanctuary)

ओखला पक्षी अभयारण्य को देश के मुख्य पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (21 मार्च) के मौके पर नोएडा में इस अभयारण्य के पुनर्विकास और उन्नयन के लिये 80 करोड़ रुपए की लागत वाली परियोजना का शुभारंभ किया गया। 

ओखला पक्षी अभ्यारण्य 

  • ओखला पक्षी अभयारण्य के पुनर्विकास और उन्नयन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक वॉच टॉवर, पर्यटकों के लिये एक साइकिल ट्रैक, बेहतर सुरक्षा के लिये CCTV नेटवर्क और आवागमन के लिये इलेक्ट्रिक वाहन आदि को शामिल किया जाएगा।
  • लगभग 4 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ ओखला पक्षी अभयारण्य उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में नोएडा के प्रवेश द्वार पर स्थित है।
  • यह उस बिंदु पर स्थित है जहाँ से यमुना नदी दिल्ली से उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है । यह राज्य के 15 पक्षी अभयारण्यों में से एक है।
  • ओखला बैराज के निर्माण के कारण यह आर्द्रभूमि निर्मित हुई थी।
  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1990 में इसे अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था। वर्तमान में यह भारत के 467 महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (Important Bird Areas-IBAs) में से एक है।
  • अपनी अद्वितीय स्थिति के कारण यहाँ काँटेदार झाड़ियों, घास भूमियों और आर्द्रभूमि संबंधित पक्षी प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं।
  • यहाँ ग्रे-हेडेड फिश ईगल, बैकाल चैती (Baikal teal) और सारस (क्रेन) जैसे प्रवासी पक्षी भी देखे जा सकते हैं।
  • साथ ही यह सरीसृपों की 32, उभयचरों की 7 प्रजातियों और पौधों की 186 प्रजातियों का आवास स्थल है।
  • ओखला पक्षी अभयारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र को भी बेहतर प्रबंधन के लिये अधिसूचित किया गया है।

ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण

राजस्थान के पोखरण परीक्षण रेंज में दुनिया की सबसे तेज़ मिसाइल ब्रह्मोस (BrahMos) का लड़ाकू विमान सुखोई-30 MKI के ज़रिये सफल परीक्षण किया गया। 

प्रमुख बिंदु 

  • सुखोई विमान से ब्रह्मोस मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण करने के बाद भारत उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जो जल, थल और वायु तीनों से मिसाइल दाग सकते है।
  • इस सूची में अभी तक केवल तीन देश अमेरिका, रूस और फ्राँस ही शामिल हैं।
  • इसके अतिरिक्त यह परीक्षण भारत में निर्मित ‘सीकर तकनीकी’ (Seeker Technology) की सहायता से संपन्न किया गया था। 
  • सीकर तकनीकी मिसाइल द्वारा लक्ष्य को भेदने की परिशुद्धता (Accuracy) को तय करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
  • अभी तक इसमें रूसी सीकर तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा था। भारतीय सीकर तकनीकी को रिसर्च सेंटर इमारत (RIC), हैदराबाद तथा DRDO द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।

ब्रह्मोस मिसाइल की प्रमुख विशेषताएँ

  • भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई ब्रह्मोस मिसाइल एक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है। इस मिसाइल की रफ़्तार ध्वनि की रफ़्तार से भी तीन गुना अधिक (2.8 -3 मैक तक) है।
  • इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
  • मिसाइल तकनीकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) के कारण इसकी रेंज 290 किलोमीटर तक ही सीमित थी किंतु भारत द्वारा MTCR का सदस्य बन जाने से अब इसकी रेंज को 450 किमी. तक बढ़ाया जा सकता है।
  • यह मिसाइल भूमिगत परमाणु बंकरों, समुद्री क्षेत्र के ऊपर उड़ रहे शत्रु विमानों को दूर से ही सफलतापूर्वक भेद सकती है।
  • यह परमाणु हथियार तथा 300 किलोग्राम तक की युद्धक सामग्री ले जाने में सक्षम है। इसे पनडुब्बी, एयरक्राफ्ट, हवा और ज़मीन से दागा जा सकता है।
  • अगले 3 वर्षों में लगभग 40 सुखोई विमानों को ब्रह्मोस मिसाइल से लैस किया जाएगा।
  • भारतीय थलसेना और नौसेना में पहले से ही (2006) इस मिसाइल को शामिल किया जा चुका है, जबकि इसके एयर–वैरिएंट का पहली बार पिछले वर्ष परीक्षण किया गया था।
  • इसका वायु संस्करण ज़्यादा प्रभावी है क्योंकि इसे तेज़ गति से उड़ने वाले लड़ाकू विमान सुखोई से दागा जा सकता है, जो अपने लक्ष्य की ओर 1,500 किलोमीटर तक उड़ान भरने के बाद मिसाइल दागता है।

दि इंडियन साइन लैंग्वेज शब्दकोश लॉन्च

देश भर में मूक-बधिर लोगों द्वारा संचार के लिये प्रयुक्त की जाने वाली सांकेतिक भाषा में एकरूपता लाने के उद्देश्य से सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक शब्दकोश लॉन्च किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘दि इंडियन साइन लैंग्वेज’ (ISL) शब्दकोश में हिंदी और अंग्रेज़ी के 3000 शब्दों का सांकेतिक चित्रण किया गया है। बाद में शब्दकोश में और भी नए शब्दों को शामिल किया जाएगा। 
  • इनमें ऐसे संकेतों को शामिल किया गया है जिनका उपयोग दैनिक जीवन में किया जाता है।
  • इस शब्दकोश को ‘दि इंडियन साइन लैंग्वेज रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर’ (ISLR&TC) ने विकसित किया है, जो इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना पर पिछले डेढ़ वर्ष से कार्य कर रहा था।
  • यह शब्दकोश प्रिंट एवं वीडियो दोनों प्रारूप में तैयार किया गया है।
  • इस शब्दकोश को तैयार करने का मूल मकसद मूक-बधिर समुदायों के बीच संवाद बाधाओं को दूर करना है। इसके अलावा इसमें भारतीय संकेत भाषा में अधिक जानकारी मुहैया कराने पर ज़ोर दिया गया है।