प्रीलिम्स फैक्ट्स : 22 फरवरी, 2018 | 22 Feb 2018
अहिकुंताका समुदाय
श्रीलंका में अहिकुंताका (Ahikuntaka) समुदाय को कई नामों से जाना जाता है। सिंहली भाषा में इसे अहिकुंतका कहा जाता है, जबकि अन्य समुदायों में इन्हें 'कुरावर' (Kuravar) नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त इन्हें 'कुथंदी' (Kuthandi), 'कुरवन' (Kurawan)’ और 'कट्टुवसी' (Kattuvasi) जैसे नामों से भी जाना जाता हैं।
- इनकी आम भाषा तेलुगू है, लेकिन सिंहली और तमिल का भी काफी उपयोग किया जाता है।
- इस समुदाय का विभाजन जाति व्यवस्था के रूप में किया गया है; उच्च वर्ग को खेती के व्यवसाय के लिये जाना जाता है और निम्न जाति को कपड़े धोने और बालों को काटने जैसे व्यवसायों के लिये जाना जाता है।
- अधिकांश गतिविधियों का विभाजन इन वर्गों द्वारा ही किया जाता है। इस कार्य में त्वचा और बालों के रंग की एक अहम भूमिका होती है।
- इस समुदाय के अंतर्गत देवी - देवताओं को उनकी ज़रूरतों के अनुरूप बाँटा गया है। एंगटेस सामी (Angates Sami), कनाम्मा सामी (Kanamma Sami), मसम्मा (Masamma), सल्लापुराम्मा (Sallapuramma), पुल्लायर (Pullayar) और माडू मेनियो (Madu Meniyo) ऐसे ही कुछ देवी-देवता हैं।
- अहिकुंताका समुदाय की अपनी स्वयं की न्यायालय प्रणाली होती है जिसमें शराब एक प्रमुख भूमिका निभाती है।
- शराब को भुगतान का माध्यम तथा जंगली अदालत के न्यायाधीशों के प्रति सम्मान के रूप में उपयोग किया जाता है।
- महकन्दरावा (Mahakandarawa) 34 परिवारों से बसा एक गाँव होता है। यहाँ दो वर्ग के लोग रहते हैं, कुछ खुद को श्रीलंकाई तेलिंगु कहते हैं और अन्य अपने मूल को प्राचीन जिप्सी मानते हैं।
- इस समुदाय के पुरुष बंदरों को प्रशिक्षण देने और सपेरे के रूप में कार्य करते है, जबकि इस समुदाय की महिलाएँ हाथ पढ़ने यानी भविष्य बताने में माहिर होती हैं। इस समुदाय के कुछ लोग ईसाई धर्म में आस्था रखते हैं, जबकि अन्य बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।
- इस समुदाय का मुख्य आकर्षण सपेरे के रूप में कार्य करना तथा साँप के काटने एवं उसके ज़हर के लिये बेहतर दवाएँ बनाना है।
- इस समुदाय की प्रतिभा दो गुटों में विभाजित है। एक समुदाय सपेरों का है, जबकि दूसरा बंदर प्रशिक्षण समुदाय मद्दिली (Maddili) के रूप में जाना जाता है।
- मद्दिली समुदाय लगभग 60 परिवारों के साथ गल्गामुवा गोरोबावा (Galgamuwa Gorobawa) में निवास करता है।
बंगाल के वैज्ञानिकों के एक दल के अनुसार, समुद्र में पाए जाने वाले घोंघे के शरीर में एक ऐसा तरल पदार्थ पाया जाता है जिसके इस्तेमाल से कैंसर का इलाज संभव है।
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