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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 2 अप्रैल, 2018

  • 02 Apr 2018
  • 8 min read

देश का पहला सूफी रिसर्च सेंटर

सभी धर्मों के सूफी-संतों के उपदेशों और संदेशों पर शोध तथा तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये बिहार के मीतन घाट स्थित खानकाह मुनएमिया में देश का पहला सूफी रिसर्च सेंटर तैयार किया जा रहा है। इस संस्थान में सूफी विषय स्नातकोत्तर एवं पीएचडी करने की व्यवस्था प्रदान की जाएगी।

  • खानकाह के दक्षिणी भाग में बने इस सूफी रिसर्च सेंटर के भवन को सफेद मार्बल तथा हरे ग्रेनाइट पत्थर से तैयार किया गया है। 
  • यह सूफी रिसर्च सेंटर देश में अपनी तरह का पहला और अनूठा केंद्र होगा। सूफियों के जीवन का उद्देश्य मोहब्बत एवं इंसानियत की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना ही रहा है। इस सेंटर के माध्यम से सूफियों के इसी संदेश को आमजन तक पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा।
  • बिहार में शेख शरफुद्दीन यहिया मनेरी की बिहार शरीफ, शाह मखदूम शाह दौलत की मनेरशरीफ, बीबी कमाल की काको, खानकाह मुनएमिया, खानकाह इमादिया समेत कई खानकाह हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर के इस शोध संस्थान में अलग-अलग विषयों के विभाग होंगे, जिनके लिये विशेषज्ञ प्रोफेसरों की नियुक्ति की जाएगी।

आनंदी गोपाल जोशी

हाल ही में गूगल ने डूडल बनाकर भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी की 153वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। इस डूडल में उनके हाथ में डिग्री है और गले में स्टेथोस्कोप लटका हुआ है।

  • आनंदी गोपाल जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं, जिन्होंने अमेरिका से अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। 
  • आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च, 1865 में एक ब्राह्मण परिवार में महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के कल्याण में हुआ था। 9 साल की उम्र में आनंदी की शादी विदुर गोपालराव जोशी से कर दी गई जो उनसे उम्र में 20 साल बड़े थे।
  • गोपाल राव प्रगतिशील सोच के इंसान थे, उन्होंने अपनी पत्नी को पढ़ने के लिये प्रेरित किया और उन्हें आनंदी नाम दिया। 14 वर्ष की छोटी उम्र में आनंदी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव में वह मर गया। इस हादसे का उनकी जिंदगी पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • इसके तुरंत बाद 16 साल की उम्र में वह मेडिकल की पढ़ाई के लिये अमेरिका चली गईं। आनंदी ने पेंसिलवानिया के वूमेंस मेडिकल कॉलेज से डिग्री ली। 
  • 26 फरवरी, 1887 को 22 साल की होने से एक महीने पहले ही आनंदी का देहांत हो गया।

भारत ने वालोंग जंक्शन पर निगरानी बढ़ाई

गत वर्ष भारत और चीन के बीच सड़क निर्माण को लेकर चले डोकलाम जैसे गतिरोध को रोकने के लिये अरुणाचल प्रदेश की हिमालय श्रेणी में तैनात भारतीय सैनिकों ने भारत, चीन और म्याँमार के त्रिकोणीय संगम (Tri-junction) पर अपनी गश्त बढ़ा दी है।

  • यह त्रिकोणीय अरुणाचल प्रदेश में स्थित भारत के सबसे पूर्वी कस्बे वालोंग से लगभग 50 किमी. दूर तिब्बत क्षेत्र के नज़दीक है। 
  • डोकलाम गतिरोध के बाद त्रिकोणीय संगम पर भारत की ओर से सेना की उपस्थिति बढ़ा दी गई है।
  • सिक्किम क्षेत्र के त्रिकोणीय जंक्शन डोकलाम के बाद भारत-चीन सीमा पर यह सबसे महत्त्वपूर्ण त्रिकोणीय जंक्शन है।
  • चीनी सेना अक्सर इस त्रिकोणीय संगम में प्रवेश नहीं करती लेकिन इस क्षेत्र के नज़दीक सड़क का निर्माण किया है जहाँ जरूरत पड़ने पर सैनिकों को सुगमता से पहुँचाया जा सकता है। 
  • चीन और म्याँमार के बीच बढ़ता सैन्य संबंध भी ट्राइ-जंक्शन पर भारतीय सैनिकों की बढ़ती मौजूदगी का कारण है। म्याँमार की सेना यहाँ गश्त नहीं करती है।

वालोंग
वालोंग पूर्वोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश राज्य के अंजौ जिले (अंजौ वर्ष 2004 में लोहित जिले से अलग हुआ था) में एक छोटी छावनी और प्रशासनिक शहर है। यह भारत का सबसे पूर्वी शहर है तथा लोहित नदी के किनारे स्थित है। यहाँ भारत, चीन और म्याँमार की सीमा मिलती है। भारत के लिये यह क्षेत्र काफी महत्त्वपूर्ण है।

डोकलाम
डोकलाम एक ट्राइ-जंक्शन है जहाँ भारत, चीन और भूटान की सीमा मिलती है। इस क्षेत्र को लेकर चीन और भूटान के बीच विवाद है तथा वर्तमान में यहाँ चीन का कब्ज़ा है। गत वर्ष यहाँ चीन की सेना द्वारा किये जा रहे सड़क निर्माण को लेकर भारत और चीन के बीच गतिरोध हुआ था।

‘वैद्युत जीवाणु’ (इलेक्ट्रिक बैक्टीरिया)

कुछ जीवाणुओं ने बाह्य दुनिया में आधार प्राप्त करने के लिये कोशिका के आंतरिक भाग से अपनी बाह्य झिल्ली की ओर इलेक्ट्रॉनों को स्थानांतरित करने की क्षमता विकसित की है। इलेक्ट्रानों के इस आदान-प्रदान ने इन्हें वैद्युत जीवाणु (इलेक्ट्रिक बैक्टीरिया) का उपनाम दिया है।

  • कई मायनों में वे प्राकृतिक, सूक्ष्म ऊर्जा संयंत्रों की भाँति तेज़ी से आगे बढ़ते हैं। बैक्टीरिया की शेवानेल्ल ओनिडेन्सिस प्रजाति एक प्रकार का इलेक्ट्रिक बैक्टीरिया है जिसकी खोज लगभग 30 वर्ष पहले हुई थी।
  • हाल ही में एक शोध-पत्र द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि संभवतः ये जीवाणु अपनी वैद्युत कुशलता को निष्पादित करने के लिये नैनोवायर्स का प्रयोग करते है। नैनोवायर्स सामान्य विद्युत तारों के समान ही होते हैं लेकिन इनका आकार नैनो स्तर का होता है।
  • अपशिष्ट जल के उपचार के लिये भी इनका प्रयोग किया जा सकता है। ये सूक्ष्म जीव कचरे पर पनपते हैं, कार्बनिक पदार्थों को आक्सीकृत करते हैं और बहुत कम मात्रा में विद्युत उत्पादन करते हैं।  
  • जीवित कार्बनिक स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा नवीन संधारणीय तकनीकों की प्रचुर संभावनाओं से समृद्ध है। उदाहरण के लिये एक सूक्ष्मजीव फ्यूल सेल चट्टानों की बजाय इलेक्ट्रोडस पर मौजूद बैक्टीरिया से निकलने वाले इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करके बिजली पैदा कर सकता है। 
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