प्रीलिम्स फैक्ट्स : 19 दिसंबर, 2017 | 19 Dec 2017
ग्लिसरॉल हेतु नई तकनीक
हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसी तकनीक विकसित की गई है जिसके अंतर्गत बैक्टीरिया की सहायता से ग्लिसरॉल को बायो डीज़ल से पृथक किया जाएगा। इससे उपयोगी पदार्थ भी बनाए जा सकते है।
- वैज्ञानिकों द्वारा दो ऐसे बैक्टीरियल स्ट्रेंस की पहचान की गई है जिनकी सहायता कच्चे माल के रूप में मौजूद ग्लिसरॉल को (कार्बन के साथ) ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इसका लाभ यह होगा कि इससे व्यावसायिक रूप से कई महत्त्वपूर्ण उत्पाद जैसे - 2.3 – ब्यूटेनडायोल, 1.3-प्रोपैनडायोल के साथ-साथ एक्टोइन तथा एथेनॉल को भी तैयार किया जा सकता है।
इस नई तकनीक की खोज किसने की ?
- इस नई तकनीक की खोज केमिकल इंजीनियरिंग एंड प्रोसेस डेवलपमेंट डिवीज़न द्वारा नेशनल कलेक्शन ऑफ इंडस्ट्रियल माइक्रोऑर्गनिज्म सेंटर तथा नेशनल केमिकल लेबोरेट्री के साथ संयुक्त रूप से की गई है।
कौन-कौन से बैक्टीरियल स्ट्रेंस का उपयोग किया गया?
- इसके लिये एन्टोबैक्टर एरोजींस एम.सी.आई.एम. 2695 एवं क्लेबिसेला निमोनिया एम.सी.आई.एम. 5215 का इस्तेमाल किया गया।
लाभ
- कच्चे ग्लिसरॉल के निस्तारण के खर्च में कमी आएगी।
- बेकार पड़े ग्लिसरॉल से उपयोगी उत्पाद तैयार हो सकेंगे।
- अतिरिक्त व्यावसायिक लाभ प्राप्त होगा।
- परंपरागत ईंधन के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
न्याय ग्राम परियोजना
Nyaya Gram project
हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आवासीय और प्रशिक्षण परिसर में ‘न्याय ग्राम’ परियोजना की आधारशिला रखी गई।
प्रमुख बिंदु
- यह परियोजना इलाहाबाद में उच्च न्यायालय की एक मॉडल टाउनशिप है। इस टाउनशिप में एक न्यायिक अकादमी तथा एक सभागार की व्यवस्था की गई है
- इसके अतिरिक्त इसके अंतर्गत न्यायाधीशों तथा कर्मचारियों के लिये आवास की भी व्यवस्था की गई है।
- इसका परियोजना का उद्देश्य किसी भी प्रकार से न्याय व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न करने वाले कारकों का समाधान करना है।
- ऐसा इसलिये किया जा रहा है कि ताकि सभी को समय से न्याय दिलाया जा सके। न्याय व्यवस्था को कम खर्चीली बनाने के साथ-साथ सामान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में न्याय देने की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।
सेंडाई फ्रेमवर्क
Sendai Framework
वर्ष 2015 में सेंडाई, जापान में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर विश्व सम्मेलन में 187 देशों द्वारा आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) को अपनाया गया था।
सेंडाई फ्रेमवर्क क्या है?
- सेंडाई फ्रेमवर्क एक प्रगतिशील फ्रेमवर्क है और इस महत्त्वपूर्ण फ्रेमवर्क का उद्देश्य 2030 तक आपदाओं के कारण होने वाले महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के नुकसान और प्रभावित लोगों की संख्या को कम करना है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना बनाने वाला भारत पहला देश है।
उद्देश्य
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु निर्मित सेंडाई फ्रेमवर्क का उद्देश्य आपदा के संदर्भ में प्रबंधन की रणनीति का अनुपालन करना है।
- यह फ्रेमवर्क छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक सभी प्रकार की आपदाओं, प्राकृतिक एवं मानव जनित खतरों, पर्यावरणीय, तकनीकी आदि खतरों के संबंध में लागू होगा।
लक्ष्य
- वर्ष 2030 तक वैश्विक जीडीपी में प्रत्यक्ष आपदा आर्थिक नुकसान को कम करना।
- वर्ष 2030 तक विभिन्न प्रकार के खतरों के संबंध में पूर्व-चेतावनी प्रणाली उपलब्ध कराना।
- वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय एवं स्थानीय आपदा जोखिम में कमी की रणनीतियाँ तैयार करना, साथ ही इस कार्य के लिये अधिक से अधिक देशों को सहयोग प्रदान करना।
- वर्ष 2030 तक वैश्विक आपदा मृत्यु दर में कमी लाना।
- वर्ष 2030 तक इस फ्रेमवर्क में निहित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये विकासशील देशों को सहयता सुनिश्चित करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का मार्ग प्रशस्त करना।
- साथ ही वर्ष 2030 तक आवश्यक महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचागत सुधार लाना, ताकि ज़रूरत पड़ने पर त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके।
ट्यूरिअल जलविद्युत ऊर्जा परियोजना
Tuirial Hydro Electric Power Project (HEPP)
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मिज़ोरम में 60 मेगावॉट की ट्यूरिअल जलविद्युत ऊर्जा परियोजना (Tuirial Hydro Electric Power Project - HEPP) को राष्ट्र को समर्पित किया गया।
प्रमुख बिंदु
- ट्यूरिअल जलविद्युत ऊर्जा परियोजना का निर्माण केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में किया गया है।
- इसका क्रियान्यवन विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत पूर्वोत्तर इलेक्ट्रिक पॉवर कार्पोरेशन (North Eastern Electric Power Corporation - NEEPCO) द्वारा किया गया है।
- यह परियोजना मिज़ोरम में स्थापित सबसे बड़ी परियोजना है और इससे उत्पादित बिजली राज्य को दी जाएगी।
लाभ
- इससे राज्य का संपूर्ण विकास और केंद्र सरकार के महत्त्वाकांक्षी और प्रमुख कार्यक्रम “सभी को सातों दिन चौबीसों घंटे किफायती स्वच्छ ऊर्जा” के लक्ष्य को पूर्ण किया जा सकेगा।
- राज्य में बिजली की मौजूदा मांग केवल 87 मेगावाट है और इसकी पूर्ति राज्य की लघु बिजली परियोजनाओं और केन्द्रीय क्षेत्र की परियोजनाओं में उसके अपने हिस्से की बिजली की उपलब्धता के ज़रिये हो रही है।
- परियोजना से अतिरिक्त 60 मेगावाट बिजली प्राप्त होने के साथ ही मिज़ोरम राज्य अब सिक्किम और त्रिपुरा के बाद पूर्वोत्तर भारत का तीसरा विद्युत-अधिशेष राज्य बन जाएगा।
- बिजली में आत्मनिर्भरता हासिल करने के अलावा इस परियोजना से मिज़ोरम राज्य को कुछ अतिरिक्त लाभ हासिल होंगे, जिनमें रोज़गार सृजन, नौवहन (navigation), जलापूर्ति, मत्स्य पालन (pisciculture) एवं वन्य जीव-जंतु का संरक्षण, पर्यटन, इत्यादि शामिल हैं।
पृष्ठभूमि
- इस परियोजना के क्रियान्यवन हेतु जुलाई 1998 में अनुमति प्रदान की गई थी, साथ ही जुलाई 2006 में इसके पूरा होने का समय निर्धारित किया था।
- जून 2004 में परियोजना का तीस प्रतिशत कार्य पूरा होने के बाद स्थानीय आंदोलन के कारण काम को पूर्ण रूप से रोकना पड़ा।
- निपको के सतत् प्रयासों और विद्युत तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, केंद्र और मिज़ोरम सरकार के सक्रिय सहयोग से जनवरी, 2011 में परियोजना में फिर से काम की शुरुआत की गई।