प्रीलिम्स फैक्ट्स : 16 मार्च, 2018
ई-ऑफिस कार्यक्रम
हाल ही में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा 34 मंत्रालयों / विभागों को ई-ऑफिस कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये पुरस्कार दिये गए हैं। DARPG सचिव के अनुसार सम्मानित किये गए इन मंत्रालयों ने 80% या इससे अधिक तक ई-ऑफिस कार्यक्रम को लागू कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- ई-ऑफिस कार्यक्रम डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के अंतर्गत मिशन मोड प्रोजेक्ट्स में से एक है।
- ई-ऑफिस सरकार के सभी स्तरों पर किये जाने वाले मुख्य कार्यों को एक आभासी 'कागज़-रहित' वातावरण में संपादित करने की सुविधा उपलब्ध कराता है।
- प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) ई-ऑफिस परियोजना के कार्यान्वयन के लिये नोडल विभाग है।
- राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) इस परियोजना का तकनीकी भागीदार है।
- ई-ऑफिस अनुप्रयोग एक खुली और उत्तरदायी सरकार के उद्देश्य को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- DARPG ने केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा ई-ऑफिस के कार्यान्वयन की प्रगति की निगरानी के लिये एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) भी स्थापित की है।
- इस सतत् और सक्रिय निगरानी के परिणामस्वरूप, ई-ऑफिस पर मंत्रालयों/विभागों की संख्या 6 से 34 तक बढ़ गई है। इस अवधि के दौरान सक्रिय ई-फाइलों की संख्या 7,848 से बढ़कर 7,33,374 हो गई है।
- सरकार का उद्देश्य निकट भविष्य में अपने सभी मंत्रालयों / विभागों में कागज़-रहित कार्यप्रणाली और प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करना है।
105वीं भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस
भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा आज मणिपुर की राजधानी इम्फाल में 105वीं भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस का उद्घाटन किया गया। सामान्यत: भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस का जनवरी के पहले सप्ताह में हर वर्ष आयोजन होता है जिसमें देश भर से शीर्ष वैज्ञानिक इस सम्मेलन में शिरकत करते हैं।
प्रमुख बिंदु
- इस बार के आयोजन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रो. मोहम्मद युनूस, प्रो. हीरोशी अमानो और दलाई लामा भी शामिल होंगे।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों, विद्वानों और कॉरपोरेट जगत के प्रतिनिधियों सहित लगभग 5,000 प्रतिनिधि इसमें शामिल होंगे।
- यह कॉन्ग्रेस वहनीय संधारणीय नवाचारों को बढ़ावा देने के लिये रूपांतरणकारी विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करेगी।
- पाँच दिनों के दौरान ‘सभी के लिये विज्ञान’ (Science for All), ‘समावेशी सामाजिक विकास को बढ़ावा देने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका’ और ‘विज्ञान तथा समाज: नवाचार के माध्यम से दूरियों को पाटना’ आदि पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
- एक प्रौद्योगिकी आधारित स्टार्ट-अप कॉन्क्लेव भी प्रदर्शित किया जाएगा जिसमें शीर्ष स्तर के नवाचारियों और उद्यमी शोधकर्त्ताओं को आमंत्रित किया जाएगा।
- 104वीं विज्ञान कॉन्ग्रेस का आयोजन आंध्र प्रदेश के तिरूपति में हुआ था।
- पहले इस कॉन्ग्रेस का आयोजन 3-7 जनवरी को हैदराबाद में उस्मानिया विश्वविद्यालय में किया जाना था किंतु सुरक्षा कारणों के चलते इसे मणिपुर विश्वविद्यालय में स्थांतरित कर दिया गया।
- भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस संघ (Indian Science Congress Association) द्वारा 1914 से विज्ञान कॉन्ग्रेस का आयोजन किया जा रहा है जिसका उद्देश्य भारत में वैज्ञानिक मनोवृत्ति, आधुनिक विज्ञान और समाज के विकास के लिये इसका सही उपयोग करना है।
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कुसुम योजना
किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान अथवा कुसुम (Kisan Urja Surksha evam Utthaan Mahaabhiyan - KUSUM) योजना के लिये बजट 2018-19 में दस वर्षों के लिये 48000 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
उद्देश्य
- विकेंद्रित सौर ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहन।
- संप्रेषण नुकसान में कमी।
- कृषि क्षेत्र के सब्सिडी भार को कम करके बिजली वितरण कंपनियों को वित्तीय समर्थन।
- RPO (Renewable Purchase Obligation) लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये राज्यों को समर्थन।
- ऑफ ग्रिड और ग्रिड से जुड़े सौर जल-पंपों के माध्यम से निश्चित जल संसाधन जुटाकर किसानों को जल सुरक्षा प्रदान करना।
- राज्य के सिंचाई विभागों की सिंचाई क्षमता के उपयोग के लिये विश्वसनीय रूप से ऊर्जा प्रदान करना।
- रूफ टॉप तथा बड़े पार्कों के बीच माध्यमिक दायरे में सौर बिजली उत्पादन की रिक्तता को भरना।
भारत सरकार कुसुम योजना को अंतिम रूप देने के चरण में है जो अन्य बातों के साथ निम्नलिखित लाभ प्रदान कराएगी-
- ग्रामीण क्षेत्रों में 2 मेगावाट तक की क्षमता वाले ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना।
- ग्रिड से नहीं जुड़े किसानों की सिंचाई की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये स्टैंडअलोन ऑफ-ग्रिड सौर जल-पंपों की स्थापना।
- किसानों को ग्रिड की आपूर्ति से स्वतंत्र बनाने के लिये ग्रिड से जुड़े मौजूदा कृषि पंपों का सौर्यीकरण (Solarization)।
- सिंचाई आवश्यकताओं के लिहाज़ से दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थापित किये जाने वाले इन सौर जल-पंपों से अतिरिक्त सौर ऊर्जा को डिस्कॉम्स को बेचकर किसान के लिये आय के अतिरिक्त स्रोत का निर्माण।
- सरकारी क्षेत्र के ट्यूबवेलों और लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं का सौर्यीकरण।
- इस योजना में बंजर और व्यर्थ भूमि पर सौर संयंत्र स्थापित किये जाने से इनका बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा।
- इस योजना के सफल क्रियान्वयन से जल संरक्षण, जल सुरक्षा और ऊर्जा दक्षता जैसे लाभ भी प्राप्त होंगे।
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अटल भू-जल योजना
केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2018 से देश में भू-जल संरक्षण तथा इसका स्तर बढ़ाने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी ‘अटल भू-जल योजना’ शुरू करने का प्रस्ताव किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- इस योजना हेतु 6000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसमें विश्व बैंक और केंद्र सरकार की हिस्सेदारी क्रमश: 50:50 प्रतिशत की रहेगी।
- इस योजना को गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जल की कमी वाले क्षेत्रों हेतु प्रस्तावित किया गया है।
- इसके अंतर्गत इन प्रदेशों के 78 ज़िलों, 193 ब्लॉकों और 8350 ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाएगा।
आवश्यकता क्यों?
- केंद्रीय भूजल बोर्ड की विगत वर्ष की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 6584 भूजल ब्लॉकों में से 1034 ब्लॉकों का अत्यधिक उपयोग किया गया है। इसे ‘डार्क जोन’ अर्थात् पानी के संकट की स्थिति के रूप में संबोधित किया जाता है।
- जल संसाधन मंत्रालय द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के अनुसार, भारत में जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 1951 में 5177 घनमीटर से घटकर वर्ष 2011 में 1545 घनमीटर रह गई है। इसका एक अहम कारण वार्षिक जल उपलब्धता (आपूर्ति) से अधिक जल के उपभोग पर उचित एवं प्रभावी नियंत्रण की कमी होना है।
- ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय जल मिशन के तहत भी देश के 11 राज्यों-आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल को कार्य निष्पादन आधारित जल संचालन के उद्देश्य मॉडल के तौर पर तैयार करने की पहल की गई है।
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