प्रीलिम्स फैक्ट्स:13 Nov, 2017 | 14 Nov 2017


‘पैसिफिक शैडो जोन’

  • शैडो ज़ोन (shadow zone) उस क्षेत्र को कहा जाता है, जहाँ अस्पष्ट स्थलाकृति और 2.5 किलोमीटर से अधिक गहराई पर भू-तापीय ऊष्मा के कारण ऊपर उठती धाराओं के मध्य जल स्थिर बना हुआ है और छिछली पवन संचालित धाराएँ (shallower wind-driven currents) उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में पानी के समीप आ जाती हैं।
  • यह उत्तरी प्रशांत में सबसे प्राचीन जल है और यह 1,000 से भी अधिक वर्षों से समुद्र तल से 2 किलोमीटर नीचे एक ‘शैडो ज़ोन’ के रूप में विद्यमान है।
  • यह जल सतह के नीचे 2.5 किलोमीटर से अधिक गहराई तक नहीं बढ़ सकता।
  • दरअसल, हिन्द व प्रशांत महासागरों से लगभग 2 किलोमीटर गहराई में एक शैडो ज़ोन है, जहाँ मुश्किल से ही कोई लंबवत गति (vertical movement) होती है, जिस कारण इस महासागर का जल कई शताब्दियों से एक ही स्थान पर स्थिर बना हुआ है।    


‘नई जीन थैरेपी’

  • हाल ही में विकसित की गई ‘नई जीन थैरेपी’ (new gene therapy) उन लोगों की दृष्टि को बचाने में सक्षम होगी जो आनुवंशिक रेटिना रोग के कारण अंधेपन के शिकार हैं।    
  • इसे लेबेर जन्मजात अन्धता (Leber congenital amaurosis -LCA) कहा जाता है, के कारण पूर्ण अंधापन आ जाता है। इस रोग की शुरुआत बचपन में ही हो जाती है तथा यह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
  • इस प्रकार की यह पहली थैरेपी है।
  • वर्तमान में आनुवंशिक रेटिना रोगों (inherited retinal diseases) के लिये कोई उपचार उपलब्ध नहीं है।
  • इस थैरेपी से अंधेपन के लिये ज़िम्मेदार 225 ‘आनुवंशिक उत्परिवर्तनों’ (genetic mutations) का उपचार किया जा सकेगा। इससे ‘रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा’ (retinitis pigmentosa) का भी उपचार किया जा सकता है। यह भी एक अन्य आनुवंशिक रेटिना रोग है, जो दोषपूर्ण जीनों के कारण होता है।
  • भविष्य में यह जीन थैरेपी आयु संबंधी ‘मैकुलर डिजेनरेशन’ (macular degeneration) जैसे सामान्य रोगों में भी अंधेपन को दूर करने के लिये संभावित प्रमुख प्रोटीन भी उपलब्ध कराएगी। "
  • एलसीए दुर्लभ है जो 80,000 व्यक्तियों में से लगभग एक व्यक्ति को प्रभावित करता है। यह एक अथवा 19 अलग-अलग जीनों के कारण हो सकता है।
  • इस जीन थैरेपी को ‘वोरेतीजेन नेपर्वोवेक-लक्सटर्ना’ (voretigene neparvovec -Luxturna)  नाम दिया गया है।    


पश्चिमी घाट के ‘आँख रहित’ मेंढक

  • पश्चिमी घाट में विकृति युक्त कई मेंढक पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन मेंढकों में मौजूद विकृति का कारण पर्यावरण व उनकी आहार श्रृंखला में घुले विषाक्त पदार्थ (कीटनाशक) हैं।
  • लुप्त आँखे, विकृत पिछले पैर, लुप्त अंग, आंशिक अंग, मुड़े हुए अंग, असामान्य रूप से पतले और कमज़ोर अंग पश्चिमी घाट के मेंढकों की असामान्य विकृतियों की द्योतक हैं।
  • चूँकि मेंढक अपने आवास में परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं,  अतः कीटनाशकों का अधिक मात्रा में उपयोग करने से मेंढकों में विकृतियाँ आ जाती हैं।
  • धान के खेतों में रहने वाले मेंढकों में कई विकृतियाँ पाई गई हैं। सभी उभयचर धान के खेत के छिछले जल में प्रजनन नहीं करते हैं। कीटनाशकों से पड़ने वाला प्रभाव मेंढकों के प्रजनन काल पर भी निर्भर करता हैं।
  • मेंढकों के लार्वा और वयस्क आबादी के विनाश में कीटनाशक एक बड़े कारक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • कीटनाशक मुख्यतः मेंढकों की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं। ये रसायन स्वतः ही मृदा में पहुँच जाते हैं और इसके माध्यम से जल प्रणाली में चले जाते हैं, जहाँ मेंढकों के लार्वा (टेडपोल) विकसित होते हैं।