प्रीलिम्स फैक्ट्स : 13 फरवरी, 2018
हिंदी साहित्य अकादमी
भारत की साहित्य अकादमी 'नेशनल एकेडेमी ऑफ लेटर्स' साहित्यिक संवाद, प्रकाशन और उसका देशभर में प्रसार करने वाली एक केंद्रीय संस्था है। यह संस्था देश की चौबीस भाषाओं, जिसमें अंग्रेज़ी और राजस्थानी भाषा को भी शामिल किया गया है, में साहित्यिक क्रिया-कलापों का पोषण करती है।
- अकादमी द्वारा प्रत्येक वर्ष चौबीस भाषाओं में साहित्यिक कृतियों के लिये पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं, साथ ही इन्हीं भाषाओं में परस्पर साहित्यिक अनुवाद के लिये भी पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं।
नोडल निकाय
- भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय इसका नोडल निकाय है।
साहित्य अकादमी परिषद
- परिषद का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
- यह 99 सदस्यों की एक सामान्य परिषद है, जिसका गठन कुछ इस प्रकार से किया गया है :
♦ 1 अध्यक्ष, (इसके पहले अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू थे, इसके वर्तमान अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार है।)
♦ 1 वित्तीय सलाहकार और 5 भारत सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य।
♦ 35 भारत सरकार के राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि।
♦ 24 साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं के प्रतिनिधि तथा 20 भारत के विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि।
♦ 8 साहित्य-क्षेत्र में अपने उत्कर्ष के लिये परिषद द्वारा निर्वाचित व्यक्ति एवं।
♦ संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, भारतीय प्रकाशक संघ और राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के 1-1 प्रतिनिधि।
सेमा 4 नेटालिस
वैज्ञानिकों ने बच्चों में होने वाली तकरीबन 193 आनुवंशिक बीमारियों की जाँच की दिशा में एक उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। अब इस जाँच को मात्र एक डी.एन.ए. टेस्ट की सहायता से आसानी से पूरा किया जा सकता है। इस टेस्ट को वैज्ञानिकों द्वारा ‘सेमा 4 नेटालिस’ नाम दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
- इस टेस्ट की सहायता से माँसपेशियों के क्षय और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की आसानी से जाँच की जा सकती है।
- इस टेस्ट की सबसे विशेष बात यह है कि इसे घर पर भी किया जा सकता है।
- यह टेस्ट इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सामान्य टेस्ट की अपेक्षा इस टेस्ट की सहायता से पाँच गुना अधिक बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।
- आमतौर पर सामान्य जाँच प्रक्रिया के अंतर्गत आनुवंशिक बीमारियों के विषय में बहुत देर से पता चलता है ऐसे में उनका पूर्ण रूप से इलाज कर पाना बहुत कठिन हो जाता है।
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बंगाल की खाड़ी में ईल की तीन नई प्रजातियाँ
जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों द्वारा बंगाल की खाड़ी में ईल मछली की तीन नई प्रजातियों की खोज की गई है। अभी तक दुनियाभर ईल की तकरीबन 1000 प्रजातियों की पहचान की गई है। भारत में यह संख्या 125 के आसपास है। ये नदियों और समुद्रों के तल में पाई जाती हैं। ये साँप की तरह दिखती हैं। समुद्र में पाई जाने वाली ईल अक्सर काले एवं भूरे रंग की होती है।
मुख्य बिंदु
- जिम्नोथोरैक्स स्यूडोटाइल (Gymnothorax pseudotile) पृष्ठीय पक्ष पर सफेद डॉट्स वाली इस गहरे भूरे रंग की मछली को बंगाल की खाड़ी के दिघा तट पर खोजा गया है।
- जिम्नोथोरैक्स विसाखेंसिस (Gymnothorax visakhaensis) भूरे रंग की इस ईल को बंगाल की खाड़ी के विशाखापत्तनम तट से खोजा गया है।
- एंसेलिकोर प्रोपिंकुआ (Enchelycore propinqua) लाल-भूरे रंग की इस ईल की खोज भी बंगाल की खाड़ी के विशाखापत्तनम तट पर की गई है। इन तीनों में यह ईल आकार में सबसे छोटी है।
- इससे पहले वर्ष 2016 में बंगाल की खाड़ी में ही डॉ मोह्मात्र के नेतृत्व में जिम्नोथोरैक्स इंडिकस नामक एक खाने योग्य ईल की खोज की गई थी।
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सीसीटीएनएस
हाल ही में पंजाब में सीसीटीएनएस परियोजना की शुरुआत की गई है। आपराधिक रिकार्ड्स का राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने, सभी पुलिस स्टेशनों को एक कॉमन एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर से आपस में जोड़ने और जाँच, नीति निर्धारण, डेटा विश्लेषण, अनुसंधान और नागरिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये सीसीटीएनएस की शुरुआत की गई। इस परियोजना के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को हार्डवेयर, सीसीटीएनएस सॉफ्टवेयर, कनेक्टिविटी, एकीकृत प्रणाली, परियोजना प्रबंधन एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- सरकार ने पुलिस के कामकाज में पारदर्शिता लाने तथा जवाबदेही के लिये 19 जून, 2009 को अपराध तथा अपराधी खोज नेटवर्क और प्रणाली (Crime and Criminal Tracking Networks and Systems-CCTNS) की शुरुआत की थी।
- इसके बाद नवंबर 2015 में केंद्र सरकार ने सीसीटीएनएस ट्रैकिंग परियोजना को एक प्रमुख सुधार के रूप में स्वीकार करते हुए ई-कोर्ट के साथ सीसीटीएनएस, ई-जेल, फोरेंसिक और अभियोजन-आपराधिक न्याय प्रणाली के महत्त्वपूर्ण अवयवों को एकीकृत करके एकीकृत आपराधिक न्याय प्रणाली को लागू करने का निर्णय किया था।
- यह परियोजना राज्य पुलिस अधिकारियों को अपराध एवं अपराधियों के आँकड़ों को सीसीटीएनएस एप्लीकेशन में दर्ज करने का माध्यम प्रदान करती है।
- सीसीटीएनएस के तहत देश के सभी थानों के रिकार्ड को डिजिटल बनाया जाना है, ताकि अपराधियों और आतंकियों से जुड़ी प्रत्येक जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध रहे।
- गृह मंत्रालय की इस बहुआयामी परियोजना की राष्ट्रीय स्तर पर देख-रेख का कार्य नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के पास है।
आईसीजेएस प्रणाली (Integrated Criminal Justice System-ICJS)
- सीसीटीएनएस परियोजना का दायरा पुलिस आँकड़ों को आपराधिक न्याय प्रणाली के अन्य स्तंभों, जैसे- न्यायालय, जेल, अभियोग, पैरवी, फोरेंसिक और फिंगर प्रिंट्स तथा किशोर गृहों की पहुँच तक बढ़ाया गया है।
- इसके तहत एक नई प्रणाली—एकीकृत आपराधिक न्याय प्रणाली (Integrated Criminal Justice System-ICJS) भी विकसित की गई है।
- आईसीजेएस प्रणाली का विकास वांछित डेटा पाने के लिये एडवांस सर्च सेवा के साथ एक डैशबोर्ड के रूप में किया गया है।
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