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प्रीलिम्स फैक्ट्स : 09 मई, 2018

  • 09 May 2018
  • 13 min read

तमिलनाडु में मानसूनी बारिश के लिये पश्चिमी घाट के जंगल का महत्त्व

हाल ही शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने पाया कि पश्चिमी घाटों के घने वन ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान तमिलनाडु में होने वाली बारिश का निर्धारण करते है।

  • पश्चिमी घाट के घने वन सामान्य मानसून वाले वर्ष में तमिलनाडु में होने वाली दक्षिण-पश्चिम मानसूनी बारिश में 40% तक आर्द्रता का योगदान करते हैं।
  • इन वनों का औसत योगदान लगभग 25% से 30% तक होता है लेकिन मानसून की कमी वाले वर्ष में यह योगदान 50% तक बढ़ जाता है।
  • पश्चिमी घाट अगस्त और सितंबर के दौरान तमिलनाडु के अधिकांश स्थानों पर प्रतिदिन 3 मिमी. तक तथा जून तथा जुलाई के दौरान प्रतिदिन 1 मिमी. बारिश में योगदान देते हैं।
  • अध्ययन में यह भी पाया गया है कि पश्चिमी घाटों में निर्वनीकरण के कारण पूरे राज्य के तापमान में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।  
  • दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी बारिश में नमी की आपूर्ति के लिये पश्चिमी घाट वनस्पति क्षेत्र की भूमिका का अध्ययन करने हेतु पश्चिमी घाट का वन क्षेत्र के साथ तथा वन क्षेत्र के बिना योगदान का प्रयोग किया गया।
  • पश्चिमी घाटों से वन क्षेत्र को हटाने पर प्रतिदिन बारिश में 1 से 2.5 मिमी. तक की महत्त्वपूर्ण कमी पाई गई, जो तमिलनाडु की कुल मानसूनी बारिश में औसतन 25% परिवर्तन कर देती है।
  • हालाँकि,शोधकर्त्ताओं ने मानसून की कमी वाले तीन वर्षों के अध्ययन में पाया गया कि तमिलनाडु ने पश्चिमी घाटों से लाभ प्राप्त किया है।
  • घाटों में वन क्षेत्र तमिलनाडु में नमी आपूर्ति के लिये संधारित्र की तरह काम करता है। मानसून काल में निवर्तन के दौरान या जब बारिश में तेजी से कमी आती है या लगातार तीन दिनों तक बारिश नहीं होती है, उस समय तमिलनाडु की बारिश पर घाटों में निर्वनीकरण का प्रभाव मानसून अवधि के नम काल की तुलना में अधिक होता है।
  • जहाँ निवर्तन अवधि के दौरान वर्षा में गिरावट राज्य भर में व्याप्त होती है, वहीं वृष्टि काल  के दौरान घाटों में वनस्पति का योगदान ज्यादातर राज्य के दक्षिणी हिस्से में होता है और यह 25 से 30% तक होता है। 

घरेलू सीवेज से पृथक किये गए जीवाणुओं ने ऑर्गेनोफास्फोरस कीटनाशक को हटाया 

हाल ही में भारतीय शोधकर्त्ताओं ने घरेलू सीवेज से पृथक किए गये तीन जीवाणुओं का प्रयोग करके पानी तथा मिट्टी दोनों से क्लोरपाइरीफोस (Chlorpyrifos) कीटनाशक को हटाने में सफलता प्राप्त की है।

  • क्लोरपाइरीफोस एक ऑर्गेनोफास्फोरस कीटनाशक है, जो सामान्य रूप से मानव के लिये विषाक्त होता है।
  • क्लोरपाइरीफोस के कारण उत्पन्न विषाक्तता केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, कार्डियोवेस्क्युलर सिस्टम तथा श्वसन प्रणाली को प्रभावित करती है।
  • इस शोध के तहत जीवाणुओं की तीन प्रजातियों का प्रयोग करके, मिट्टी में लंबे समय तक बने रहने वाले किसी भी प्रकार के विषाक्त कण को छोड़े बिना कीटनाशक को पूर्ण रूप से हटाया गया।
  • घरेलू सीवेज में पाए जाने वाले जीवाणु नियमित रूप से इस कीटनाशक के निम्न स्तर के संपर्क में आते रहते हैं।
  • इस प्रकार ये जीवाणु जीवित रहने के लिये  स्वयं को कीटनाशकों के अनुकूल बना लेते हैं, इसी वजह से वैज्ञानिकों ने घरेलू सीवेज से पृथक होने जीवाणुओं का प्रयोग किया।
  • ऐसे जीवाणुओं को पृथक करने के लिये जो कीटनाशकों को अवशोषित कर सके, घरेलू सीवेज में पाए जाने वाले जीवाणुओं को पोषक माध्यम के साथ-साथ कीटनाशकों के अलग-अलग सांद्रण में डाला गया।
  • जीवाणुओं की क्षमता की जाँच कीटनाशक के 500मिग्रा./मिली. उच्च सांद्रण में की गई। जल में मिले हुए कीटनाशक के मामले में सभी तीनों जीवाणु अकेले तथा मिश्रित दोनों तरीकों से तीन दिन में 90% से अधिक कीटनाशक को हटाने में सक्षम रहे।   
  • मिट्टी में 300मिग्रा./किग्रा. कीटनाशक के मामले में, जीवाणुओं का मिश्रित समूह 30 दिन में 50% कीटनाशक को कम कर सका। केवल एक प्रजाति की अपेक्षा तीनों जीवाणुओं के मिश्रित समूह ने बेहतर तरीके से कीटनाशकों को कम करना प्रदर्शित किया।
  • ये अध्ययन जीवाणुओं के अंदर कीटनाशकों के संचय की पुष्टि करने के लिये तथा ये कहाँ पाए जाते हैं।
  • अध्ययन में पाया गया कि कीटनाशक कोशिका के अंदर जैविक रूप से एकत्रित होता है, साथ ही यह कोशिका की सतह से जुड़ा रहता है।
  • चूँकि जीवाणु मिट्टी या जल में तेजी से वृद्धि करते हैं, मृत सूक्ष्म जीवों द्वारा मुक्त कीटनाशक को नए उत्पन्न जीवाणुओं द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इसलिये  ये संभव है कि मिट्टी या जल कीटनाशकों से मुक्त हो जाएगा।

15वाँ एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में 10 से 12 मई, 2018 तक 15वें एशिया मीडिया शिखर सम्मेलन (Asia Media Summit-AMS) का आयोजन किया जाएगा। इस सम्मेलन का आयोजन मंत्रालय द्वारा भारतीय जनसंचार संस्थान (Indian Institute of Mass Communication-IIMC) और ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसलटेंटस इंडिया लिमिटेड (Broadcast Engineering Consultants India Limited-BECIL) के साथ संयुक्त रूप से किया जाएगा। 

  • एएमएस 2018, कुआलालंपुर स्थित एशिया-पैसेफिक इंस्टिट्यूट ऑफ़ ब्रॉडकास्टिंग डेवलेपमेंट (Asia Pacific Institute for Broadcasting Development - AIBD) का एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये  प्रतिष्ठित शिखर सम्मेलन है और भारत में पहली बार इसका आयोजन किया जा रहा है।
  • इस शिखर सम्मेलन का केंद्र बिंदु “Telling Our Stories – Asia and More” है। इसका आयोजन दो भागों में किया जाएगा। इसमें शिखर सम्मेलन से पहले 8 और 9 मई को कार्यशाला और 10 से 12 मई, 2018 तक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाना है।
  • इस शिखर सम्मेलन में एशिया क्षेत्र में सूचना एवं प्रसारण संबंधी मंत्रालय, अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैसे यूनेस्को, एफएओ और संयुक्त राष्ट्र संघ, नियामक, सरकारी व निजी टीवी एवं रेडियो प्रसारण कंपनी, टेलीविजन चैनल तथा नेटवर्क, संचार के क्षेत्र में शैक्षणिक संस्थान, मीडिया अनुसंधान, सामुदायिक रेडियो संगठन, पत्रकार, मीडिया और प्रसारण उपकरण निर्माता भाग लेंगे।
  • शिखर सम्मेलन से क्षेत्रीय और द्विपक्षीय विचार-विमर्श को प्रोत्साहन मिलेगा और प्रसारण क्षेत्र के सामने आ रही चुनौतियों पर सहयोग को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • शिखर सम्मेलन में 39 देशों के 200 विदेशी प्रतिनिधि भी भागीदारी करेंगे। इनमें सार्क (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका); आसियान (कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम); पूर्वी-एशिया (कोरिया, हॉन्गकॉन्ग, जापान); अफ्रीका (मॉरीशस, नाईजीरिया, सेशल्स, दक्षिण अफ्रीका, सूडान, ट्यूनीशिया); ओशेनिया (ऑस्ट्रेलिया, फिजी, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी); यूरोप (फ्रॉन्स, जर्मनी, नीदरलैंड, स्वीडन, ब्रिटेन); सीरिया, उज्बेकिस्तान, अमेरिका और चीन के प्रतिनिधि शामिल हैं।

कश्मीर घाटी में पहली बार दर्ज़ की गई एफिड की उपस्थिति

हाल ही में आक्रामक एफिड (द्रुमयूका) की उपस्थिति भारी संख्या में भारत की फलों की कटोरी कहे जाने वाले कश्मीर घाटी में दर्ज की गई है। ध्यातव्य है कि ब्राउन पीच एफिड एक कीट है जो समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाने वाले फलों के वृक्षों पर हमला करते हैं और पहली बार इस क्षेत्र में पाए गए हैं।

  • भारत में इसकी उपस्थिति पहली बार 1970 के दशक में हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब में दर्ज़ की गई थी और लगभग 40 साल बाद, कश्मीर घाटी में पुनः यह कीट सामने आए हैं।
  • एफिड कीट पौधों के रस से भोजन प्राप्त करते हैं और पौधों के उन ऊतकों पर हमला करते हैं जो पौधे के विभिन्न भागों को भोजन पहुँचाते  हैं। इस एफिड का प्रसार स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है, जो काफी हद तक फलों के वृक्षों पर आधारित है।
  • ब्राउन पीच एफिड (Pterochloroides persicae) आड़ू (Peach) तथा बादाम (Almond) के लिये एक कुख्यात कीट है। 
  • सूक्ष्म (लगभग 3मिमी. लंबा) एफिड सबसे अधिक अप्रैल, मई, सितंबर तथा अक्तूबर माह के दौरान पनपते हैं।
  • हालाँकि, 20 से 22 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान इनके लिये सबसे अधिक अनुकूल होता है फिर भी भूरे तथा सफ़ेद धब्बे वाले ये कीट 3 डिग्री सेल्सियस तक के निम्न तापमान में भी सक्रिय रहते हैं। 
  • लार्वा (अंडों से निकलने वाले छोटे एफिड) एक माह में लैंगिक परिपक्वता प्राप्त कर लेते हैं तथा और अधिक एफिड पैदा करना प्रारंभ कर देते हैं। 
  • केवल एक साल में ही एफिड के 6 से 8 पीढ़ियों का निर्माण हो जाता है। 

नियंत्रण

  • प्राकृतिक रसायनों के कई संयोजन तथा सांद्रण जिनमें नीम के पौधे का रस तथा लैवेंडर के तेल भी शामिल हैं, एफिड की संख्या को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
  • लाल चींटियाँ भोजन के लिये एफिड से रस प्राप्त करती हैं, जबकि ततैया (Wasp) तथा अन्य कई परजीवी भी एफिड का शिकार करते हैं।
  • यदि इनके संक्रमण को नियंत्रित नहीं किया गया, तो आक्रामक एफिड तेजी से फैल सकते हैं। निश्चित रूप से ये कश्मीर घाटी की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।
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