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प्रीलिम्स फैक्ट्स : 09 अप्रैल, 2018

  • 09 Apr 2018
  • 8 min read

वन धन विकास केंद्र

जनजातीय मामले मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ राज्य के बीज़ापुर जिले में प्रायोगिक आधार पर पहले बहुद्देश्यीय “वन धन विकास केंद्र” की स्थापना को मंज़ूरी दी है। इस केंद्र की स्थापना का मुख्य लक्ष्य कौशल उन्नयन तथा क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ प्राथमिक प्रस्संकरण एवं मूल्य संवर्द्धन सुविधा केंद्र की स्थापना करना है।

  • इस पहले वन धन विकास केंद्र मॉडल के कार्यान्वयन, प्रशिक्षण, प्राथमिक स्तर पर प्रसंस्करण के लिये उपकरण तथा औज़ार उपलब्ध कराने और केंद्र की स्थापना के लिये बुनियादी ढाँचे तथा भवन निर्माण हेतु 43.38 लाख रुपए का आवंटन किया जाएगा।
  • आरंभ में इस केंद्र में टेमारिंड ईंट निर्माण, महुआ फूल भंडारण केंद्र तथा चिरौंजी को साफ करने एवं पैकेजिंग के लिये प्रसंस्करण सुविधा होगी।
  • टीआरआईएफईडी ने छत्तसीगढ़ के बीजापुर ज़िले में इस प्रायोगिक विकास केंद्र की स्थापना का कार्य सीजीएमएफपी फेडरेशन को सौंपा है तथा बीजापुर के कलेक्टर समन्वय का कार्य करेंगे।
  • जनजातीय लाभार्थियों के चयन एवं स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के निर्माण का कार्य टीआरआईएफईडी द्वारा आरंभ किया गया है। 10 अप्रैल, 2018 से इसका प्रशिक्षण आरंभ होने का अनुमान है।
  • आरंभ में वन धन विकास केंद्र की स्थापना एक पंचायत भवन में की जा रही है जिससे कि प्राथमिक प्रक्रिया की शुरुआत एसएचजी द्वारा की जा सके। इसके अपने भवन के पूर्ण होने के बाद केंद्र उसमें स्थानांतरित हो जाएगा।
  • वन धन विकास केंद्र एमएफपी के संग्रह में शामिल जनजातियों के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगा जो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों का ईष्टतम उपयोग करने और एमएफपी समृद्ध ज़िलों में टिकाऊ एमएफपी आधारित आजीविका उपयोग करने में उनकी सहायता करेंगे।

गौण वन उपज (एमएफपी) वन क्षेत्र में रहने वाले जनजातियों के लिये आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं। समाज के इस वर्ग के लिये एमएफपी के महत्त्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वन में रहने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिये एमएफपी पर निर्भर करते हैं।

कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य में खोजी गई किंगफिशर की चार प्रजातियाँ

आंध्र प्रदेश के कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य (Krishna Wildlife Sanctuary) में किंगफिशर (kingfisher) की चार प्रजातियाँ पाई गई हैं।

  • वेटलैंड विशेषज्ञ अलापार्थी अप्पा राव (Allaparthi Appa Rao) के तत्त्वावधान में वन्यजीव प्रबंधन प्रभाग, एलुरु (Wildlife Management Division, Eluru) की एक टीम द्वारा इन चारों प्रजातियों की खोज की गई है।
  • इन प्रजातियों की पहचान सफेद गले वाली किंगफिशर (Halcyon smyrnensis) पेड किंगफिशर (Ceryle rudis), ब्लैक-कैपड किंगफिशर (Halcyon pileate) और कॉमन किंगफिशर (Common kingfisher) के रूप में की गई है।
  • भारत में अभी तक किंगफिशर की लगभग 12 प्रजातियों को देखा गया है। खास बात यह है कि इनमें से चार प्रजातियों को 'आर्द्रभूमि आश्रित’ अभयारण्य में पाया गया है।
  • इन चारों प्रजातियों की संरक्षण स्थिति "कम चिंताजनक" (least concern) है।

इंजन की क्षमता एवं प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु नई तकनीक

हाल ही में मेकाट्रोनिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू के वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसी नई तकनीक विकसित की गई है जिसकी सहायता से न केवल इंजन की क्षमता में वृद्धि की जा सकती है बल्कि ईंधन की खपत में भी कमी लाई जा सकती है।

  • इस नई तकनीक की सहायता से कम मेकैनिज़्म वाले वॉल्वस को हाइड्रोलिक सिलेंडर्स और रोटरी हाइड्रोलिक सिलेंडर्स वॉल्वस से बदला गया है। इसके ज़रिये इंजन की गति और वॉल्व के खुलने एवं बंद होने के समय में परिवर्तन किया जा सकता है।
  • कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू के अनुसार, विशेष प्रकार की इस नई तकनीक से तैयार होने वाले वॉल्व को लैब में आसानी से तैयार किया जा सकता है। इन्हें बहुत ही सस्ते और सरल तरीके से तैयार किया जा सकता है इसलिये इनका इस्तेमाल इंजन के उत्पादन में भी किया जा सकता है।
  • इंजन शोधकर्त्ताओं के अनुसार, आंतरिक दहन इंजन में जो वॉल्व लगाए जाते हैं वे कम मेकैनिज़्म पर काम करते हैं। इसके कारण इनके खुलने और बंद होने के समय को बदला नहीं जा सकता है, लेकिन इस नई तकनीक से तैयार वॉल्व में इस प्रकार की कोई समस्या नहीं आएगी।
  • इसका एक लाभ यह होगा कि इससे ईंधन की खपत तो कम होगी ही साथ ही, इससे गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित कर प्रदूषण के स्तर में भी कमी लाई जा सकती है।

मन की आवाज़ सुनने वाला उपकरण

भारतवंशी एक छात्र अर्नव कपूर के नेतृत्व में अमेरिका स्थित मैसच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसा कंप्यूटर सिस्टम तैयार किया गया है जो आपके मन की बात सुनकर किसी भी डिवाइस को ऑपरेट कर सकता है।

  • इस डिवाइस को आसानी से धारण किया जा सकता है। इस डिवाइस में एक कंप्यूटिंग सिस्टम लगा है। इसमें चार इलेक्ट्रोड लगे हुए है जो त्वचा से लगे हुए होते हैं।
  • जब भी आप मन में कुछ बोलते हैं तो कुछ न्यूरोम्स्कूलर सिग्नल निकलते हैं, डिवाइस में संलग्नित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उन सिग्नल को शब्दों में परिवर्तित कर कंप्यूटर में फीड कर देता है।
  • यह डिवाइस कंप्यूटर से प्राप्त जानकारी को बोन कंडकशन हेडफोन (bone-conduction headphones) की सहायता से सीधे उपयोगकर्त्ता के कानों में प्रेक्षित करती है।
  • हेड सेट की तरह दिखने वाली इस डिवाइस को “अल्टर इगो” का नाम दिया गया है। फिलहाल यह डिवाइस केवल 93 फीसदी शब्दों की सही पहचान करने में सक्षम है, वैज्ञानिकों द्वारा इसके शब्दकोश में वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है।
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