प्रीलिम्स फैक्टस : 06 जुलाई, 2018 | 06 Jul 2018
भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान
(Bhitarkanika National Park)
भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान में मानसून की शुरुआत के साथ ही बड़ी संख्या में जल पक्षियों (water birds) का आना शुरू हो गया है।
- भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान ओडिशा के केंद्रपाड़ा में अवस्थित है।
- इसे वर्ष 1988 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था।
- यह राष्ट्रीय उद्यान संकटग्रस्त एश्चुरियन मगरमच्छों (estuarine crocodiles) के बड़े आवासों में से एक है।
- यह राष्ट्रीय उद्यान देश में प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा स्थान है। हर साल बड़ी संख्या में यहाँ पर प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है।
- भीतरकणिका ‘भीतर’ और ‘कणिका’ नामक दो ओडिया शब्दों से मिलकर बना है, जिनका अर्थ क्रमशः ‘आंतरिक’ और ‘असाधारण रूप से सुंदर’ है।
- यहाँ लगभग 55 प्रकार के मेंग्रोव पाए जाते हैं, जो मध्य एशिया और यूरोप से आने वाले प्रवासी पक्षियों को प्रजनन हेतु आवास प्रदान करते हैं।
- इसके अतिरिक्त यहाँ टीक, बाँस, पलास, बबूल जैसी अन्य वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
- यह उद्यान सफेद मगरमच्छ, किंग कोबरा, ब्लैक इब्स, फिशिंग कैट, डॉल्फिन, जंगली सूअर आदि जानवरों का निवास स्थान भी है।
- हाल ही में एयर इंडिया द्वारा अपनी वेबसाइट पर ताइवान का नाम परिवर्तित कर चीनी ताइपे कर दिया गया। ताइवान द्वारा एयर इंडिया के इस कदम का कड़ा विरोध किया जा रहा है।
- ध्यातव्य है कि चीन अपनी ‘वन चाइना’ पॉलिसी के अनुसार ताइवान को अपना प्रांत मानता है, जबकि ताइवान स्वयं को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानता है।
- चीन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बार- बार यह दोहराता रहता है कि ताइवान को चीनी ताइपे कहा जाना चाहिये।
- चीन में गृहयुद्ध (1949) की समाप्ति के बाद कुओमिन्तांग पार्टी (KMT) के सदस्यों को कम्युनिस्टों द्वारा चीन से बाहर निकाल दिया गया था। तत्पश्चात् इन्होंने ताइवान द्वीप पर शरण ली और यहाँ पर अपनी सरकार का गठन किया।
- हाल ही में इंडोनेशिया के बाली में स्थित ज्वालामुखी माउंट अगुंग में फिर से उद्गार होने लगा है।
- यह एक सक्रिय ज्वालामुखी है, जिसमें पिछली बार 23 जनवरी, 2018 को उद्गार हुआ था।
- ध्यातव्य है कि पिछले वर्ष सितंबर में इंडोनेशियाई प्राधिकारियों ने इसका स्टेटस लेवल तीन से बढ़ाकर लेवल चार कर दिया था, जो कि ज्वालामुखी का उच्चतम स्तर होता है।
- वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है, जिससे किसी ज्वालामुखी के भविष्य में उद्गारित होने या ना होने का पता लगाया जा सके।