प्रीलिम्स फैक्ट्स : 05 मार्च, 2018
डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी
(DefExpo 2018)
पहली बार विश्व के सामने भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी की मुख्य थीम ‘भारत: एक उभरता रक्षा विनिर्माण हब’ (India: The Emerging Defence Manufacturing Hub) है।
मुख्य बिंदु
- डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी भारत की थलसेना, नौसेना एवं वायुसेना की कई रक्षा प्रणालियों एवं कंपोनेंट के एक रक्षा निर्यातक देश के रूप में ब्रांडिंग करेगी।
- जहाँ एक ओर यह प्रदर्शनी भारत की उल्लेखनीय सार्वजनिक क्षेत्र की ताकतों को प्रदर्शित करेगी, वहीं दूसरी ओर यह भारत के बढ़ते निजी क्षेत्र उद्योग को भी सामने लाएगी।
- इसके साथ-साथ यह कंपोनेंट एवं सब- सिस्टम्स के लिये एमएसएमई आधार को भी विस्तारित करेगी।
- डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Ltd) को विभिन्न फ्लाइंग प्लेटफॉर्म के रूप में प्रदर्शित करेगी।
- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के प्लेटफॉर्म के अतिरिक्त, यह प्रदर्शनी घरेलू निजी उद्योग एवं एयरो कंपोनेंट उद्योग (aero-components industry) को भी बढ़ावा देगी।
- डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी का आयोजन समुद्र तट चेन्नई से महाबलीपुरम के रास्ते पूर्वी तट पर किया जा रहा है, यह भारतीय नौसेना को अपने घरेलू डिज़ाइन एवं विनिर्माण क्षमताओं को भी प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करेगी।
- ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत के पास अपनी खुद की एडवांस्ड टाउड आर्टिलरी गन (Advanced Towed Artillery Gun - ATAG) है जिसकी डिज़ाइन एवं विकास कल्याणी ग्रुप, टाटा पावर एवं ओएफबी के सहयोग से डीआरडीओ द्वारा किया गया है।
- भारत अपनी मिसाइल एवं रॉकेट विनिर्माण क्षमताओं का भी प्रदर्शन करेगा जिसमें सतह से वायु, वायु-से-वायु एवं समुद्र से वायु समेत सभी प्रकार के हमलों के लिये उपलब्ध ब्रह्मोस भी शामिल है। इसके अतिरिक्त, डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी का एक बड़ा आकर्षण आकाश मिसाइल सिस्टम भी होगा।
- भारत को एक उभरते रक्षा उत्पादक हब के रूप में रेखांकित करने पर फोकस को देखते हुए डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी में कम-से-कम आधा स्थान घरेलू प्रदर्शकों के लिये निर्धारित किया गया है।
- यह डेफएक्सपो 2018 प्रदर्शनी को अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने एवं रक्षा विनिर्माण की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के साथ समेकित होने का अब तक का सबसे बढ़ा अवसर उपलब्ध कराएगा।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता (International Solar Alliance )
संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन ( International Solar Alliance ) को मान्यता प्रदान की गई है। इसका लाभ यह होगा कि संयुक्त राष्ट्र के दायरे में आने वाले देश संगठन के कार्यों में तेज़ी लाने के साथ-साथ इसके सदस्य बनने के लिये आगे आएंगे।
- इसे संयुक्त राष्ट्र से मान्यता मिलने के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि ऐसे देश जो अभी तक इसके सदस्य नहीं बने हैं, जल्द ही वे भी सदस्य बनने के लिये तेज़ी से आगे आएंगे।
- इससे आइएसए द्वारा बनाई जा रही योजनाओं को लागू कराना भी आसान हो जाएगा।
- साथ ही, यदि दो देशों के बीच किसी भी विषय को लेकर विवाद होगा तो मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तक में ले जाया जा सकेगा।
- इतना ही नहीं विश्व बैंक सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये तेज़ी से आगे आएगा।
पृष्ठभूमि
- आईएसए की स्थापना की पहल भारत द्वारा की गई थी। इसकी शुरुआत संयुक्त रूप से पेरिस में 30 नवम्बर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान कोप-21 से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्राँस के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा की गई थी।
- आईएसए संगठन का सचिवालय हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान के परिसर में स्थापित किया गया है।
- आईएसए के अंतरिम सचिवालय ने 25 जनवरी, 2016 को काम करना शुरू कर दिया था।
- इसके तहत कृषि के क्षेत्र में सौर ऊर्जा का प्रयोग, व्यापक स्तर पर किफायती ऋण, सौर मिनी ग्रिड की स्थापना जैसे कार्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं।
- इन कार्यक्रमों से सदस्य देशों में सौर ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करना एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।
- तीन मौजूदा कार्यक्रमों के अलावा आईएसए के दो और कार्यक्रमों- छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्रों को बढ़ावा देना और सौर ऊर्जा का भंडारण तथा ई-गतिशीलता को शुरू करने की है।
- भारत आईएसए सदस्य देशों को सौर ऊर्जा से घरेलू प्रकाश, किसानों के लिये सौर पंप और अन्य सौर उपकरणों संबंधी परियोजनाओं के लिये समर्थन भी देगा।
उद्देश्य
- इस संगठन का उद्देश्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।
- ऐसे देश जो पूरी तरह या आंशिक तौर पर कर्क रेखा और मकर रेखा के मार्ग में पड़ते हैं एवं सौर ऊर्जा के मामले में समृद्ध हैं, उनसे बेहतर तालमेल के ज़रिये सौर ऊर्जा की मांग को पूरा करना है।
- आईएसए का उद्देश्य सूर्य की बहुतायत ऊर्जा को एकत्रित करने के साथ देशों को एक साथ लाना है।
- यह सौर ऊर्जा के विकास और उपयोग में तेज़ी लाने की एक नई शुरुआत है ताकि वर्तमान और भावी पीढ़ी को ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त हो सके।
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कैंसर से लड़ने के लिये ‘मिनी ट्यूमर’
हाल ही में ब्रिटेन के द इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च (आइसीआर) के वैज्ञानिकों के समूह द्वारा मरीज़ों में होने वाले कैंसर का एक मिनी वर्ज़न तैयार किया गया है। इस मिनी वर्ज़न पर दर्जनों दवाओं का प्रयोग करते हुए कैंसर हेतु सबसे बेहतर उपचार तलाशने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- इस मिनी कैंसर के माध्यम से वैज्ञानिक यह पता करने का प्रयास कर रहे हैं कि किस तरह के उपचार से मरीज़ के सही होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
- वैज्ञानिकों द्वारा इस मिनी ट्यूमर को ऑर्गेनोइड्स का नाम दिया गया है। दरअसल, यह कैंसर कोशिकाओं की छोटी-छोटी गेंदें हैं, जिनके आकार को प्रयोगशाला में बढ़ाया जा सकता है।
- यह शोध आँतों, पेट और पाचन तंत्र से संबंधित अन्य प्रकार के कैंसर के संबंध में भीतरी उपचार की तलाश में किया गया है।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कैंसर कोशिकाओं को इस तरह से विकसित करने से यह पता लगाया जा सकता है कि किस प्रकार के कैंसर के संबंध में कौन सी दवाएँ किस प्रकार से कार्य करेंगी तथा किस स्थिति में काम नहीं करेंगी।
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कैंसर के उपचार हेतु प्रयुक्त होगा उल्कापिंड से आया इरिडियम
वैज्ञानिकों द्वारा कैंसर के इलाज के ऐसे तरीके की खोज की गई है जिससे शरीर के स्वस्थ ऊतकों (टिश्यू) को नुकसान पहुँचाए बिना कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा इसके लिये दूसरी सबसे सघन धातु इरिडियम को कैंसर के इलाज में इस्तेमाल करने की तैयारी की जा रही है।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिकों द्वारा इरिडियम एवं जैविक तत्त्वों का एक मिश्रण तैयार किया गया है जो सीधे कैंसर की कोशिकाओं पर हमला करता है।
- इस प्रक्रिया में कोशिका में मौजूद ऑक्सीजन एकल ऑक्सीजन (ऑक्सीजन का सबसे सक्रिय रूप) में टूटकर कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर देती है।
- इसके अंतर्गत कैंसर से ग्रसित अंग पर लेज़र लाइट का प्रयोग किया जाता है जिससे यह तत्त्व शरीर में अधिक सक्रिय होकर तेज़ी से एकल ऑक्सीजन का निर्माण करता है।
- इरिडियम के प्रयोग से परत-दर-परत कैंसर में मौजूद सभी कोशिकाएँ नष्ट हो जाती है जबकि स्वस्थ कोशिकाओं पर इसका कोई असर नहीं होता है।
- जैसा की हम सभी जानते हैं कि पहले 50 प्रतिशत कीमोथेरेपी में प्लेटिनम धातु का प्रयोग किया जाता था। अब इसकी जगह इरिडियम का इस्तेमाल किये जाने की संभावना है।
- सर्वप्रथम इरिडियम की खोज वर्ष 1803 में की गई थी। ऐसा माना जाता है कि इरिडियम उस उल्का पिंड या क्षुद्र ग्रह से धरती पर आया था, जिसकी टक्कर से 6.6 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी से डायनोसोर विलुप्त हो गए थे।
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