प्रीलिम्स फैक्ट्स : 4 जून, 2018 | 04 Jun 2018
सेवा भोज योजना
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिये कुल 325 करोड़ रुपए की लागत से ‘सेवा भोज योजना’ नामक नई योजना शुरू की है।
उद्देश्य
- इस योजना के तहत भोजन/प्रसाद/लंगर (सामुदायिक रसोई) /भंडारे के लिये घी/तेल/आटा/मैदा/रवा, चावल, दाल, चीनी, बुरा/गुड़ जैसी कच्ची सामग्री की खरीदारी पर केंद्रीय वस्तु और सेवाकर (सीजीएसटी) तथा एकीकृत वस्तु और सेवाकर (आईजीएसटी) का केंद्र सरकार का हिस्सा लौटा दिया जाएगा, ताकि लोगों/श्रद्धालुओं को बगैर किसी भेदभाव के निःशुल्क भोजन/प्रसाद/लंगर (सामुदायिक रसोई) /भंडारा प्रदान करने वाले परोपकारी धार्मिक संस्थानों का वित्तीय बोझ कम किया जा सके।
कौन-कौन पात्र होंगे?
- वित्तीय सहायता/अनुदान के लिये आवेदन करने से पहले कम-से-कम पाँच वर्षों तक कार्यरत मंदिर, गुरूद्वारा, मस्जिद, गिरिजाघर, धार्मिक आश्रम, दरगाह, मठ जैसे परोपकारी धार्मिक संस्थान और एक महीने में कम-से-कम 5,000 लोगों को निःशुल्क भोजन प्रदान करने तथा आयकर की धारा 10 (23बीबीए) के तहत आने वाले संस्थान या सोसायटी पंजीकरण अधिनियम (1860 की XXI) के अंतर्गत सोसायटी के रूप में पंजीकृत संस्थान अथवा किसी भी अधिनियम के अंतर्गत वैधानिक धार्मिक संस्था के बनने के समय लागू कानून के तहत जन न्यास के तौर पर या आयकर अधिनियम की धारा 12 एए के तहत पंजीकृत संस्थान इस योजना के तहत अनुदान पाने के पात्र होंगे।
अन्य प्रमुख बिंदु
- संस्कृति मंत्रालय वित्त आयोग की अवधि के साथ समाप्त होने वाली समयावधि के लिये पात्र परोपकारी धर्मार्थ संस्थान का पंजीकरण करेगा। इसके बाद संस्थान के कार्यों का आकलन करने के पश्चात् मंत्रालय पंजीकरण का नवीनीकरण कर सकता है।
- जन साधारण, जीएसटी प्राधिकारियों और संस्था/संस्थान के लिये पंजीकृत संस्थान का विवरण ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध होगा।
- संस्था/संस्थान को जीएसटी और आईजीएसटी के केंद्र सरकार के हिस्से को वापस पाने के लिये इसे राज्य स्तर पर जीएसटी विभाग के निर्धारित अधिकारी को पंजीकरण की मान्यता के दौरान निर्दिष्ट प्रारूप में भेजना होगा। सहयोग ज्ञापन, कर्मचारियों या निशुल्क भोजन सेवा के स्थान को बढ़ाने/कम करने के किसी भी प्रकार के बदलाव के बारे में मंत्रालय को जानकारी देने की ज़िम्मेदारी संस्थान/संस्था की होगी।
- सभी पात्र संस्थानों का दर्पण पोर्टल में पंजीकरण आवश्यक है। मंत्रालय को प्राप्त हुए सभी आवेदनों की जाँच चार सप्ताह के भीतर इस उद्देश्य से गठित समिति द्वारा की जाएगी।
- समिति की सिफारिशों के आधार पर मंत्रालय में सक्षम प्राधिकारी ऊपर बताई गई विशेष सामग्रियों पर सीजीएसटी और आईजीएसटी का केंद्र सरकार का हिस्सा वापस लौटाने के लिये परोपकारी धार्मिक संस्थानों का पंजीकरण करेगा।
देश की पहली आधुनिक फोरेंसिक लैब
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (Central Forensic Science Lab-CFSL), चंडीगढ़ में सखी सुरक्षा एडवांस फोरेंसिक डीएनए लैबोरेट्री (Sakhi Suraksha Advanced Forensic DNA Laboratory) की आधारशिला रखी। आपराधिक जाँच प्रक्रिया में फोरेंसिक परीक्षण की बहुत अहम भूमिका होती है।
- यह लैब आदर्श फोरेंसिक लैब के तौर पर स्थापित की जा रही है, जल्द ही देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही लैब शुरू की जाएंगी।
- CFSL, चंडीगढ़ की वर्तमान क्षमता 160 मामले/प्रतिवर्ष से भी कम है और सखी सुरक्षा आधुनिक डीएनए फोरेंसिक लैबोरेट्री से यह क्षमता लगभग 2,000 मामले/प्रतिवर्ष बढ़ जाएगी।
- अगले तीन माह में पाँच और आधुनिक फोरेंसिक लैब मुंबई, चेन्नई, गुवाहाटी, पुणे एवं भोपाल में खुलेंगी, जिससे प्रयोगशालाओं की कुल न्यूनतम वार्षिक क्षमता 50,000 मामले हो जाएगी।चेन्नई और मुंबई में प्रयोगशालाओं की स्थापना महिला और बाल विकास मंत्रालय के कोष से होगी, जबकि शेष तीन लैब की स्थापना के लिये वित्तीय सहायता गृह मंत्रालय द्वारा प्रदान की जाएगी।
दुष्कर्म मामलों के लिये विशेष फोरेंसिक किट
- दुष्कर्म मामलों के लिये विशेष फोरेंसिक किट जुलाई तक सभी पुलिस थानों और अस्पतालों में वितरित कर दी जाएगी। खराब न होने वाली इस किट का इस्तेमाल अप्रदूषित सबूत देने के लिये किया जाएगा।
- इस किट में सबूत एकत्रित करने के लिये आवश्यक उपकरण के साथ लिये जाने वाले साक्ष्य/नमूनों की पूरी सूची होगी। इस किट को फोरेंसिक लैब में भेजने से पहले ताला लगाकर बंद कर दिया जाएगा। व्यक्ति का नाम, दिनांक और किट बंद करने का समय उस पर दर्ज किया जाएगा।
- यौन उत्पीड़न के मामलों में जाँच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने की आदर्श समयसीमा 90 दिन है। इसके अलावा, जैविक अपराध से संबंधित सबूतों को वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित किया जाना ज़रूरी है, ताकि कोई भी जाँच/रिपोर्ट तर्कसंगत तैयार हो सके।
- वर्तमान में छह CFSL चंडीगढ़, गुवाहाटी, कोलकाता, हैदराबाद, पुणे और भोपाल तथा प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में एक फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला है। इन प्रयोगशालाओं में देश भर के यौन उत्पीड़न, आपराधिक पैतृत्व और हत्या सहित सभी मामलों की फोरेंसिक जाँच की जाती है।
- महिलाओं से जुड़े मामलों से निपटने के लिये सखी सुरक्षा आधुनिक डीएनए फोरेंसिक प्रयोगशाला में चार इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी-
♦ यौन उत्पीड़न और हत्या इकाई
♦ पैतृत्व इकाई
♦ मानव पहचान इकाई
♦ माइटोकोंड्रियल इकाई
चीन का नया पृथ्वी अवलोकन उपग्रह
- हाल ही में चीन ने एक नए पृथ्वी अवलोकन उपग्रह 'गाओफेन -6' (Gaofen-6) का सफल प्रक्षेपण किया। मुख्य रूप से इसका उपयोग कृषि संसाधन अनुसंधान और आपदा निगरानी के लिये किया जाएगा।
- इस सैटेलाइट को लॉन्ग मार्च-2 डी रॉकेट से उत्तर पश्चिमी चीन के जिउक्वान सैटेलाइट लॉन्च सेंटर (Jiuquan Satellite Launch Centre) से प्रक्षेपित किया गया।
- इसके अतिरिक्त, इसी समय लुओजिया -1 (Luojia-1) नामक एक वैज्ञानिक प्रयोग उपग्रह को भी अंतरिक्ष में भेजा गया था। यह लॉन्ग मार्च रॉकेट श्रृंखला का 276 वाँ मिशन था।
एक्सोप्लैनेट पर मिले पानी और धातु की उपस्थिति के संकेत
हाल ही में ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज तथा स्पेन के इंस्टीट्यूट डी एस्ट्रोफिसिया डी कैनेरियास के वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के संबंध में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। वैज्ञानिकों को ग्रैन टेलीस्कोप कैनेरियास की सहायता से कम घनत्व वाले एक एक्सोप्लैनेट पर पानी और धातुओं की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं।
- डब्ल्यूएएसपी-127बी नामक यह एक्सोप्लैनेट बृहस्पति ग्रह से 1.4 गुना बड़ा है, लेकिन इसकी तुलना में इस एक्सोप्लैनेट का द्रव्यमान 20 फीसदी ही है। अभी तक खोजे गए सभी एक्सोप्लैनेट में इतने कम घनत्व वाला यह अकेला ग्रह है।
- इस एक्सोप्लैनेट के वातावरण में क्षारीय धातुओं के साथ-साथ सोडियम, पोटैशियम और लीथियम की उपस्थिति के भी संकेत मिले हैं। सोडियम और पोटैशियम की उपस्थिति से यह स्पष्ट होता है कि किसी भी एक्सोप्लैनेट की तुलना में इस ग्रह का वायुमंडल स्वच्छ होगा।
- इसके अतिरिक्त इस एक्सोप्लैनेट पर पानी की उपस्थिति के भी प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- डब्ल्यूएएसपी-127बी जिस तारे की परिक्रमा कर रहा है उस तारे पर भी काफी अधिक मात्रा में लीथियम उपलब्ध है।
- यही कारण है कि इस एक्सोप्लैनेट पर मौजूद लीथियम के विषय में जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता है ताकि ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया के संबंध में अध्ययन किया जा सके।