प्रीलिम्स फैक्ट्स : 1 जनवरी, 2018
उझ परियोजना
सिंधु जल संधि के तहत भारत के अधिकारों के उपयोग में तेजी लाने की प्रतिबद्धता के अंतर्गत केन्द्रीय जल आयोग द्वारा उझ परियोजना का डीपीआर (detailed project report - DPR) जम्मू-कश्मीर को सौंपा गया।
इस परियोजना के अंतर्गत रावी नदी की सहायक उझ नदी (river Ujh )के 0.65 MAF जल का भंडारण किया जाएगा।
इससे 30,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। साथ ही इससे 200 मेगावाट जल विद्युत का भी निर्माण किया जा सकेगा।
इससे भारत को जल प्रवाह के एक हिस्से का उपयोग करने में सहायता मिलेगी, अभी तक यह समस्त जल बिना किसी उपयोग के ही सीमा पार चला जाता था।
रावी नदी
- रावी नदी हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में रोहतांग दर्रे से निकलती है।
- यह नदी भारत के हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर राज्य से होती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
- पाकिस्तान में यह झांग ज़िले में चिनाब नदी में मिल जाती है, जहाँ इस पर थीन बाँध बना हुआ है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
समुद्र विकास विभाग (Department of Ocean Development - DOD) का गठन जुलाई 1981 में प्रधानमंत्री के सीधे नियंत्रण वाले कैबिनेट सचिवालय के एक प्रभाग के रूप में किया गया, जो मार्च 1982 में एक पृथक विभाग के रूप में अस्तित्व में आया।
प्रमुख बिंदु
- पूर्ववर्ती समुद्र विकास विभाग द्वारा देश में समुद्र विकास के कार्यक्रमों के आयोजन, संयोजन और प्रोत्साहन के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य किया।
- तत्पश्चात् फरवरी 2006 में भारत सरकार द्वारा इस विभाग को समुद्र विकास मंत्रालय के रूप में अधिसूचित कर दिया गया।
- राष्ट्रपति कार्यालय की अधिसूचना दिनांक 12 जुलाई, 2006 के अन्तर्गत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences - MoES) का गठन किया गया।
- इस मंत्रालय के प्रशासन के अन्तर्गत भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department - IMD), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology - IITM) तथा राष्ट्रीय मध्यम क्षेत्र मौसम पूर्वानुमान केन्द्र (National Centre for Medium Range Weather Forecasting - NCMRWF) को शामिल किया गया।
- इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष आयोग (Space Commission) और परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission) के समान पृथ्वी आयोग का भी गठन किया गया।
अहमदाबाद में वायु गुणवत्ता और मौसम निगरानी स्टेशन
- मंत्रालय द्वारा अहमदाबाद (गुजरात) में वायु की गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान व अनुसंधान (System of Air Quality and Weather Forecasting and Research - SAFAR) आधारित एकीकृत चेतावनी प्रणाली (integrated early warning System) राष्ट्र को समर्पित किया गया।
- इसके साथ ही अहमदाबाद नगर निगम द्वारा लॉन्च की गई अहमदाबाद एआईआर [Ahmedabad- AIR (Air Information and Response)] कार्यक्रम को ‘सफर’ के साथ जोड़ा गया।
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प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना
भारत सरकार द्वारा ‘कृषि समुद्री उत्पाद प्रसंस्करण एवं कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर विकास योजना’ का पुन: नामकरण कर प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के तौर पर पेश किया गया।
योजना का उद्देश्य
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना का उद्देश्य कृषि न्यूनता पूर्ण करना, प्रसंस्करण का आधुनिकीकरण करना और कृषि के दौरान संसाधनों के होने वाले अनावश्यक नुकसान को कम करना है।
वित्तीय आवंटन
- 6,000 करोड़ रुपए के आवंटन वाली इस योजना से वर्ष 2019-20 तक लगभग 334 लाख मीट्रिक टन कृषि उत्पाद का संचयन किया जाएगा, जिससे देश के 20 लाख किसानों को लाभ प्राप्त होगा और 5,30,500 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर सृजित किये जाएंगे।
प्रमुख विशेषताएँ
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के कार्यान्वयन से आधुनिक आधारभूत संरचना का निर्माण और प्रभावी आपूर्ति श्रृंखला तथा अनाजों का खेतों से खुदरा दुकानों तक प्रभावी प्रबंधन हो सकेगा। इससे देश में खाद्य प्रसंस्करण को व्यापक बढ़ावा मिलेगा।
- इससे किसानों को बेहतर मूल्य पाने में मदद मिलेगी। यह किसानों की आमदनी दोगुना करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- इससे बड़ी संख्या में रोज़गार के अवसर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध हो सकेंगे। इससे कृषि उत्पादों की बर्बादी रोकने, प्रसंस्करण स्तर बढ़ाने, उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर सुरक्षित और सुविधाजनक प्रसंस्कृत खाद्यान्न की उपलब्धता के साथ प्रसंस्कृत खाद्यान्न का निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के कार्यान्वयन से उत्पादों की आपूर्ति प्रबंधन को सुधारा जा सकता है और एक आधुनिक अवसंरचना का विकास किया जा सकता है।
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नाईट फ्रॉग की नई स्पीशीज़ की खोज
हाल ही में वैज्ञानिकों ने मेवा सिंह नाइट फ्रॉग (Mewa Singh’s Night frog) की खोज की है, जो पश्चिमी घाट में कोझिकोड के मालाबार वन्यजीव अभयारण्य की स्थानिक प्रजाति से संबंधित है।
प्रमुख बिंदु
- संरक्षण और वर्गीकरण (conservation and taxonomy) पर आधारित एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छपे वैज्ञानिक पत्र के अनुसार, हल्के भूरे रंग वाले नाईट फ्रॉग की इस नई प्रजाति निक्टीबाट्राचस मेवासिंघी (Nyctibatrachus mewasinghi) के मेंढक नीचे से सफ़ेद रंग के होते है तथा उभरे हुए दानों के साथ इनकी त्वचा झुर्रीदार होती है।
- व्यावहारिक पारिस्थितिकी और प्राइमेट स्टडीज़ (Behavioural Ecology and Primate Studies) पर वन्यजीव वैज्ञानिक (wildlife scientist) मेवा सिंह के योगदान के सम्मान में इसे यह नाम दिया गया है।
- निक्टीबाट्राचस प्रजाति (Nyctibatrachus genus) के मेंढक, जिन्हें आमतौर पर नाईट फ्रॉग(Night frogs) के रूप में जाना जाता है, केवल पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं। मेवा सिंह नाईट फ्रॉग को मिलाकर इस समूह के मेंढकों की संख्या अब 36 तक पहुँच गई है।
- चूँकि निक्टीबाट्राचस प्रजाति के कई मेंढक एक जैसे दिखते हैं, इसलिये वैज्ञानिकों ने इसकी मेंढक की नई प्रजाति के रूप में पुष्टि करने के लिये भौतिक विशेषताओं के साथ ही आनुवंशिक विधियों का भी इस्तेमाल किया गया।
- हाल ही में खोजी गई प्रजातियों के ऊतकों के एकत्रित 10 सैंपल्स का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने दो जीनों के कुछ हिस्सों का विश्लेषण किया और पाया कि यह अन्य निकट रूप से संबंधित प्रजातियों से काफी अलग है और इसे एक अलग प्रजातियाँ माना जा सकता है।
- वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि इस नवीन प्रजाति के मेंढक आनुवंशिक रूप से त्रिशूर और इडुक्की में पलक्कड़ गेप के दक्षिण में पाए जाने वाले अथिराप्पल्ली नाईट फ्रॉग और केरल और कर्नाटक में पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में पाए जाने वाले केम्पोली नाईट फ्रॉग से निकटता रखते हैं।
- मेवा सिंह नाईट फ्रॉग को इन समान दिखने वाले और आनुवंशिकी रूप से करीबी रिश्तेदारों से इसकी भुजाओं और उंगलियों के पैटर्न जैसी कई भौतिक विशेषताओं से अलग किया जा सकता हैं।
- आनुवंशिक परिप्रेक्ष्य से यह प्रजाति अद्वितीय है क्योंकि आनुवंशिक रूप से इसके निकटतम संबंधी अथिराप्पल्ली नाईट फ्रॉग इससे बहुत दूर और पूरे पलक्कड़ गेप में पाए जाते है।
- निक्टीबाट्राचस प्रजाति के मेंढक, जिन्हें आमतौर पर नाईट फ्रॉग के रूप में जाना जाता है, केवल पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं।
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अदरक की नई स्पीशीज़ की खोज
वैज्ञानिकों ने म्याँमार सीमा पर अवस्थित मणिपुर के उखरुल ज़िले और नागालैंड के तुएनसांग ज़िले में अदरक की दो नई प्रजातियों की खोज की है।
प्रमुख बिंदु
- तुएनसांग ज़िले में पायी जाने वाली हेडीचियम सिंगमेइयनम(Hedychium chingmeianum) प्रजाति एक एपिफ़ायटिक पौधा (Epiphytic Plant) है, जो लम्बे वृक्षों पर बढ़ती है।
- Epiphytic Plant वे पौधे होते है जो भौतिक रूप से सहारे के लिये किसी पौधे या किसी अन्य वस्तु पर आश्रित होते है। इन पौधों का भूमि के प्रति या पोषक तत्वों के लिये किसी अन्य माध्यम के लिये कोई लगाव नहीं होता है। इन्हें सहारा देने वाले पौधों के साथ इनका परजीविता का संबंध भी नहीं होता है।
- लाल रंग के तने और मलाईदार सफेद फूलों वाले हेडीचियम सिंगमेइयनम के पौधे को बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय केंद्र, शिलांग में लाया गया था और वहाँ उगाया गया था।
- विशेषज्ञों के अनुसार, हेडीचियम प्रजाति की अधिकांश स्पीशीज़ में औषधीय गुण होते हैं, किंतु अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि हाल ही में खोजी गई प्रजाति हेडीचियम सिंगमेइयनम में औषधीय गुण हैं या नहीं।
- कौलोकेम्फेरिया दीनबन्धुऐनेसिस को शिरुई पहाड़ियों में चट्टानों की दरारों, शिलाखंडो और ह्यूमस-समृद्ध मिट्टी में बढ़ते हुए पाया गया।
- कौलोकेम्फेरिया दीनबन्धुऐनेसिस स्पीशीज़ को बायोरिसोर्सेज़ एवं सतत् विकास संस्थान (Institute of Bioresources and Sustainable Development-IBSD) द्वारा खोजा गया था।
- इस स्पीशीज़ में अंडाकार आकार (oval-shaped) के सुंदर गुलाबी फूल होते हैं, जो जून-जुलाई माह में दिखाई देते हैं।
- उखरूल पहाड़ियों की यात्रा के दौरान IBSD के निदेशक दीनबंधु साहू ने इसे सबसे पहले देखा था, अतः इन्हीं के नाम पर इस प्रजाति का नाम ‘कौलोकेम्फेरिया दीनबन्धुऐनेसिस’ रखा गया है।
- दोनों किस्में सामान्यतः पाई जाने वाली अदरक Zingiber officinale के समान ही Zingiberaceae परिवार से संबंधित है।
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