‘प्रसाद’ योजना | 20 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये

‘प्रसाद’ योजना, सोमनाथ मंदिर, नागर शैली, सोमपुरा सलात

मेन्स के लिये 

वास्तुकला की विभिन्न शैलियों की विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने 47 करोड़ रुपए से अधिक की कुल लागत से ‘प्रसाद’ (तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्द्धन अभियान-PRASHAD) योजना के तहत सोमनाथ, गुजरात में विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन किया है।

प्रमुख बिंदु

परिचय

  • 'पर्यटक सुविधा केंद्र' के परिसर में निर्मित सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र, पुराने सोमनाथ मंदिर के खंडित हिस्सों और नागर शैली के मंदिर वास्तुकला वाले मूर्तियों को प्रदर्शित करता है।
    • इस मंदिर को अहिल्याबाई मंदिर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसे इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने तब बनवाया था।
  • श्री पार्वती मंदिर का निर्माण कुल 30 करोड़ रुपए के परिव्यय से प्रस्तावित है। इसमें सोमपुरा सलात शैली में मंदिर निर्माण, गर्भगृह और नृत्य मंडप का विकास किया जाएगा।

‘प्रसाद’ (PRASHAD) योजना

  • शुरुआत:
    • पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014-15 में चिह्नित तीर्थ स्थलों के समग्र विकास के उद्देश्य से 'तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्द्धन पर राष्ट्रीय मिशन' शुरू किया गया था।
    • अक्तूबर 2017 में योजना का नाम बदलकर ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक विरासत संवर्द्धन अभियान’ (यानी ‘प्रसाद’) राष्ट्रीय मिशन कर दिया गया।
  • क्रियान्वयन एजेंसी:
    • इस योजना के तहत चिह्नित परियोजनाओं को संबंधित राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकार द्वारा चिह्नित एजेंसियों के माध्यम से क्रियान्वित किया जाएगा।
  • उद्देश्य:
    • महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय/वैश्विक तीर्थ और विरासत स्थलों का कायाकल्प एवं आध्यात्मिक संवर्द्धन।
    • समुदाय आधारित विकास का पालन करना और स्थानीय समुदायों में जागरूकता पैदा करना।
    • आजीविका उत्पन्न करने के लिये विरासत शहर, स्थानीय कला, संस्कृति, हस्तशिल्प, व्यंजन आदि का एकीकृत पर्यटन विकास।
    • अवसंरचनात्मक कमियों को दूर करने के लिये तंत्र को सुदृढ़ बनाना।
  • वित्तपोषण:
    • इसके तहत पर्यटन मंत्रालय द्वारा चिह्नित स्थलों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकारों को केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) प्रदान की जाती है।
    • इस योजना के तहत सार्वजनिक वित्तपोषण के घटकों के लिये शत-प्रतिशत निधि केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी।
    • परियोजना की बेहतर स्थिरता/निरंतरता के लिये यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) को भी शामिल करने का उद्देश्य रखता है।

नागर या उत्तर भारतीय मंदिर शैली:

  • उत्तर भारत में सामान्यत: एक पत्थर के चबूतरे पर संपूर्ण मंदिर का निर्माण होता है, जिसकी सीढ़ियाँ ऊपर तक जाती हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत के विपरीत इसमें आमतौर पर विस्तृत चहारदीवारी या प्रवेश द्वार नहीं होते हैं।
  • जबकि आरंभिक मंदिरों में सिर्फ एक मीनार या शिखर होता था, लेकिन समय के साथ-साथ मंदिरों में कई मीनार या शिखर बनाये जाने लगे। गर्भगृह हमेशा सबसे ऊँचे शिखर के नीचे स्थापित होता है।
  • शिखर के आकार के आधार पर नागर मंदिरों के कई उपखंड हैं।
  • भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मंदिर के विभिन्न हिस्सों के अलग-अलग नाम हैं।
    • साधारण शिखर के लिये सबसे सामान्य नाम जो आधार से वर्गाकार है और जिसकी दीवारें ऊपर की ओर एक बिंदु पर वक्र या ढलान वाली होती हैं, इसे 'लैटिना' या रेखा-प्रसाद का शिखर कहा जाता है।
    • नागर क्रम में दूसरा प्रमुख प्रकार का स्थापत्य रूप फामसन है, जो लैटिना की तुलना में व्यापक और छोटा होता है।
    • नागर भवन के तीसरे मुख्य उप-प्रकार को सामान्यत: वल्लभी प्रकार कहा जाता है। ये एक छत के साथ आयताकार इमारतें हैं जो एक गुंबददार कक्ष में स्थापित की जाती हैं।  

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सोमपुरा सलात (मंदिर वास्तुकला शिल्पकार)

परिचय:

  • सोमपुरा (या सोमपुरा सलात) उन लोगों का एक समूह है जिन्होंने कलात्मक और चिनाई के काम को एक व्यवसाय के रूप में लिया और सोमपुरा ब्राह्मण समुदाय से अलग हो गए।
  • वे सोमपुरा ब्राह्मण या प्रभास पाटन का एक वर्ग हैं जिसे कभी सोमपुरा कहा जाता था क्योंकि इसकी स्थापना चंद्र (चंद्रमा देवता) ने की थी।
    • हालाँकि सोमपुरा ब्राह्मण उन्हें ब्राह्मण के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं।
  • वे विवाह के लिये एक सख्त नियम के रूप में कबीले को बनाए रखते हैं।

मूल:

  • सोमपुरा मूल रूप से पटना, गुजरात के रहने वाले थे और उन्हें चित्तौड़गढ़ में बसने के लिये आमंत्रित किया गया था।

कार्य:

  • पिछली पाँच शताब्दियों के दौरान वे गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में कई जैन मंदिरों के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों में जैनियों द्वारा बनाए गए मंदिरों के निर्माण व  जीर्णोद्धार में शामिल रहे हैं।
  • हालाँकि इनकी परंपराएँ शिल्प शास्त्रों की शिक्षा और प्राचीन मंदिर वास्तुकला को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का आह्वान करती हैं, आधुनिक युग उस तकनीक के कुछ उन्नयन की मांग करता है।
  • राम जन्मभूमि मंदिर भी सोमपुरा परिवार द्वारा डिज़ाइन किया गया है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस