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गरीबी: प्रत्यक्ष दृष्टिकोण हमेशा सर्वोत्तम नहीं होता

  • 25 May 2018
  • 5 min read

संदर्भ 

कभी-कभी जीवन में प्रत्यक्ष दृष्टिकोण सबसे अच्छा नहीं होता। यह बात कई क्षेत्रों में सच होती है, फिर चाहे वह नीति निर्माण का मामला ही क्यों न हो। यही उदाहरण चरम गरीबी के मामले में भी लिया जा सकता है। 

प्रमुख बिंदु

  • प्रथमदृष्टया यह तार्किक प्रतीत होता है कि लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिये उनको धन और परिसंपत्ति प्रदान कर देनी चाहिये।
  • पिछले समय में ऐसे कुछ उदाहरण सामने आए हैं, जहाँ माइक्रोक्रेडिट योजनाओं को रामबाण के रूप में प्रस्तुत किया गया है और पूरे विश्व में ये बड़े पैमाने पर धन को आकर्षित कर रही हैं। 
  • हालाँकि, एक ट्रायल श्रृंखला ने दर्शाया है कि माइक्रोक्रेडिट अनिवार्य तौर पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करते और अक्सर इनसे औसत आय में भी वृद्धि नहीं होती, बल्कि गरीबों पर ऋण का भार और बढ़ जाता है।
  • सब्सिडीकृत फसल बीमा भी एक अन्य प्रत्यक्ष दृष्टिकोण है जिसके माध्यम से गरीब किसानों की कृषिगत आय में वृद्धि की जा सकती है, साथ ही कृषि को कम जोखिमपूर्ण बनाया जा सकता है।
  • वर्ष 2016 में लॉन्च की गई प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) सबसे हालिया और व्यापक फसल बीमा मॉडल है, जो लगभग लगभग 39 मिलियन किसानों तक पहुँच रही है।
  • आमतौर पर बीमा प्रीमियम का लगभग पूरी तरह से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भुगतान किया जाता है।
  • चरम गरीबी के खात्मे हेतु अत्यंत गरीब परिवारों के लिये, जो भूमिहीन हैं और प्राथमिक रूप से छोटे-मोटे कार्यों पर निर्भर करते हैं, सतत् आजीविका का निर्माण करना बेहद आवश्यक होता है।
  •  इसी क्रम में ‘क्रमिक दृष्टिकोण’ की सफलता ने इसे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में एक महत्त्वपूर्ण टूल बना दिया है। 
  • 40 से अधिक देश अब विभिन्न पैमाने पर इस मॉडल के विभिन्न संस्करणों को लागू कर रहे हैं।
  • इस मॉडल को सर्वप्रथम गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), बांग्लादेश ग्रामीण उन्नति समिति (बीआरसी) द्वारा लागू किया गया था। 
  • इसे पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और झारखंड में भी बहुत से गैर-सरकारी संगठनों द्वारा छोटे स्तर पर क्रियान्वित किया गया।
  • इस मॉडल के अंतर्गत अत्यंत गरीबों तक पहुँच स्थापित करने के लिये सख्त मानदंडों का एक सेट तैयार किया जाता है और आमतौर पर 18-24 महीने तक चलने वाला समयबद्ध समर्थन प्रदान किया जाता है।
  • सबसे पहले, गरीबों को दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति संबंधी तनाव को दूर करने के लिये धन या भोजन प्रदान किया जाता है।
  • दूसरे स्तर पर लाभार्थियों को धन की बचत शुरू करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। तत्पश्चात् उन्हें पशुधन या अन्य आय उत्पन्न करने वाली संपत्तियाँ प्रदान की जाती हैं।
  • अगले चरण में उन्हें तकनीकी कौशल और जीवन कौशल दोनों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  • अंत में, लाभार्थियों को स्वास्थ्य सहायता प्रदान की जाती है।
  • प्रत्येक हस्तक्षेप की लागत 25,000 रुपये से अधिक है, जिसमें से आधी लागत संपत्ति और भोजन पर खर्च की जाती है।
  • पश्चिम बंगाल में दीर्घकालिक अध्ययनों के आधार पर यह पता चलता है कि यह मॉडल किसान इंश्योरेंस सहायताओं की तुलना में दो से तीन गुना अधिक प्रभावी है।
  • कुछ अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि गरीबों की सहायता हेतु कम प्रत्यक्ष और अधिक घुमावदार तरीके कहीं अधिक कारगर साबित हो सकते हैं। 
  • शोधकर्त्ताओं ने दर्शाया है कि उच्च गुणवत्ता वाले बीजों को प्रोत्साहन अच्छी फसल उत्पादकता, बढ़े हुए उत्पादन और उच्च आय के रूप में परिणत हो सकता है।
  • पोषण (nutrition) में निवेश के माध्यम से भी सुदृढ़ और दीर्घावधिक सहायता प्रदान की जा सकती है।
  • ये वे नीतियाँ नहीं हैं, जिन्हें हम परंपरागत रूप से गरीबी से संबंधित नीतियाँ कह सकें, लेकिन निश्चित रूप से उन तरीकों को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है, जो गरीबों को तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ प्रदान करते हों।
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