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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पोस्ट-ब्रेक्ज़िट ट्रेड डील

  • 28 Dec 2020
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने ‘पोस्ट ब्रेक्ज़िट  ट्रेड एग्रीमेंट’ (Post-Brexit Trade Agreement) के संपूर्ण दस्तावेज़ को प्रकाशित किया है जिसका उद्देश्य ऐसे समय में इन दोनों के संबंधों को नियंत्रित करना है जब 31 दिसंबर 2020 को ब्रिटेन यूरोप के एकल बाज़ार का हिस्सा नहीं रहेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • यह दस्तावेज़ व्यापार, कानून प्रवर्तन और अन्य व्यवस्थाओं के बीच विवाद निपटान पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इस दस्तावेज़ में जटिलता के बावजूद परमाणु सहयोग पर व्याख्यात्मक नोट और संबंधित समझौतों के संबंध में वर्गीकृत जानकारी का आदान-प्रदान करना शामिल है।
  • समझौता यह सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्ष टैरिफ के बिना व्यापार जारी रख सकते हैं लेकिन इसके बावजूद 27 देशों के इस ब्लॉक और इसके पूर्व सदस्य के बीच भविष्य के संबंधों में प्रमुख पहलू अनिश्चित बने हुए हैं।

तीन प्रमुख मुद्दों पर दोनों पक्षों ने व्यापक समझौते किये हैं-

  • समान अवसर: इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ है कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के एकल बाज़ार के साथ व्यापार करने के लिये यह सुनिश्चित करने हेतु समान नियमों और विनियमों का पालन करना होगा कि अन्य यूरोपीय संघ के व्यवसायों की तुलना में ब्रिटेन को इसका अनुचित लाभ नहीं है।
  • शासन के नियम: इसके माध्यम से यह तय किया गया है कि किसी भी समझौते को कैसे लागू किया जाए और साथ ही अनुमोदित समझौते की शर्तों का एक पक्ष द्वारा उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाया जाएगा।
  • मत्स्यन संबंधी अधिकार: यह समझौता यूरोपीय संघ के नौसैनिक एवं अन्य पोतों को ब्रिटेन के जल क्षेत्र में छः मील की दूरी तक मुफ्त मछली पकड़ने की सुविधा देता है, यह प्रावधान पाँच वर्ष की संक्रमणीय अवधि के लिये है। संक्रमण के अंत में सब कुछ सामान्य हो जाएगा और ब्रिटेन का अपने जल पर पूर्ण नियंत्रण होगा।
    • हालाँकि ब्रिटेन के मत्स्ययन उद्योग ने इस समझौते पर निराशा व्यक्त की है।
  • इस समझौते के बावजूद अभी भी कई क्षेत्रों में कई प्रश्न अनुत्तरित हैं, जिसमें सुरक्षा, सहयोग और ब्रिटेन के विशाल वित्तीय सेवा क्षेत्र की यूरोपीय संघ के बाज़ार तक पहुँच शामिल है।
  • यूरोपीय आयोग ने 28 फरवरी, 2021 तक समझौते को अनंतिम आधार पर लागू करने का प्रस्ताव रखा है।
  • EC यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा है, जो सभी 27 सदस्य राज्यों के अधिकारियों को एक साथ लाता है।

भारत के लिये अवसर:

  • भारत को यूरोपीय संघ और ब्रिटेन दोनों के साथ अलग-अलग मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements- FTAs) के लिये प्रयास करना चाहिये।
  • हालाँकि इस समझौते से भारत के लिये लाभ का आकलन करना समय- पूर्व होगा फिर भी भारत दोनों देशों के बाज़ारों में आईटी, वास्तुकला, अनुसंधान एवं विकास और इंजीनियरिंग जैसे सेवा क्षेत्रों में अवसरों की खोज कर सकता है क्योंकि यह समझौता सेवा क्षेत्र को कवर नहीं करता है।
  • वियतनाम जैसे भारतीय प्रतियोगियों को परिधान और समुद्री सामान आदि क्षेत्रों में अधिक शुल्क लाभ मिलता है।
  • यूरोपीय संघ के साथ एफटीए पर बातचीत करते समय भारत के कई विवादास्पद मुद्दे थे। हालाँकि ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन उन मुद्दों पर एक अलग रुख रख सकता है, अतः भारत को एफटीए वार्ता जारी रखनी चाहिये।
  • अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (AEPC) ने कहा कि भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता ब्रिटेन में घरेलू उद्यमियों को होने वाले सीमा शुल्क के नुकसान को दूर करने में मदद करेगा।
  • हालाँकि ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन’ (FIEO) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि इस समझौते का घरेलू सामानों के लिये कोई विशिष्ट सीमा शुल्क लाभ नहीं हैं।
  • भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2018-19 के 16.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वर्ष 2019-20 में 15.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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