स्वच्छ वायु अभियान से दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव | 20 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा दिल्ली सरकार के सहयोग से 10 फरवरी, 2018 को संयुक्त स्वच्छ वायु अभियान की शुरुआत की गई। इस अभियान के पहले सप्ताह में दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सकारात्मक सुधार दर्ज किया गया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, दिल्ली सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) तथा नगर निगमों के अधिकारियों सहित 70 टीमों का गठन किया गया। इन टीमों द्वारा 10 फरवरी, 2018 को संबंधित क्षेत्रों का दौरा किया गया। इन टीमों द्वारा अभी तक नियमों के उल्लंघन संबंधी 4,347 मामले दर्ज किये गए।
प्रमुख बिंदु
- इस अभियान की शुरुआत के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इकट्ठा किये गए आँकड़ों से यह जानकारी प्राप्त होती है कि अभियान के प्रारंभ में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘बेहद खराब’ की श्रेणी में था।
- 12 से 15 फरवरी तक यह ‘मध्यम’ श्रेणी में रहा। परंतु, 16, 17 और 18 फरवरी को वायु गुणवत्ता का स्तर ‘खराब’ श्रेणी में रहा।
- 2017 से तुलना करें तो हम पाएंगे कि प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है। पिछले वर्ष मध्यम श्रेणी के अंतर्गत कोई भी दिन नहीं था। वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा शोध प्रणाली (एसएएफएआर) के अनुसार स्वच्छ वायु अभियान से हवा के प्रदूषण स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है।
- अभियान में प्राप्त अनुभवों का उपयोग प्रदूषण कम करने संबंधी गतिविधियों में किया जाएगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया। इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
- यह बोर्ड क्षेत्र निर्माण के रूप में कार्य करने के साथ-साथ पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।
वायु गुणवत्ता प्रबोधन कार्यक्रम
- वायु गुणवत्ता प्रबोधन कार्यक्रम, वायु गुणवत्ता प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
- राष्ट्रीय वायु प्रबोधन कार्यक्रम (रा.व.प्र.का.) की स्थापना का उद्देश्य वर्तमान वायु गुणवत्ता की स्थिति एवं प्रवृत्ति को सुनिश्चित करना, उद्योगों और अन्य स्रोतों के प्रदूषण को नियंत्रित करना तथा वायु गुणवत्ता मानकों के अनुरूप रखना है।
- इसके अंतर्गत औद्योगिक संस्थानों/व्यवस्थाओं की स्थापना तथा शहरों की योजना तैयार करने के लिये अपेक्षित वायु गुणवत्ता के आँकड़ों की पृष्ठभूमि उपलब्ध कराई जाती है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक
- भारत सरकार की वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली ‘सफर’ (System of Air Quality & Weather Forecasting & Research-SAFAR Scale) पर दिल्ली की वायु गुणवत्ता के स्तर को मापा जाता है, जिस पर 1 से लेकर 500 अंकों तक हवा की गुणवत्ता का आकलन किया जाता है।
- शुरुआती 100 अंकों को ‘अच्छा’ माना जाता है। जैसे-जैसे अंक बढ़ते जाते हैं, हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ होती जाती है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक के मानक
- वायु गुणवत्ता सूचकांक में 100 से नीचे की हवा को स्वास्थ्य के लिये ‘अच्छा’ (Good) माना जाता है।
- 100 से 200 तक के वायु स्तर को ‘ठीक-ठाक’ (Average) की श्रेणी में रखा जाता है।
- 200 से 300 तक के वायु स्तर को ‘खराब’ (Poor) माना जाता है।
- 300 से 400 तक के वायु स्तर को ‘बहुत खराब’ (Very Poor) माना जाता है।
- 400 से 500 तक के वायु स्तर को ‘खतरनाक’ (Severe) माना जाता है।
क्या है सफर ?
- वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली को जून 2015 में दिल्ली और मुंबई के लिये जारी किया गया था।
- इस प्रणाली से वायु प्रदूषण का अग्रिम तीन दिनों के लिये स्थान-विशेष का अनुमान लगाने के साथ ही लोगों को सावधानी के उपाय अपनाने में मदद करने के लिये परामर्श देना संभव हो पाया है।
- यह प्रणाली लोगों को उनके पास के निगरानी स्टेशन पर हवा की गुणवत्ता को देखने और उसके अनुसार उपाय अपनाने का फैसला लेने में मदद करती है।
- 'सफर' के माध्यम से लोगों को वर्तमान हवा की गुणवत्ता, भविष्य में मौसम की स्थिति, खराब मौसम की सूचना और संबद्ध स्वास्थ्य परामर्श के लिये जानकारी तो मिलती ही है, साथ ही अल्ट्रा वायलेट सूचकांक के संबंध में हानिकारक सौर विकिरण की तीव्रता की जानकारी भी मिलती है।
पीएम 2.5 तथा पीएम 10 क्या होते हैं?
- यहाँ यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि पीएम 2.5 और पीएम 10 का क्या अर्थ होता है? पीएम 10 यानी पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter - PM) को रेस्पायरेबल पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं, जिसमें कणों का आकार 10 माइक्रोमीटर होता है।
- ये शरीर के अंदर पहुँचकर कई प्रकार के रोगों को जन्म दे सकते हैं। इनका मापन रेस्पायरेबल डस्ट सैंपलर पीएम-10 उपकरण के माध्यम से किया जाता है।
- पीएम 2.5 में कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या इससे भी कम होता है। ये ठोस या तरल रूप में वातावरण में मौजूद होते हैं तथा इसमें धूल, मिट्टी और धातु के सूक्ष्म कण भी शामिल होते हैं।
- ये कण आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर जाकर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 के माध्यम से मापा जाता है।
- इनके अलावा, पीएम-1.0 भी होता है, जिसकी चर्चा प्रायः नहीं की जाती है। इसका आकार 1 माइक्रोमीटर से भी कम होता है और इसके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्त कणिकाओं में मिल जाते हैं। इसे पर्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है।