अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विलुप्ति के कगार पर अरब सागर क्षेत्र की अधिकांश समुद्री प्रजातियाँ
- 12 Oct 2017
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संदर्भ
हाल ही में वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि पुदुचेरी शार्क (Pondicherry Shark), लाल सागर की ‘टॉरपीडो’ (the Red Sea Torpedo)’ और टेनटैक्लड बटरफ्लाई रे (Tentacled Butterfly Ray) नामक तीन समुद्री प्रजातियाँ ‘अरब सागर क्षेत्र’ (Arabian Seas Region-ASR) के महासागरीय जल में विलुप्त हो गई हैं। विदित हो कि पिछले तीन दशकों से इनकी मौज़ूदगी के कोई भी प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिक इस क्षेत्र से अन्य प्रजातियों के संभावित विप्लुप्तिकरण से भी चिंतित हैं क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा खोजे जाने से पूर्व ही वे विलुप्त हो चुकी हैं।
- इस क्षेत्र में शार्क, रे और चिमेरा (जिन्हें संयुक्त रूप से कॉन्ड्रीकथाइंस कहा जाता है) की संरक्षण स्थिति पर किये गए अब तक के पहले सर्वेक्षण ने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया, क्योंकि यहाँ पर जीवित बची 153 प्रजातियों में से 78 प्रजातियाँ को भी जीने के लिये संघर्ष करते हुए पाया गया था।
- केरल और तमिलनाडु के तटीय जल में पाई जाने वाली गिटार मछली (Guitar fish) और अरब सागर में पाई जाने वाली ‘गंगेज शार्क’ (Ganges Shark) को भी अन्य प्रजातियों के साथ ही गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में शामिल किया गया है।
- ‘आईयूसीएन प्रजाति उत्तरजीविता आयोग’ (IUCN Species Survival Commission) के शार्क विशेषज्ञ समूह द्वारा इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से जन्में सभी कॉन्ड्रीकथाइंस के लिये विलुप्ति के जोखिम और संरक्षण स्तर की पुनः समीक्षा की गई।
- इस क्षेत्र में शार्क, रे और चिमेरा की 184 प्रजातियाँ पायी जाती हैं, परन्तु अब तक केवल 153 प्रजातियों का ही विश्लेषण किया गया है।
- ध्यातव्य है कि अरब सागर क्षेत्र के अंतर्गत लाल सागर, अदन की खाड़ी, अरब सागर, ओमान सागर और खाड़ी के जल को शामिल किया जाता है। यह क्षेत्र भारत, बहरीन, मिस्र, इराक, ईरान, इज़राइल और पाकिस्तान सहित 20 देशों से घिरा हुआ है।
- इस सर्वेक्षण ने यह भी दर्शाया कि इस क्षेत्र की 27 प्रजातियाँ खतरे में हैं तथा अन्य 19 प्रजातियों के संरक्षण पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है तथा अन्य 29 प्रजातियों के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
- कुटीर और औद्योगिक मत्स्य पालन के साथ ही अधिकांश कॉन्ड्रीकथाइंस मछलियों के लिये मछुआरों द्वारा पकड़ा जाना ही सबसे बड़ा खतरा है।
- तटीय विकास और अन्य मानव जनित आपदाओं के कारण उनके आवास स्थलों की गुणवत्ता और विस्तार में कमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अनेक प्रजातियों के जीवन के लिये खतरा उत्पन्न हो जाता है। विदित हो कि अनेक प्रजातियाँ प्रवाल भित्तियों, मैंन्ग्रोव तथा समुद्र की घास पर ही निर्भर करती हैं।
- हालांकि भारत द्वारा पहले ही शार्क और रे की 10 प्रजातियों को मारने और उनके व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाया गया था, परन्तु वर्ष 2015 से शार्क की सभी प्रजातियों के परों के आयात-निर्यात पर भी प्रतिबंध दिया गया है।
पुदुचेरी शार्क
- यह आकार में छोटी होती है यानि की इसकी लम्बाई 1 मीटर (3.3 फीट) से अधिक नहीं होती, जबकि इसका रंग भूरा होता है।
- इस प्रजाति की पहचान इसके ऊपरी दाँतों से की जा सकती है, जोकि आधार की ओर मज़बूत तथा ऊपर की ओर मुलायम होते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी पहचान इसके पृष्ठीय पंखों से भी की जा सकती है, जो कि बड़े होते हैं।
- इस शार्क को उन 25 ‘मोस्ट वांटेड लॉस्ट’(most wanted lost) प्रजातियों की सूची में शामिल किया है जो वैश्विक वन्यजीव संरक्षण के ‘खोई हुई प्रजातियों की खोज’(Search for Lost Species) पहल का हिस्सा है।