CBA अधिनियम, 1957 के तहत अर्जित भूमि के उपयोग हेतु नीति | 14 Apr 2022
प्रिलिम्स के लिये:CBA अधिनियम, आत्मनिर्भर भारत, कोयला गैसीकरण मेन्स के लिये:कोयला क्षेत्र एवं संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 [CBA अधिनियम] के तहत अधिग्रहीत भूमि के उपयोग हेतु नीति को मंज़ूरी दी है।
- इस नीति में कोयला एवं ऊर्जा से संबंधित बुनियादी ढाँचे के विकास और स्थापना के उद्देश्य से ऐसी भूमि के उपयोग का प्रावधान है।
CBA अधिनियम, 1957:
- कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 में कोयले के भंडार वाली या संभावित भूमि के अधिग्रहण और उससे जुड़े मामलों का प्रावधान है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत सरकारी कंपनियों द्वारा केवल कोयला खनन एवं खनन उद्देश्यों के लिये प्रासंगिक गतिविधियों हेतु भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।
- अन्य आवश्यकताओं जैसे- स्थायी आधारभूत संरचना, कार्यालय, निवास आदि के लिये भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।
- विभिन्न अधिनियमों के तहत खनन अधिकार एवं भूमि के अधिकार का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है।
प्रस्तावित नीति के प्रावधान क्या हैं?
- भूमि उपयोग हेतु रूपरेखा:
- यह नीति CBA अधिनियम के तहत अधिग्रहीत निम्न प्रकार की भूमि के उपयोग के लिये स्पष्ट नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है:
- कोयला खनन गतिविधियों के लिये भूमि अब उपयुक्त या आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है; या
- जिन भूमि क्षेत्रों से समग्र कोयला निकाला लिया गया है।
- यह नीति CBA अधिनियम के तहत अधिग्रहीत निम्न प्रकार की भूमि के उपयोग के लिये स्पष्ट नीतिगत ढाँचा प्रदान करती है:
- कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के पास भूमि का स्वामित्व बरकरार रहेगा:
- सरकारी कोयला कंपनियाँ, जैसे- कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और इसकी सहायक कंपनियाँ CBA अधिनियम के तहत अधिग्रहीत इन भूमि की मालिक बनी रहेंगी।
- निर्दिष्ट अवधि के लिये भूमि को पट्टे पर देना:
- जिस सरकारी कंपनी के पास भूमि है, वह ऐसी भूमि को नीति के तहत दी गई विशिष्ट अवधि के लिये पट्टे पर दे सकेगी।
- लीजिंग हेतु संस्थाओं का चयन एक पारदर्शी, निष्पक्ष और प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया तथा तंत्र के माध्यम से किया जाएगा ताकि इष्टतम मूल्य प्राप्त किया जा सके।
- भूमि को वाशरीज़ (Washeries), कोयला गैसीकरण और कोयले-से-रासायनिक संयंत्रों की स्थापना तथा ऊर्जा से संबंधित बुनियादी ढाँचे की स्थापना करने जैसी गतिविधियों के लिये विचार किया जाएगा।
नीति का महत्त्व:
- रोज़गार उत्पन्न करना:
- सरकारी कंपनियों से स्वामित्व के हस्तांतरण के बिना विभिन्न कोयला और ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे की स्थापना से बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन होगा।
- जिन भूमि का खनन किया गया है या जो कोयला खनन के लिये व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त हैं, उन पर अनधिकृत अतिक्रमण तथा सुरक्षा एवं रखरखाव पर परिहार्य व्यय का खतरा है।
- सरकारी कंपनियों से स्वामित्व के हस्तांतरण के बिना विभिन्न कोयला और ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे की स्थापना से बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार का सृजन होगा।
- ऑपरेटर की लागत को कम करना:
- अन्य उद्देश्यों के लिये गैर-खनन योग्य भूमि के उपयोग से भी सीआईएल (CIL) को अपने संचालन की लागत को कम करने में मदद मिलेगी क्योंकि यह कोयले से संबंधित बुनियादी ढाँचे और अन्य परियोजनाओं जैसे- निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में अलग-अलग बिज़नेस मॉडल अपनाकर अपनी ज़मीन पर सोलर प्लांट को स्थापित करने में सक्षम होगा।
- यह कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को व्यवहार्य बनाएगा क्योंकि कोयले को दूर स्थानों पर ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी।
- भूमि का उचित उपयोग सुनिश्चित करना:
- पुनर्वास उद्देश्य के लिये भूमि का उपयोग करने का प्रस्ताव; भूमि का उचित उपयोग सुनिश्चित करेगा, महत्त्वपूर्ण भूमि संसाधन के अपव्यय को समाप्त करेगा, परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिये नए भूखंडों के अधिग्रहण से बचाएगा तथा परियोजनाओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ को समाप्त कर लाभ में वृद्धि करेगा।
- विस्थापित परिवारों की मांग को संबोधित करना:
- यह विस्थापित परिवारों की मांग को भी पूरा करेगा क्योंकि वे हमेशा अपने मूल आवासीय स्थानों करीब रहना पसंद करते हैं।
- इससे कोयला परियोजनाओं के लिये स्थानीय समर्थन प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी तथा यह राज्य सरकार द्वारा कोयला खनन के लिये दी गई वन भूमि के बदले में राज्य सरकार को वनरोपण के लिये भूमि उपलब्ध कराएगा।
- आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में सहायक:
- यह नीति घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित कर,, आयात निर्भरता को कम कर, रोज़गार सृजन आदि द्वारा आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में मदद करेगी।
- यह नीति विभिन्न कोयला और ऊर्जा अवसंरचना विकास गतिविधियों हेतु भूमि का उपयोग कर देश के पिछड़े क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करेगी।
- पहले से अधिग्रहीत भूमि के उपयोग से भूमि के नए अधिग्रहण और संबंधित विस्थापन को भी रोका जा सकेगा जिससे स्थानीय विनिर्माण एवं उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा
- यह नीति घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित कर,, आयात निर्भरता को कम कर, रोज़गार सृजन आदि द्वारा आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में मदद करेगी।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a)
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