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भारत में पुलिसिंग और नैतिकता

  • 02 Sep 2022
  • 10 min read

मेन्स के लिये:

भारतीय पुलिसिंग और नैतिकता, भारत में नैतिक पुलिसिंग के साथ विभिन्न मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह संदेश दिया कि 'आदर्श पुलिस व्यवस्था' यह दर्शाती है कि पुलिस अधिकारी का काम ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से परिपूर्ण होता है।

पुलिसिंग में नैतिकता:

  • नैतिक निर्णय लेना:
    • जीवन और स्वतंत्रता मौलिक नैतिक मूल्य हैं और सभी मानव समाजों में ऐसा माना जाता है, पुलिस को नियमित रूप से यह तय करना पड़ता है कि गिरफ्तार करना है या नहीं अर्थात् किसी की स्वतंत्रता को समाप्त करना है या नहीं, और इसके चरम स्थिति पर कभी-कभी उन्हें यह तय करना होगा कि किसी के जीवन की स्वतंत्रता को सीमित करना है या नहीं।
    • कोई भी नैतिक निर्णय लेते समय पुलिस को कई जटिल कार्रवाइयों पर विचार करना पड़ता है।
    • उन्हें किसी व्यक्ति की अच्छाई और बुराई पर विचार करने से पहले विचार करना होगा कि क्या उनके कार्य गलत हैं या नहीं।।
    • किसी व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिये उन्हें कार्रवाई की प्रेरणा और इरादों एवं उसके परिणामों को देखना होगा।
  • खतरे या शत्रुता का सामना:
    • पुलिस को अपना कर्तव्य करने के लिये खतरे या शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है, और अनुमानतः अपने काम के दौरान पुलिस अधिकारियों को अन्य व्यवसायों के लोगों की तुलना में भय, क्रोध, संदेह, उत्तेजना और ऊब सहित कई तरह की भावनाओं का अनुभव होने की संभावना है।
    • पुलिस के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये उन्हें इन भावनाओं का सही तरीके से जवाब देने में सक्षम होना चाहिये, जिसके लिये उनमें भावनात्मक बुद्धिमत्ता होना आवश्यक है।

भारत में नैतिक पुलिसिंग संबंधी विभिन्न चुनौतियाँ

  • पुलिस का राजनीतिकरण:
    • भारत में कानून का शासन है जो न्याय के बुनियाद पर आधारित है, उसे राजनीति के शासन ने कमज़ोर कर दिया है।
    • पुलिस के राजनीतिकरण का प्रमुख कारण विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की नियुक्ति के लिये उचित कार्यकाल नीति का अभाव और राजनीतिक हित के लिये उपयोग किये जाने वाले मनमाने तबादले एवं पोस्टिंग हैं।
    • राजनेता पुलिस अधिकारियों को वश में करने के लिये स्थानांतरण और निलंबन को हथियार के रूप में उपयोग करते हैं।
    • ये दंडात्मक उपाय पुलिस के मनोबल को प्रभावित करते हैं और संगठन के भीतर कमांड की शृंखला को हानि पहुँचाते हैं, जिससे उनके वरिष्ठ अधिकारियों के अधिकार को कम किया जा सकता है जो ईमानदार, सक्षम और निष्पक्ष हो सकते हैं, लेकिन पर्याप्त रूप से सहायक या राजनीतिक रूप से उपयोगी नहीं हैं।
  • पुलिस की मनमानी :
    • ‘बेले’ (Bayley) और ‘एथिकल इश्यूज इन पोलिसिंग’ (Ethical Issues in Policing) जैसी पुस्तकों में लेखकों का मानना है कि कानून के शासन को राजनीति के शासन से बदला जा रहा है, जो देश में सुशासन की स्थापना के लिये चिंता का विषय है।
    • उनके अनुसार, पुलिस का गैर-ज़िम्मेदाराना और मनमानी पूर्ण व्यवहार इसके प्रमुख कारक हैं और यह उन ईमानदार और सक्षम पुलिस अधिकारियों को हतोत्साहित करता है जो भारतीय पुलिस संस्थानों का नवीनीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • भ्रष्टाचार:
    • हालाँकि भ्रष्टाचार दुनिया के हर हिस्से में प्रचलित है, भारत भ्रष्टाचार बोध सूचकांक, 2021 में 180 देशों में से 85 वें स्थान पर है।
    • लगभग प्रत्येक स्तर पर और विभिन्न रूपों में विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से पुलिस विभाग अछूता नहीं है।
    • ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी भ्रष्टाचार गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं और ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ निम्न श्रेणी के पुलिस अधिकारियों को रिश्वत लेते पकड़ा गया है।
  • हिरासत में होने वाली मौतें:
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में हिरासत में होने वाली मौतों की कुल संख्या वर्ष 2020-21 में 1,940 से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 2,544 हो गई।
    • उत्तर प्रदेश में पिछले दो वर्षों से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में हिरासत मेंं होने वाली मौत के सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए हैं।
  • अवपीड़न के तरीकों का उपयोग:
    • पुलिस अवपीड़न (Police Coercion) शब्द को सबसे अच्छी तरह से परिभाषित किया जा सकता है, जब एक पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध से अपराध के स्वीकारोक्ति के प्रयास में अनुचित दबाव या धमकी का उपयोग करता है।
    • पुलिस अवपीड़न कई रूप ले सकती है और पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया जाता रहा है कि अपराध को कबूल कराने के प्रयास में विभिन्न प्रकार के अनुचित दबाव का उपयोग किया जाता है।

संबंधित सुझाव:

  • शाह आयोग की सिफारिश (1978):
    • शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट (रिपोर्ट संख्या II, 26 अप्रैल, 1978) में सुझाव दिया था कि सरकार को देश की राजनीति से पुलिस को निष्पक्ष रखने की व्यवहार्यता और वांछनीयता पर गंभीरता से विचार करना चाहिये और उन्हें पुलिस कर्तव्यों के अनुसार ईमानदारी से नियुक्त करना चाहिये।
  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977):
    • पुलिस को बाह्य और आंतरिक प्रभाव से बचाने के लिये, राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने कई महत्त्वपूर्ण सुझाव भी दिये हैं।
    • आयोग के अनुसार हिरासत में बलात्कार, पुलिस फायरिंग से मौत और अत्यधिक बल प्रयोग के मामले में न्यायिक जाँच को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • मॉडल पुलिस अधिनियम:
    • आदर्श पुलिस अधिनियम बनाने के लिये सोली सोराबजी समिति की स्थापना की गई थी।
    • समिति ने वर्ष 2006 में "पुलिस को एक कुशल, प्रभावी, जन अनुकूल और उत्तरदायी एजेंसी के रूप में संचालित करने में सक्षम बनाने के लिये"अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की।
      • सामान्य तौर पर, समिति ने प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण किया।
        • वर्ष 2006 के प्रकाश सिंह मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस सुधार के उद्देश्य से 7 निर्देश जारी किये थे।
    • भारत सरकार ने संसद में वादा किया था कि निकट भविष्य में एक मॉडल पुलिस अधिनियम पेश किया जाएगा, जो अभी तक नहीं हुआ है।

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आगे की राह:

  • मानवाधिकारों की रक्षा करना:
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को "शासन में कम और जवाबदेही में अधिक" होना चाहिये।
    • इसके अलावा पुलिस नैतिकता और पुलिस संस्थान लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिये उच्चतम नैतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हैं।अतः मानवाधिकारों की सुरक्षा पुलिस का मुख्य कार्य है।
  • पुलिस द्वारा नैतिक सिद्धांतों का पालन:
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 1998 के अनुसार, पुलिस को सावधानीपूर्वक तैयार किये गए नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये जो पीड़ितों के नैतिक अधिकारों को संदिग्धों के साथ उचित रूप से संतुलित करते हैं।
      • उदाहरण के लिये नागरिकों और स्वयं की सुरक्षा के लिये पुलिस द्वारा बल का उपयोग आवश्यकता एवं आनुपातिकता के नैतिक सिद्धांतों के आधार पर होना चाहिये।
  • पुलिस का अराजनीतिकरण:
    • राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिश के अनुसार पुलिस का अराजनीतिकरण करना और उसे बाहरी दबावों से बचाने के साथ ही प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर फिर से ज़ोर देना समय की तत्काल आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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