पुलिस: कमिश्नरी प्रणाली | 15 Jan 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ तथा नोएडा के लिये पुलिसिंग की कमिश्नरी प्रणाली (Commissionerate System) को पायलट परियोजना के रूप में स्वीकृति प्रदान की है।
- कमिश्नरी प्रणाली पुलिस अधिकारियों को कई महत्त्वपूर्ण शक्तियों से सुसज्जित करेगी जिसमें कार्यकारी शक्तियों के अतिरिक्त दांडिक शक्तियाँ भी शामिल हैं।
कमिश्नरी प्रणाली से तात्पर्य
- संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत 'पुलिस' राज्य सूची का विषय है, अर्थात् प्रत्येक राज्य इस विषय पर विधि का निर्माण कर विधि-व्यवस्था पर नियंत्रण रखते हैं।
- ज़िला स्तर पर विधि-व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिये ज़िलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के रूप में ‘नियंत्रण की दोहरी व्यवस्था’ को अपनाया गया।
- समय के साथ बढ़ती जनसंख्या के कारण महानगरों (10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र) में अपराध पर प्रभावी नियंत्रण के लिये ज़िला स्तर पर संचालित ‘नियंत्रण की यह दोहरी व्यवस्था’ अप्रासंगिक प्रतीत होने लगी, ऐसी स्थिति में पुलिसिंग के प्रभावी निष्पादन तथा निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में गति लाने हेतु कमिश्नरी प्रणाली को अपनाया गया।
- कमिश्नरी प्रणाली में, पुलिस आयुक्त (Commissioner Of Police) एकीकृत पुलिस कमांड संरचना का प्रमुख होता है, जो महानगर में विधि-व्यवस्था के संचालन के लिये उत्तरदायी और राज्य सरकार के प्रति जवाबदेह होता है।
- पुलिस आयुक्त को अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, विशेष पुलिस आयुक्त, संयुक्त पुलिस आयुक्त तथा पुलिस उपायुक्त द्वारा कार्य निष्पादन में सहायता प्रदान की जाती है।
नई व्यवस्था के अंतर्गत प्राप्त अधिकार
- पुलिस आयुक्त के पास कार्यकारी और दांडिक शक्तियों के साथ-साथ विनियमन, नियंत्रण और लाइसेंस ज़ारी करने की भी शक्तियाँ होंगी।
- पुलिस आयुक्त को अब दंड प्रक्रिया संहिता (Code Of Criminal Procedure-CRPC) के अंतर्गत दांडिक शक्तियाँ भी प्राप्त हो जाएँगी, जो अभी तक ज़िला प्रशासन के अधिकारियों को प्राप्त थी।
- इसके अंतर्गत CRPC की धारा 107-16, 144, 109, 110, 145 का क्रियान्वयन पुलिस आयुक्त कर सकेंगे।
- होटल के लाइसेंस, बार लाइसेंस और शस्त्र लाइसेंस भी अब पुलिस द्वारा दिये जाएंगे। इसके साथ ही धरना प्रदर्शन की अनुमति देने और न देने की शक्ति भी पुलिस के हाथों में संकेंद्रित होगी।
- दंगे की स्थिति में लाठीचार्ज होना चाहिये या नहीं, अगर बल प्रयोग हो रहा है तो कितना बल प्रयोग किया जाएगा इसका निर्णय भी अब पुलिस ही करेगी।
- कमिश्नरी प्रणाली लागू होने के बाद ज़िलाधिकारी तथा उप ज़िलाधिकारी को प्राप्त कार्यकारी और दांडिक शक्तियाँ पुलिस को मिल जाएंगी जिससे पुलिस शांति भंग की आशंका में निरुद्ध करने से लेकर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका तक लगा सकेगी।
अन्य राज्यों में पुलिसिंग की व्यवस्था
- बिहार, मध्य प्रदेश, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर तथा पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों को छोड़कर शेष भारत के लगभग 71 महानगरों में कमिश्नरी प्रणाली लागू है।
- अंग्रेजों ने सर्वप्रथम कलकत्ता प्रेसिडेंसी में इस व्यवस्था को प्रारंभ किया तत्त्पश्चात् बाम्बे और मद्रास प्रेसिडेंसी में इस व्यवस्था को लागू किया गया।
- वर्ष 1978 में दिल्ली पुलिस ने भी कमिश्नरी प्रणाली को अपना लिया।
- वर्ष 1978 में ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने कमिश्नरी प्रणाली को अपनाने का प्रयास किया परंतु अंतिम रूप से सफल नही हो पाया।
कमिश्नरी प्रणाली की समस्या
- पुलिसिंग की इस प्रणाली में कई अच्छाइयाँ होने के बावजूद इसके निरंकुश होने का डर बना रहता है।
- इस व्यवस्था में पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार बढ़ने का भी अंदेशा है।
- पुलिस विभाग पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप भी लगता रहा है, ऐसी स्थिति में पुलिसिंग की यह व्यवस्था मानवाधिकारों पर संकट के रूप में भी देखी जा रही है।
आगे की राह
- वर्तमान समय में अपराध पर प्रभावी नियंत्रण, आदेश की एकता तथा निर्णय निर्माण में गति के लिये पुलिसिंग की इस व्यवस्था की अत्यधिक आवश्यकता है।
- अन्य महानगरों में इस प्रणाली की सफलता दर इसकी प्रासंगिकता को प्रदर्शित करती है।
- यह व्यवस्था पुलिस आयुक्त के नियंत्रण में कार्य करेगी, अतः इस व्यवस्था के निरंकुश होने की संभावना नगण्य है।