निमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट | 13 Nov 2019
प्रीलिम्स के लिये
निमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट क्या है?
मेन्स के लिये
निमोनिया तथा डायरिया उन्मूलन में निहित समस्याएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (International Vaccine Access Center-IVAC) द्वारा 10वीं न्यूमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट (10th Pneumonia and Diarrhoea progress report) प्रकाशित की गई।
न्यूमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट पिछले दस वर्षों से प्रत्येक वर्ष जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ (Johns Hopkins Bloomberg School of Public Health) की संस्था इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (International Vaccine Access Center-IVAC) द्वारा प्रकाशित की जाती है।
मुख्य बिंदु:
- विश्व के 23 देशों में जहाँ डायरिया तथा न्यूमोनिया से होने 75 प्रतिशत बच्चों (5 वर्ष से कम आयु के) की मौत हो जाती है, इन रोगों के उपचार एवं रोकथाम के लिये आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
- विश्व में होने वाली प्रत्येक 4 शिशुओं की मृत्यु में से 1 की मृत्यु डायरिया तथा निमोनिया से होती है।
- भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की बड़ी संख्या निवास करती है तथा डायरिया व निमोनिया से होने वाली मौतों की संख्या भी भारत में अधिक है।
- भारत में वर्ष 2016 में शुरू की गई रोटावायरस वैक्सीन (Rotavirus Vaccine) तथा वर्ष 2017 में न्यूमोकोकल कॉनजुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine) के प्रयोग से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया गया है।
- 23 देशों की सूची में भारत में स्तनपान दर (Exclusive Breastfeeding Rate) सर्वाधिक 55 % है। इसके बावजूद आवश्यक उपचार के मामले में भारत निर्धारित लक्ष्य से पीछे है।
- इन देशों में डायरिया से ग्रसित केवल 50 प्रतिशत बच्चों को ही ओआरएस (Oral Rehydration Solution-ORS) तथा 20 प्रतिशत को जिंक सप्लीमेंट दिया जाता है। जो डायरिया तथा निमोनिया से सुरक्षा, रोकथाम तथा उपचार के लिये आवश्यक है।
- डायरिया तथा निमोनिया से बचाव के लिये 10 आवश्यक हस्तक्षेप निर्धारित किये गए हैं, जिसमें स्तनपान, टीकाकरण, एंटीबायोटिक का प्रयोग, ओआरएस तथा जिंक सप्लीमेंट आदि शामिल हैं। इन प्रयासों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में शिशु मृत्यु दर को वर्ष 2030 तक 25 प्रति एक हज़ार करना है।
- इसके अलावा वर्ष 2017 में ‘सेव द चिल्ड्रेन’ तथा 'यूनिसेफ’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में निमोनिया से बच्चों की मौत के कारणों में, 53 प्रतिशत बच्चों में उनकी आयु की अपेक्षा कम वजन (Wasted) का होना था, 27 प्रतिशत द्वारा प्रदूषित हवा तथा 22 प्रतिशत का ठोस ईंधन के कारण प्रदूषित वायु में साँस लेना था।
- डायरिया तथा निमोनिया की रोकथाम के लिये बनाई गई वैक्सीन अभी भी इन 23 देशों में पर्याप्त मात्रा में सुलभ नहीं है तथा इसके उपचार के लिये आवश्यक एंटीबायोटिक तथा ओआरएस का प्रयोग भी इन देशों में बहुत कम है।