अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रधानमंत्री की इज़रायल यात्रा।
- 03 Jul 2017
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संदर्भ
प्रधानमंत्री मोदी 4 जुलाई से तेल-अवीव एवं यरुशलम की यात्रा पर जा रहे हैं | उनकी इस यात्रा में फिलिस्तीन शामिल नहीं है, जैसा कि अब तक होता आया है। इसे भारत के नज़रिये में बदलाव माना जा रहा है। भारत, इज़रायल तथा फिलिस्तीन दोनों देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना चाहता है।
प्रमुख बिंदु
- भारत ने 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी।
- भारत और इज़रायल के मध्य पूर्ण रूप से कुटनीतिक संबंध 1992 में स्थापित हुये थे।
- प्रधानमंत्री मोदी इज़रायल की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे।
विश्लेषण
- आमतौर पर ऐसा नहीं होता है कि भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि इज़रायल जाए और फिलिस्तीन न जाए। प्रधानमंत्री मोदी से पहले राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तथा तीन विदेश मंत्री- जसवंत सिंह ( 2000 में ), (एसएम कृष्णा 2012 में ) तथा सुषमा स्वराज ( 2016 में ) इज़रायल की यात्रा के साथ-साथ फिलिस्तीन की भी यात्रा पर गए थे।
- अभी हाल ही में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की यात्रा पर आए थे, जिसमें दोनों पक्षों के बीच विकास सहायता पर कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इसमें दो-राज्य के समाधान के मुद्दे पर फिलिस्तीन की माँग का समर्थन करने पर भी सहमती हुई।
- गौरतलब है कि इज़रायल तथा फिलिस्तीन के बीच अलग राज्य के गठन को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। फिलिस्तीन, इज़रायल से बातचीत के माध्यम से 1967 की तर्ज़ पर अलग फिलिस्तीन राज्य का गठन करना तथा पूर्वी यरुशलम को अपनी राज़धानी बनाना चाहता है।
- जहाँ तक भारत का इन दोनों देशों के साथ संबंधों का प्रश्न है, तो भारत इन दोनों देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना पसंद करता है। हमें इस बात को समझना होगा कि किसी एक देश की कीमत पर दूसरे देश के साथ संबंध नहीं होने चाहिये।
- प्रधानमंत्री का इज़रायल जाने परन्तु फिलिस्तीन न जाने को लेकर भारत के नज़रिये में बदलाव की अटकलें लगाई जा रही हैं, जो कि गलत धारणा है। दरअसल भारत का इज़रायल तथा फिलिस्तीन के साथ राजनीतिक विश्वास इतना बेहतर है कि वह इन दोनों देशों के साथ स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की वर्तमान यात्रा से यह स्पष्ट भी होता है।
- प्रधानमंत्री की इस यात्रा से ऐसी उम्मीदें है कि वह इज़रायल तथा फिलिस्तीन के बीच की वर्तमान परिस्थितियों पर तथा अमेरिका द्वारा इस समस्या के समाधान के प्रयास पर चर्चा कर सकते हैं। परन्तु इज़रायल तथा फिलिस्तीन के बीच मध्यस्थता करने की भारत की कोई मंशा नहीं है।