फार्मास्यूटिकल्स और आईटी हार्डवेयर के लिये PLI योजना | 27 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फार्मास्यूटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर के लिये 22,350 करोड़ रुपए की लागत वाली उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को मंज़ूरी दी है।
- इससे पूर्व सरकार ने 51,311 करोड़ रुपए के प्रस्तावित परिव्यय के साथ चिकित्सा उपकरणों, मोबाइल फोन और निर्दिष्ट 'सक्रिय दवा सामग्री' (API) के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं की घोषणा की थी।
प्रमुख बिंदु
उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना
- इस योजना का उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों की बिक्री में हो रही वृद्धि पर कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करना होता है।
- इसके तहत विदेशी कंपनियों को भारत में इकाई स्थापित करने के लिये आमंत्रित किया जाता है, हालाँकि इसका प्राथमिक उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों का विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित करना है।
सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर क्षेत्र
- 7350 करोड़ रुपए की लागत वाली इस योजना के तहत भारत में निर्मित सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर उत्पादों के लिये शुद्ध वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष 2019-20) पर 1-4 प्रतिशत नकद प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
- इस योजना के लक्षित सेगमेंट में लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन PC और सर्वर आदि शामिल हैं।
- अवधि: 4 वर्ष
- लाभ
- इस योजना के माध्यम से भारत स्वयं को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित कर सकेगा, जिससे भारत आईटी हार्डवेयर निर्यात हेतु एक महत्त्वपूर्ण गंतव्य बन जाएगा।
- इससे 4 वर्षों में 1,80,000 से अधिक (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) रोज़गार सृजन होने की संभावना है।
- इससे आईटी हार्डवेयर के लिये घरेलू मूल्य वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा, जिसके वर्ष 2025 तक 20-25 प्रतिशत तक बढ़ जाने की उम्मीद है।
फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र
- वर्ष 2020 में लागू 6,940 करोड़ रुपए की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना महत्त्वपूर्ण थोक दवाओं पर केंद्रित थी, जबकि यह नवीनतम योजना अन्य प्रकार की थोक दवाओं पर ध्यान केंद्रित करती है।
- इसके तहत वर्ष 2020-21 से वर्ष 2028-29 (कुल 9 वर्षों में) के बीच प्रोत्साहन प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है।
- योजना के लिये आवेदन करने वाले दवा निर्माताओं को भारत में पंजीकृत होना अनिवार्य है और उन्हें अपने वैश्विक उत्पादन राजस्व (GMR) के आधार पर तीन श्रेणियों में से किसी एक में समाहित किया जाएगा, ताकि औषधीय उद्योग की योजना व्यापक और व्यवस्थित तरीके से लागू की जा सके।
योजना द्वारा लक्षित दवाओं की श्रेणियाँ
- श्रेणी-1
- इसमें जैवऔषधीय; कॉम्प्लेक्स जेनेरिक औषधियाँ; पेटेंट दवाएँ; गंभीर बीमारियों के इलाज में काम आने वाली दवाएँ और वे दवाएँ जो महँगी होती हैं तथा भारत खासतौर पर उनके लिये बहुराष्ट्रीय दवा निर्माताओं पर निर्भर रहता है।
- श्रेणी-2
- इसमें सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स सामग्री (APIs), कीई स्टार्टिंग मैटेरियल (KSMs) और ड्रग इंटरमीडिएट (DIs) शामिल हैं।
- श्रेणी-3
- इसमें ऑटो इम्यून ड्रग्स, कैंसर-रोधी दवाएँ, मधुमेह-रोधी दवाएँ, संक्रमण-रोधी दवाएँ, हृदय रोग संबंधी दवाएँ, साइकोट्रॉपिक ड्रग्स और एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स, इन-विट्रो डायग्नोस्टिक उपकरण तथा भारत में निर्मित न होने वाली अन्य औषधियाँ शामिल हैं।
प्रोत्साहन
- श्रेणी-1 और श्रेणी-2 के लिये
- योजना के अंतर्गत श्रेणी 1 और श्रेणी 2 दवाओं के लिये उत्पादन के पहले चार वर्षों में प्रोत्साहन की दर 10 प्रतिशत (वृद्धि संबंधी बिक्री मूल्य का), पाँचवें वर्ष के लिये 8 प्रतिशत और छठे वर्ष के लिये 6 प्रतिशत होगी।
- श्रेणी-3
- योजना के अंतर्गत श्रेणी-3 उत्पादों के लिये उत्पादन के पहले चार वर्षों में प्रोत्साहन की दर 5 प्रतिशत (वृद्धि संबंधी बिक्री मूल्य का), पाँचवें वर्ष के लिये 4 प्रतिशत और छठे वर्ष के लिये 3 प्रतिशत होगी।
फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र में योजना का लाभ
- चीन पर निर्भरता कम हुई
- चीन के रूप में एक मितव्ययी विकल्प होने के कारण सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स सामग्री (APIs) को लेकर भारत की क्षमता में पिछले कुछ वर्षों में कमी देखने को मिली है।
- भारत का फार्मास्यूटिकल्स उद्योग वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत थोक दवाओं के आयात के लिये चीन पर निर्भर है।
- निर्यात में बढ़ोतरी
- भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उद्योग उत्पादन की मात्रा के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा है और यह लगभग 40 बिलियन डॉलर का है।
- भारत, वैश्विक स्तर पर निर्यात की जाने वाली कुल दवाओं और औषधियों में लगभग 3.5 प्रतिशत का योगदान देता है।