जैव विविधता और पर्यावरण
नीलगिरी में विदेशी वृक्षों का रोपण
- 25 Jan 2020
- 4 min read
प्रीलिम्स के लिये:
नीलगिरी पहाड़ियाँ
मेन्स के लिये:
नीलगिरी पहाड़ियाँ तथा पर्यावरण पर विदेशी पौधों के रोपण का प्रभाव
चर्चा में क्यों?
एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन (NGO) ने नीलगिरी में बड़े पैमाने पर विदेशी वृक्षों के रोपण का प्रस्ताव दिया है।
प्रमुख बिंदु
- एक विदेशी पौधा (Exotic Plant) एक ऐसा पौधा होता है, जिसे उद्देश्यपूर्ण या आकस्मिक रूप से, अपनी मूल सीमा के बाहरी क्षेत्र में प्रवेश कराया जाता है।
- संरक्षण वादियों का तर्क है कि विदेशी वृक्षों के रोपण से मिट्टी की रासायनिक संरचना एवं वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और दीर्घकालिक रूप से यह पर्यावरण के लिये भी हानिकारक साबित होगा।
- जब किसी क्षेत्र विशेष में विदेशी पौधों को रोपित किया जाता हैं, तो इससे उस क्षेत्र में पानी की मांग बढ़ जाती है, जिससे न केवल नीलगिरी बल्कि अन्य ज़िले भी प्रभावित होंगे जो मूलतः उस क्षेत्र विशेष पहाड़ियों से निकलने वाली नदियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र के वन्यजीवों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- विदेशी वृक्षों के रोपण के संबंध में यह तर्क दिया जा रहा है कि यदि इन्हें पहाड़ी ढलानों पर रोपित किया जाता है तो ये ढलानों की मिट्टी की स्थिरता में वृद्धि करेंगे।
- हालाँकि संरक्षणवादियों का तर्क है कि विदेशी वृक्षों की जड़ें बहुत उथली होती हैं, अक्सर इस प्रकार के वृक्ष उच्च-वेग वाली हवाओं और भारी बारिश में उखड़ जाते हैं, जबकि इस प्रकार का मौसम नीलगिरी के मानसून की प्रमुख विशेषता है।
- अतः इस विषय में सरकार को एक ऐसी नीति बनानी चाहिये जो यह तय कर सकें कि नीलगिरि में सार्वजनिक स्थानों पर केवल पारिस्थितिक महत्त्व वाले (इस क्षेत्र की भौगोलिक विशेषता एवं जैव-विविधता को ध्यान में रखते हुए) वृक्षों को ही रोपित किया जाना चाहिये।
नीलगिरि पहाड़ियाँ
- पश्चिमी घाट को स्थानीय रूप से महाराष्ट्र में सह्याद्री, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरि और केरल में अन्नामलाई और इलायची/कार्डामम पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है।
- नीलगिरी, अनामलाई और पलानी पहाड़ियों में समशीतोष्ण वनों को ‘शोला’ कहा जाता है।
शोला वन
- नीलगिरी, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय वनों को स्थानीय रूप से ‘शोलास’ के नाम से जाना जाता है।
- 'शोला' (shola) शब्द तमिल शब्द 'कोलाइ' (cholai) का अपभ्रंश रूप है, जिसका अर्थ होता है- ठंडा स्थान या जंगल।
- इन वनों में पाए जाने वाले वृक्षों में मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल का आर्थिक महत्त्व है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान में कमी आने के कारण प्राकृतिक वनस्पति में भी बदलाव आता है। यहाँ ऊँचाई वाले क्षेत्रों में शीतोष्ण कटिबंधीय और निचले क्षेत्रों में उपोष्ण कटिबंधीय प्राकृतिक वनस्पतियाँ पाई जाती है।
- तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक प्रांत की पर्वत श्रृंखलाएँ उष्णकटिबंध क्षेत्र में पड़ती हैं और इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1500 मीटर है।