नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

शोधन अक्षमता संशोधन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत

  • 25 Jul 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

सरकार ने हाल ही में दिवालियापन कानून में संशोधन के लिये प्रस्ताव पेश किया जो गृह खरीदारों को वित्तीय लेनदारों के रूप में पहचाने जाने में सक्षम बनाता है और क्रेडिटर्स समिति (सीओसी) द्वारा एक संकल्प योजना को मंज़ूरी देने हेतु न्यूनतम मतदान सीमा को कम करता है। साथ ही अपनी कंपनियों की बोली लगाने हेतु सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के प्रमोटरों को एक विशेष छूट प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक शोधन अक्षमता और दिवालियापन संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 को प्रतिस्थापित करता है, जिसे पिछले महीने राष्ट्रपति द्वारा मंज़ूरी दी गई थी। वर्तमान में 4 लाख करोड़ रुपए की तनावग्रस्त संपत्तियाँ आईबीसी के तहत समाधान प्रक्रिया से गुज़र रही हैं।
  • यह विधेयक घर खरीदने वालों को राहत प्रदान करता है, जिनके बारे में रियल एस्टेट कंपनियों की समाधान प्रक्रिया में पहले कोई बात नहीं की गई थी। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि एक रियल एस्टेट परियोजना के तहत आवंटनकर्त्ता द्वारा जुटाई गई किसी भी राशि को उधार लेने के लिये वाणिज्यिक प्रभाव वाली राशि माना जाएगा। 
  • इसका अर्थ है कि गृह क्रेताओं के साथ दिवालियापन कानून के तहत समाधान प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के वित्तीय लेनदारों की भाँति व्यवहार किया जाएगा।
  • यह विधेयक क्रेडिटर्स की समिति द्वारा "महत्त्वपूर्ण निर्णय" लेने हेतु एक प्रस्ताव योजना को मंजूरी देने के लिये आवश्यक न्यूनतम मतदान सीमा को 75 प्रतिशत से कम करके 66 प्रतिशत करने का प्रस्ताव करता है।  "नियमित निर्णयों" के लिये, न्यूनतम मतदान सीमा को 75 प्रतिशत से घटाकर 51 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • विधेयक में प्रस्तावित परिवर्तनों के अनुसार, एमएसएमई के डिफॉल्ट हो रहे प्रमोटरों को आईबीसी की धारा 29A द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंधों से छूट दी जाएगी, जिससे उन्हें अपनी कंपनियों के लिये बोली लगाने में मदद मिलेगी। हालाँकि, यह छूट इरादतन चूककर्त्ताओं के लिये उपलब्ध नहीं होगी  तथा उन्हें उनकी कंपनियों के लिये बोली लगाने से रोक दिया जाएगा।
  • धारा 29A इरादतन चूककर्त्ताओं, अमुक्त शोधन अक्षमता वाली संस्था, प्रतिभूति बाज़ार में व्यापार से प्रतिबंधित व्यक्तियों और एक वर्ष से अधिक के लिये एनपीए के रूप में वर्गीकृत खाता और बोलियाँ जमा करने से पहले अतिदेय राशि का भुगतान करने में विफल कंपनियों जैसी कई संस्थाओं को समाधान के लिये रखी गई कंपनियों की बोली लगाने से रोकती है।
  • एमएसएमई के मामले में बड़ी कंपनियों को समाधान हेतु आवेदकों के रूप में आकर्षित करना थोड़ा मुश्किल है। इसलिये यह सुनिश्चित करने के लिये छूट दी जा रही है कि मौजूदा प्रमोटरों पर कानून द्वारा लगाई गई सीमाओं की वज़ह से छोटी कंपनियाँ परिसमापन की ओर न बढ़ें।
  • कॉर्पोरेट देनदारों द्वारा कॉर्पोरेट शोधन अक्षमता संकल्प प्रक्रिया (सीआईआरपी) की शुरूआत के संबंध में विधेयक प्रावधान करता है कि इस तरह के आवेदन को केवल एक विशेष प्रस्ताव के बाद कॉर्पोरेट देनदार के तीन-चौथाई शेयरधारकों द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है।
  • संहिता के तहत प्रवेश के बाद आवेदक द्वारा किसी मामले को वापस लेने के लिये सख्त प्रक्रिया का निर्धारण नए परिवर्तनों द्वारा किया गया है। इस तरह की निकासी को केवल 90 प्रतिशत वोटिंग शेयर सहित सीओसी की मंज़ूरी के साथ अनुमति होगी।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow