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निहित हितों की स्वार्थपूर्ति का उद्योग बनता पीआईएल

  • 21 Apr 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही के एक मामले में पीआईएल को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक एजेंडा वाले लोगों द्वारा जनहित याचिका (पीआईएल) का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसकी बारंबारता  न्यायिक प्रक्रिया के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रही  है।

लोकहितवाद/जनहित याचिका (PIL)
यह एक ऐसी याचिका है, जिसके माध्यम से पीड़ित व्यक्ति स्वयं या अन्य कोई व्यक्ति या संस्था द्वारा पीड़ित व्यक्ति की ओर से न्यायालय के समक्ष प्रश्न उठाया जाता है। जनहित याचिका की इस प्रणाली ने भारत में पूर्व प्रचलित Locus standi (केवल प्रभावित व्यक्ति ही न्याय पाने के अधिकार की अपील कर सकता है ) को बदल दिया। अब स्वतः संज्ञान के माध्यम से भी न्यायालय द्वारा (मीडिया रिपोर्टों, सोशल साइट्स आदि को आधार बनाकर) कार्रवाई की जाती है। ध्यातव्य है कि भारत के पूर्व न्यायाधीश पी.एन. भगवती को ‘जनहित याचिका का जनक’ माना जाता है।

पीआईएल से जुड़े मुद्दे

  • यह कानूनी व्यवस्था के संसाधनों के लिये न्याय का हास्यस्पद उपकरण बन गया है, जो सार्वजनिक हित में दायर की गई झूठी याचिकाओं में बढ़ोत्तरी कर रहा है। 
  • इससे व्यक्तिवाद,व्यवसाय या राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति में भी बढ़ोतरी हुई हैं।
  • परिणामस्वरूप पीआईएल ने स्वार्थपूर्ति  के निहित हितों के उद्योगों को जन्म दिया है। 
  • पीआईएल द्वारा ऐसे कम ही मुद्दों को उठाया जाता है जो वास्तव में लोकहित या वास्तविक कारणों को समर्पित होते हैं।
  • इसके अलावा, ऐसी याचिकाएँ न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिये भी गंभीर खतरा पैदा करती हैं। 
  • ऐसी अप्रासंगिक याचिकाएँ न्यायालय के कीमती समय को भी बर्बाद करती हैं, वह भी तब जब न्यायालय पर पहले से लंबित मामलों का अत्यधिक भार है।

पीआईएल की आवश्यकता क्यों है?

  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा कानून के शासन को संरक्षित करने और शासन की संरचनाओं के भीतर उत्तरदायित्व और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये पीआईएल को एक शक्तिशाली साधन के रूप में  माना गया था। 
  • पीआईएल देश के सतर्क नागरिकों को एक सस्ते कानूनी उपाय के रूप में, नाममात्र के निश्चित न्यायालय शुल्क पर प्राप्त होता है।
  • इसके अलावा, पीआईएल के माध्यम से दायर याचिकाएँ बड़े सार्वजनिक मुद्दों से संबंधित परिणामों पर भी ध्यान केंद्रित करती हैं।
  • विशेष रूप से मानवाधिकारों, उपभोक्ता कल्याण और पर्यावरण के क्षेत्र में पीआईएल का महत्त्व स्वतःसिद्ध है।

आगे की राह 

  • पीआईएल का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग केवल अप्रभावी बना सकता है अतः पीआईएल के संदर्भ में अब पूर्ण पुनर्विचार और पुनर्गठन की आवश्यकता है।
  • चूँकि यह देश के सभी नागरिकों के लिये सस्ती कीमत पर उपलब्ध एक असाधारण उपाय है, इसलिये इसे केवल इसके मूल घटकों और वंचित लोगों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित मामलों तक सीमित कर देना चाहिये।
  •  इससे गरीबों को न्याय प्रदान करने के साधन के रूप में पीआईएल की वैधता और प्रभावकारिता को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलेगी।
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